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Showing posts from July, 2022

MAA PARVATI AARTI LYRICS IN HINDI

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  माँ पार्वती माता की आरती लिरिक्स इन हिन्दी  मां पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी है। मां पार्वती की पूजा करने से सुख समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सावन मास में भक्त भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करते हैं।  जय पार्वती  माता, जय पार्वती माता,  ब्रह्मा सनातन  देवी  शुभ  फल  की दाता।। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। अरिकुल पद्म विनासनी जय सेवक त्राता,  जग  जीवन  जगदम्बा हरिहर  गुण गाता।। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। सिंह का वाहन साजे कुंडल हैं साथा,  देव वदूं जहं गावत नृत्य कर  ताथा। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। सतयुग रूपशील अति सुन्दर नाम सटी कहलाता,  हेमांचल   घर  जन्मी  सखियन  संगराता।। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। शुम्भ  निशुम्भ  विदारे  हेमांचल  स्थाता,  सहस्त्र भुज तनु धरिके चक्र लियो हाथा।। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। सृष्टी रूप तु ही है जननी शिव संग रंगराता,  नंदी  भृंगी   बीन  लही  सारा   मदमाता।। जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।। देवन अरज कीनी हम मन चित को लाता,  गावत   दे  दे  ताली  मन  में  रंग  राता। जय

MAA PRAVATI CHALISA LYRICS IN HINDI

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   माँ पार्वती चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी  मां पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी है। उन्हें उमा, गौरी, काली, दुर्गा, अन्नपूर्णा कई नामों से जाना जाता है। विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए और कुंवारी कन्याएं मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए मां पार्वती की पूजा करती है। उन्हें सुहाग सामग्री चढ़ाती है। सावन मास में शिव और मां पार्वती को अति प्रिय है। मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए पार्वती चालीसा और मां पार्वती की आरती करना फलदाई होता है।                 ।।दोहा।।  जय गिरी तनये दक्षजे, शम्भु प्रिये गुणखानि। गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।।                 ।।चौपाई।। ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे,  पंच बदन नित तुमको ध्यावे। षटमुख कहि न सकत यश तेरो,  सहसबदन  श्रम  करत  घनेरो। तेऊ पार न पावत माता,  स्थित रक्षा लय हिय सजाता। अधर प्रवाल सदृश अरुणारे,  अति कमनीय नयन कजरारे। ललित ललाट विलेपित केशर,  कुंकुम अक्षत शोभा मनहर। कनक बसन कंचुकी सजाए,  कटी मेखला दिव्य लहराए। कंठ मदार  हार की  शोभा,  जाहि देखि सहजहि मन लोभा।  बालारुण अनंत  छबि  धारी,  आभूषण की  शोभा  प्यारी। नाना रत्न

GAURI CHALISA LYRICS IN HINDI

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  माँ गौरी चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी      सावन मास भगवान शिव को अति प्रिय है । सावन मास में भक्त भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो सके। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती ने तपस्या करके भगवान शिव को सावन मास में ही पुनः पति रूप में पाने का वरदान प्राप्त किया था। इसलिए विवाहत स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए और कुंवारी कन्याएं मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए माता पार्वती की पूजा करती है और उन्हें सुहाग का सामान अर्पित करती है। मां गौरी (पार्वती) को प्रसन्न करने के लिए गौरी चालीसा पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है। Mahadev quotes in Sanskrit Maa Gauri Chalisa lyrics in hindi              ।।दोहा।। मन मन्दिर मेरे आन बसों, आरंभ करूं गुणगान।  गौरी माँ मातेश्वरी, दो चरणों का ध्यान। पूजन विधि ना जानती, पर श्रद्धा है अपार, प्रणाम मेरा स्वीकारिये , माँ प्राण आधार।।               ।।चौपाई।। नमो नमो हे गौरी माता। आप हो मेरी भाग्य विधाता।।   शरनागत न कभी घबराता।  गौरी उमा शंकरी माता।।   आपका प्रिय है आदर पाता।  जय हो कार्तिकेय गणेश की माता।।   

