AKRURA JI KO SHRI KRISHNA NE HASTINAPUR KYUN BHEJA
श्री कृष्ण ने अक्रूर जी को हस्तिनापुर क्यों भेजा था ?
अक्रूर जी कंस के दरबार में एक मंत्री थे। अक्रूर जी का वर्णन महाभारत और श्रीमद्भागवत पुराण में आता है।
अक्रूर जी के पिता का नाम श्वफल्क और माता का नाम गांदिनी था। अक्रूर जी का जन्म यदुवंश में हुआ था और वह रिश्ते में वसुदेव जी के भाई लगते थे।
जब नारद जी ने कंस को बता दिया कि श्री कृष्ण और बलराम के हाथों तुम्हारी मृत्यु लिखी है तो कंस ने अक्रूर जी को ही श्री कृष्ण बलराम को लेने मथुरा भेजा था।
अक्रूर जी जब श्री कृष्ण और बलराम जी को मथुरा से ला रहे थे तो वृन्दावन से मथुरा के मार्ग पर अक्रूर जी ने श्री कृष्ण के दिव्य दर्शन किये थे।
अक्रुरजी का हस्तिनापुर जाना
भगवान श्री कृष्ण कंस वध के पश्चात अक्रूर जी के घर पधारे तो अक्रूर जी ने श्री कृष्ण का पूजन और स्तुति की।
श्री कृष्ण अक्रूर जी से कहने लगे कि," आप पांडवों का हित जानने के लिए हस्तिनापुर प्रस्थान करें क्योंकि धृतराष्ट्र अब कुंती और उसके पुत्री को हस्तिनापुर ले आया है लेकिन धृतराष्ट्र लोभी स्वभाव का है इसलिए वह कुंती के पुत्रों के साथ समान व्यवहार नहीं करता। वह नैत्रों के साथ हृदय से भी अंधा है।"
अक्रूर जी आप हस्तिनापुर जाकर पांडवों का समाचार लेकर आएं। अक्रूर जी श्री कृष्ण के कहने पर हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान करते हैं। अक्रूर जी वहां धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, विदुर, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य सबसे भेंटकर उनका सुख समाचार पूछा।
जब अक्रूर जी कुंती से मिले तो कुंती ने अक्रूर जी से अपने मायके वालों का हालचाल पूछा कि मेरे भाई और भाभी कैसे है कुंती ने अपने भतीजों श्री कृष्ण और बलराम जी का कुशलक्षेम पूछा।
अक्रूर जी ने कुंती को बताया कि कंस को अनुयायियों सहित श्री कृष्ण और बलराम जी ने मार दिया है। कंस ने देवकी और वसुदेव जी को बहुत तंग किया लेकिन अब सब आंनद पूर्ण है।
कुंती अक्रूर जी से पूछने लगी कि ,"क्या कभी श्री कृष्ण और बलराम मेरे पुत्रों की सुध लेंगे।" ऐसा कह कर कुंती श्री कृष्ण का ध्यान कर कहने लगी कि हे शरणागत वत्सल! मैं आपकी शरण में हूंँ , प्रभु मेरी रक्षा करें।अक्रूर जी ने कुंती को ढांढस बंधाया।
अक्रूर जी कुंती से कहने लगे कि श्री कृष्ण और बलराम ने ही मुझे जहां तुम लोगों का कुशलक्षेम पूछने भेजा है। श्री कृष्ण जरूर तुम्हारे दुखों को दूर करेंगे।
श्री कृष्ण साक्षात भगवान है उन्होंने बाल्यकाल में बलवान दैत्यों का संहार किया, अपनी उंगली पर सात दिन के लिए गोर्वधन पर्वत को उठाया, हजार हाथियों के बल वाले कुबलयापीड़ हाथी का वध किया और कंस जैसे दुष्ट का वध किया जिससे सृष्टि कांपती थी। वह श्री कृष्ण जरूर तुम्हारे दुखों को दूर कर तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का कल्याण करेंगे।
अक्रूर जी ने कुछ दिन हस्तिनापुर में रह कर अपनी आंखों से धृतराष्ट्र का पांडवों के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार और दुर्योधन का दुर्व्यवहार देखा। कुंती ने अक्रूर जी को कौरवों द्वारा पांडवों को दिये जाने विष का वृत्तांत भी सुनाया।
अक्रूर जी वापिस लौटते समय धृतराष्ट्र के पास गए और उन्हें श्री कृष्ण और बलराम का संदेश सुनाया।
अक्रूर जी कहने लगे कि तुम्हारे भाई पांडु के मरने पर तुम को हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त हुआ। तुम धर्म पूर्वक राज्य करो। राजा को सम भाव होना चाहिए इसलिए तुम पांडु पुत्रों के साथ समदृष्टि से व्यवहार करो।
राजन् जहां पर कुछ भी स्थिर नहीं रहता। जहां तक कि हमारी देह भी सदैव हमारा साथ नहीं देती। स्त्री, पुत्र, धन आदि तो दूर की बात है। मनुष्य अकेले ही अपने पाप और पुण्य के फल को भोगता है। इसलिए हे राजन! बुद्धि के साथ अपने चित्त को लगा कर शांत और समदर्शी बन कर राज्य करो।
अक्रूर जी ने मथुरा पहुंच कर श्री कृष्ण और बलराम को कुंती और पांडवों का सारा समाचार सुनाया।
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