SHRI KRISHNA DAMODAR LEELA AUR YAMALAARJUN KA UDDHAAR

श्री कृष्ण दामोदर लीला और यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। कृष्ण को कृष्ण, मुरारी, द्वारिकाधीश, मयुर, लड्डू गोपाल आदि की नामों से जाना जाता है। उनमें से श्री कृष्ण का एक नाम दामोदर भी है। दाम का अर्थ होता है 'रस्सी' और उदर का अर्थ होता है 'पेट'। पेट से रस्सी से बंधने के कारण उनका नाम दामोदर पड़ा।

कार्तिक मास को दामोदर मास क्यों कहते हैं 

मां यशोदा ने कार्तिक मास में दिवाली के दिन श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर उनके पेट को रस्सी से बांध कर ऊखल से बाँधा था। इसलिए कार्तिक मास को दामोदर मास कहा जाता है।

एक बार मां यशोदा ने श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर उनको ओखल से बांधना चाहा । श्री कृष्ण की माया से मां यशोदा उन्हें जिस रस्सी से बांधना चाहती वो दो अंगुल छोटी रह जाती। मां यशोदा और रस्सी उसमें जोड़ती तो वह भी दो अंगुल छोटी सी रह जाती ऐसा करते करते उन्होंने घर की सभी रस्सियों को जोड़ दिया लेकिन श्री कृष्ण की माया से हर बार रस्सी दो अंगुल छोटी ही रह जाती।

श्री कृष्ण ने जब देखा कि मां शिथिल हो गई है तो श्री कृष्ण स्वयं उसमें बंध गए। मां यशोदा जब श्री कृष्ण को बांध कर स्वयं अपने काम करने में लग गई तो उन्हें यमलार्जुन वृक्षों का स्मरण हो आया।

 यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार 

 यमलार्जुन के वृक्षों को नारदजी ने शाप दिया था। नल कूबर और मणि ग्रीव दोनों कुबेर के पुत्र थे जो कैलाश पर रहते थे और अपने पिता की तरह भगवान शिव के भक्त थे। भगवान शिव की कृपा से दोनों बहुत धनवान बन गये तो दोनों ने धन के मद में चूर होकर भगवान शिव की सेवा करना भी छोड़ दिया।

हर समय दोनों कैलाश के उपवन मे मंदाकिनी नदी के तट पर मदिरा पान और सुंदर स्त्रियों के साथ जल  क्रीड़ा करने में मग्न रहते। एक दिन संयोग वश नारदजी वहां पहुंचे जहां यह दोनों स्त्रियों के साथ नग्न होकर जलक्रीड़ा कर रहे थे। स्त्रियों ने नारद जी को देखकर वस्त्र धारण कर लिये । लेकिन यह दोनों भाई अभिमान वश जैसे के तैसे खड़े रहे।

नारद जी को लगा कि इन्हें धन का अहंकार हो गया है नारदजी कहने लगे कि लोकपाल के पुत्र होकर भी तुम दोनों ने अज्ञान के वशीभूत होकर वस्त्र नहीं पहने इस लिए दोनों वृक्ष योनि में जाने योग्य हो।

 इसलिए उन्होंने शाप दिया कि तुम दोनों गोकुल में जाकर वृक्ष हों जाओ। जब दोनों को अपनी ग़लती का अहसास हुआ तो उन्होंने नारद जी से क्षमा मांगी तो नारद जी कहने लगे कि जब श्री कृष्ण गोकुल में अवतार लेंगे तब तुम दोनों का उद्धार होगा।

यह दोनों भाई गोकुल में वृक्ष बन गए और नारदजी के वचन को सत्य करने केलिए श्री कृष्ण ओखली घसीट कर यमलार्जुन वृक्षों तक ले गए। श्री कृष्ण ने ओखली को दोनों वृक्षों में अड़ा कर जोर से झटका दिया जिससे दोनों वृक्ष जड़ से उखड़ कर गिर गये। उसमें से दो सुंदर पुरुष निकल कर आए और हाथ जोड़कर श्री कृष्ण की वन्दना करने लगे। दोनों कहने लगे कि नारद जी की कृपा से हमें आपका दर्शन हुआ है अब हमें किसी चीज़ की कामना नहीं है। वह दोनों श्री कृष्ण को शीश निवा कर अपने धाम चले गए।

वृक्षों के गिरने की आवाज सुनकर मां यशोदा और गोप गोपियां वहां पहुंचे। मां यशोदा ने ओखली खोल कर श्री कृष्ण को गले से लगा लिया।

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 उद्धव गीता

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