HARIYALI TEEJ KAB KYUN KAISE MANAYE JATI HAI

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 हरियाली तीज व्रत 2024  हरियाली तीज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। 2024 में हरियाली तीज 7 अगस्त को मनाया जाएगा।   हरियाली तीज मनाई जाती है  सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हरियाली तीज जुलाई या फिर अगस्त माह में आती है। हरियाली तीज को भगवान शिव और माँ पार्वती के मिलन के रूप में जाता है. इस दिन महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती का व्रत और पूजन करती है।  सावन मास भगवान शिव को अति प्रिय है । सावन मास में भक्त भगवान शिव और मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए उनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं।  हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है   मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था।   पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। लेकिन भगवान शिव समाधि में लीन थे. इसी दिन भगवान शिव ने मां पार्वती को पत्नी रूप में अपनाने का वर दिया था। माना जाता है कि इस दिन शिव पार्वती के विवाह कथा पढ़ना शुभ और लाभकारी माना जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लं

YUDHISHTHIR AUR NEVLA KI KAHANI युधिष्ठिर और नेवले की कहानी

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 YUDHISHTHIR NEVLA KI MYTHOLOGICAL STORY IN HINDI   महाभारत युद्ध में विजयी होने के पश्चात युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त हुआ। श्री कृष्ण और महर्षि वेद व्यास जी ने युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा।   पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उनके इस यज्ञ में हजारों की संख्या में राजा, महाराजा, ऋषि, मुनि और ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया। पांडवों ने दिल खोलकर याचकों को दान दिया जिससे हर कोई युधिष्ठिर द्वारा किए गए यज्ञ और दान पुण्य की प्रशंसा करने लगा। जिससे युधिष्ठिर के मन में अहंकार पैदा हो गया। श्री कृष्ण समझ गए कि युधिष्ठिर का अहंकार दूर करना पड़ेगा। उसी समय एक नेवला वहां आया जिसका आधार शरीर स्वर्ण का था। वह वहां यज्ञ भूमि में लोटने  लगा।  नेवला युधिष्ठिर से कहने लगा कि," मैंने सुना था कि पांडवों द्वारा करवाया गया यज्ञ सबसे वैभवशाली और बड़ा है लेकिन मेरी दृष्टि में इस यज्ञ की कोई महानता नहीं है।" वहां उपस्थित लोग कहने लगे कि," यह तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ? हमने तो इससे बड़ा यज्ञ कहीं नहीं देखा।" नेवला ने बताया कि, "पांडवों से भी

KHAG JANEE KHAG HEE KEE BHASHA

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खग जाने खग ही की भाषा लोकोक्ति (मुहावरे) का अर्थ, meaning, Moral story  मुहावरे का अर्थ - एक चालाक व्यक्ति दूसरे चालाक व्यक्ति की भाषा जानता है। सामान वातावरण में रहने वाले एक दूसरे की बात समझ लेते हैं। खग जाने खग ही की भाषा मुहावरे पर आधारित एक कहानी  एक बार एक युवक था उसे काफी लम्बे समय से खांसी की समस्या थी। कई डाक्टरों से ईलाज करवा चुका था लेकिन उसकी खांसी ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसके मित्र ने उसे एक वैद्य जी के पास भेजा।  उसका मित्र ने उसे बताया कि," वैद्य जी की आसपास के इलाके में बहुत ख्याति है इन की दवा से ज़्यादातर मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन दवा के दौरान कुछ चीजों का सेवन करने से मना करते हैं। तुम को तो खांसी हो रही है तुम को खट्टा खाने से जरूर मना करेंगे।" युवक मित्र के बताए adress पर वैद्य जी की दुकान पर पहुंच गया। वैद्य जी ने उसकी बिमारी पूछी तो युवक कहने लगा कि," मैंने बहुत से डाक्टरों से अपनी खांसी का ईलाज करवाया है लेकिन मेरी खांसी ठीक ही नहीं हो रही।" युवक जानता था कि उसकी बिमारी सुनकर वैद्य जी परहेज करने को बोलेंगे ।इसलिए वह पहले ही अपनी च

PAPANKUSHAN EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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 PAPANKUSHAN EKADASHI  Wednesday, 25 October  अश्विन मास शुक्ल पक्ष पापांकुशा एकादशी  2023 में पापांकुशा एकादशी व्रत 25 अक्टूबर बुधवार को है। एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। एक वर्ष में 24 एकादशी आती है और प्रत्येक मास में दो एकादशी पड़ती है एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में।   हिन्दू पंचाग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. अश्विन मास चार्तुमास का तीसरा मास होता है। अश्विन मास भाद्रपद के पश्चात और कार्तिक मास से पहले आता है। चार्तुमास में जप, तप पूजा, पाठ और व्रत करने का विशेष फल प्राप्त होता है। पापांकुशा एकादशी के दिन विष्णु भगवान के पद्मनाभ रूप की पूजा करना शुभ माना जाता है. पापांकुशा एकादशी महत्व  भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पश्चात महाराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का महत्व बताया था .  पापांकुशा एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है. इस दिन पद्मनाभ भगवान की पूजा करनी चाहिए. इस एकादशी का फल वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से कई गुना अधिक मिलता है. इस एकादशी के प्रभाव से अन्न,धन, आरोग्यता और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत

GANESH CHALISA LYRICS IN HINDI

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           ।। गणेश चालीसा।।  गणेश जी भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी विध्न हर्ता है। हम कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी का ध्यान करते हैं। बुधवार के दिन भक्त श्री गणेश जी को प्रसन्न करने हेतु गणेश जी के शुभ नाम जपते हैं, गणेश चालीसा और आरती करते हैं ताकि विध्न विनाशक गणेश जी उनके जीवन में आने वाले विध्नों को दूर कर उन्हें शुभ लाभ प्रदान करें।              ।।दोहा।।  जय गणपति सद्गुण सदन,  कवि   वर  बदन  कृपाल। विध्न हरण मंगल करण,  जय जय गिरिजालाल।।            ।।चौपाई।। जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू।।  जय गजबदन सदन सुखदाता।  विश्व विनायक बुद्घि विधाता ।। वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।। राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।। पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।  मोदक भोग सुगन्धित फूलं।। सुन्दर पीताम्बर तन साजित।  चरण पादुका मुनि मन राजित।। धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।  गौरी ललन  विश्व  विख्याता।। ऋद्घि सिद्घि तब चंवर सुधारें।  मूषक  वाहन  सोहत  द्वारे।। कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी,  अति शुचि पावन मंगल कारी। एक समय गिरि रा

SHRI KRISHNA DWARKADHISH LEELA

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श्री कृष्ण को द्वारिकाधीश क्यों कहा जाता है ? श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। उनका जन्म कंस वध और उसके जैसे दुष्टों का वध कर पृथ्वी का उद्धार करने के लिए हुआ था। श्री कृष्ण को हम लड्डू गोपाल , दामोदर, मुरारी, गिरधर, गोपाल कई नामों से जानते हैं उनमें से उनका एक नाम द्वारिकाधीश भी है। श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे इसलिए उन्हें द्वारिकाधीश कहा जाता है। श्री कृष्ण मथुरा छोड़ कर द्वारिका पुरी क्यों चले गए ? जब श्री कृष्ण ने मथुरा में कंस का वध कर दिया तो कंस की दोनों पत्नियां जिनके नाम अस्ति और प्राप्ति थे, वह कंस वध के पश्चात दुखी हुई और अपने पिता जरासंध के पास चली गई।  जब जरासंध को कंस वध का समाचार मिला तो वह बहुत क्रोधित हुआ उसने श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए अपने मित्र राजाओं को मथुरा पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा। उसने अपने मित्र राज्य के साथ मिलकर हाथी, घोड़े और रथों की चतुरंगिनी सेना सजा कर मथुरा पर धावा बोल दिया ।श्री कृष्ण मनन करने लगे कि मेरा अवतार तो पृथ्वी का भार उतारने के लिए हुआ है‌। इसलिए पहले जरासंध का वध करूँ या फिर उसकी सेना का ? श्री कृष्ण ने पहले उसकी सेना

SHIVALA BAGH BHAIYA MANDIR AMRITSAR

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शिवाला बाग भाईया अमृतसर  सावन मास भगवान शिव को अति प्रिय है। सावन मास में भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु उनकी पूजा अर्चना करते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां सावन सोमवार को लेकर विशेष मान्यता है।  शिवाला बाग भाईया भगवान शिव का सुन्दर और सिद्ध मंदिर है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जहां पर भक्तों द्वारा सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व‌ पर और सावन मास में पड़ने वाले सोमवार को बहुत दूर- दूर से श्रद्धालु आते हैं।  सावन सोमवार को चौपहरा की मान्यता  सावन सोमवार को लेकर मंदिर के बारे में मान्यता है कि जहां मंदिर में चौपहरा गुजारने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।  चौपहरा के लिए आने वाले भक्त स्नान कर सुच्चे मुंह मंदिर में आते हैं और भगवान शिव को जल अर्पित करने के पश्चात भोजन करते हैं। चौपहरा काटने वाले भक्त चौपहरे तक मंदिर परिसर में ही रहना होता है।  इसलिए भक्त अपना भोजन साथ में ही लाते हैं जिसे वह भगवान शिव के दर्शन के पश्चात मंदि

SHRI KRISHNA KO RANCHHOD KYUN KAHA

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 श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है? भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। भगवान श्री कृष्ण को बहुत से नामों से पुकारा जाता है जैसे गिरधर, गोपाल, दामोदर, मुरारी उन में से श्री कृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है। श्री कृष्ण ने बाल लीला में ही पुतना , शकटासुर और तृणावर्त , बकासुर और अघासुर जैसे दैत्यों का वध कर दिया था। श्री कृष्ण ने कंस जैसे दुष्ट का वध किया।  लेकिन जब कालयवन श्री कृष्ण से लड़ने आया तो श्री कृष्ण जानते थे कि वह उसका वध नहीं कर सकते इसलिए श्री कृष्ण उसके मृत्यु तक पहुंचने के लिए भागे थे। श्री कृष्ण को रणछोड़ नाम किस ने दिया ? श्री कृष्ण को यह नाम कालयवन‌ ने दिया था। जब कालयवन जरासंध की ओर से श्री कृष्ण से युद्ध लड़ने आया तो श्री कृष्ण उससे युद्ध लड़ने की बजाय मैदान छोड़ कर वहां से भाग गए तो उनके इस तरह भागने पर कालयवन ने श्री कृष्ण को रणछोड़ नाम दिया था जिसे श्री कृष्ण ने सहर्ष स्वीकार किया। कालयवन के साथ युद्ध के समय भागना भगवान श्री कृष्ण की रणनीति ही थी क्योंकि कालयवन ने भगवान शिव की तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था कि उसे ना ही कोई चंद्रवंशी मार सकता है

ASHWIN MAAS INDRA EKADSHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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अश्विन मास कृष्ण पक्ष इंदिरा एकादशी  10 OCTOBER 2023  हिन्दू पंचाग के अनुसार पितृपक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता हैं. अश्विन मास चार्तुमास का तीसरा महीना होता है. चार्तुमास मास में व्रत, पूजा, पाठ ,जप- तप का विशेष फल प्राप्त होता है.  इंदिरा एकादशी का व्रत करने से सात पीढ़ियों के पितृ तर जाते हैं। पितृरों की मुक्ति के लिए इस व्रत का बहुत महत्व है. इंदिरा एकादशी व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.  SIGNIFICANCE OF INDRA EKADASHI इंदिरा एकादशी महत्व  धार्मिक मान्यता के अनुसार इंदिरा एकादशी पापों को नष्ट करने वाली है . इस व्रत के प्रभाव से सात पीढ़ियों के पितृ तर जाते हैं और जो पितृ अधोगती को प्राप्त हुए हैं वह पितृ भी तर जाते हैं, उनका उद्धार हो जाता है.पितृ दिव्य लोक के अधिकारी हो जाते हैं. एकादशी व्रत करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु के सालिग्राम रूप की पूजा की जाती है. इस दिन गरीबों को दान करने का भी बहुत महत्व है। INDRA EKADASHI VRAT KATHA इंदिरा एकादशी व्रत कथा महिष्मती नगर में इन्द्रसेन नाम का राजा धर्म पूर्व

MAHARISHI VEDVYAAS JIVAN PARICHAY

 महर्षि वेदव्यास जी    महार्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। वेद व्यास जी ने ही वेदों को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद नाम दिया थी। वेदों के विभाजन के कारण ही उनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। महर्षि वेद व्यास जी का नाम कृष्णद्वैपायन है।  उनके नाम पर ही गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहा जाता है. उस दिन गुरु को व्यास जी का अंश मान कर पूजा की जाती है.   महर्षि वेद व्यास जी के पिता का नाम महर्षि पराशर और माता का नाम सत्यवती था। उनकी पत्नी का नाम आरुणी था जिन्होंने शुकदेव जी को जन्म दिया। महर्षि वेद व्यास जी जन्म कथा  महर्षि वेद व्यास के पिता महर्षि पराशर एक बार भ्रमण पर निकले तो उनकी दृष्टि एक सुंदर कन्या पर पड़ी। उनका नाम सत्यवती था जो कि एक मछुआरे की कन्या थी उसके शरीर से मछली की गंध आती थी इस कारण उस कन्या को मत्स्य कन्या भी कहा जाता था बड़ी होने पर वह कन्या नाव खेने का काम करने लगी। महर्षि पराशर ने एक बार कन्या से उन्हें यमुना नदी पार करवाने के लिए कहा तो सत्यवती ने उनको नाव में बैठा लिया। महर्षि पराशर सत्यवती की सुंदरता और रूप पर आसक्त हो गए और नाव में

AKRURA JI KO SHRI KRISHNA NE HASTINAPUR KYUN BHEJA

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श्री कृष्ण ने अक्रूर जी को हस्तिनापुर क्यों भेजा था ?  अक्रूर जी कंस के दरबार में एक मंत्री थे। अक्रूर जी का वर्णन महाभारत और श्रीमद्भागवत पुराण में आता है।  अक्रूर जी के पिता का नाम श्वफल्क और माता का नाम गांदिनी था।  अक्रूर जी का जन्म यदुवंश में हुआ था और वह रिश्ते में वसुदेव जी के भाई लगते थे।  जब नारद जी ने कंस को बता दिया कि श्री कृष्ण और बलराम के हाथों तुम्हारी मृत्यु लिखी है तो कंस ने अक्रूर जी को ही श्री कृष्ण बलराम को लेने मथुरा भेजा था।  अक्रूर जी जब श्री कृष्ण और बलराम जी को मथुरा से ला रहे थे तो वृन्दावन से मथुरा के मार्ग पर अक्रूर जी ने श्री कृष्ण के दिव्य दर्शन किये थे। अक्रुरजी का हस्तिनापुर जाना भगवान श्री कृष्ण कंस वध‌ के पश्चात अक्रूर जी के घर पधारे तो अक्रूर जी ने श्री कृष्ण का पूजन और स्तुति की।  श्री कृष्ण अक्रूर जी से कहने लगे कि," आप पांडवों का हित जानने के लिए हस्तिनापुर प्रस्थान करें क्योंकि धृतराष्ट्र अब कुंती और उसके पुत्री को हस्तिनापुर ले आया है लेकिन धृतराष्ट्र लोभी स्वभाव का है इसलिए वह कुंती के पुत्रों के साथ समान व्यवहार नहीं करता। वह नैत्रों के स

CHATURMAS 2023 DATE SIGNIFICANCE KATHA

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चार्तुमास 2023 शुरू - देवशयनी एकादशी - 29 जून, वीरवार  चार्तुमास 2023 समाप्त - देवउठनी एकादशी - 23 नवंबर 2023 चार्तुमास देवशयनी एकादशी से शुरू होता और देवउठनी या हरि प्रबोधिनी एकादशी पर समाप्त होता है। 2023 में अधिक मास होने के कारण चतुर्मास पांच महीने का होगा और सावन मास दो महीने का होगा। चार्तुमास क्या होता है ? आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन से श्री हरि विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। CHATURMAS KATHA  पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जब राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया तो भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि कहने लगे कि मैं तीन लोकों का अधिपति हूं आप मुझ से कुछ भी मांग सकते हैं लेकिन वामन भगवान कहने लगे कि राजन् मुझे केवल तीन पग भूमि ही चाहिए।  राजा ने तीन पग भूमि देने का संकल्प लिया। भगवान ने दो पग में ही तीनों लोकों को माप लिया। वह राजा बलि से कहने लगे कि तुमने मेरे साथ छल किया है। अब मैं तीसरा पग कहा पर रखूं। राजा बलि ने अपना मस्तक आगे कर