ASHWIN MAAS INDRA EKADSHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE
अश्विन मास कृष्ण पक्ष इंदिरा एकादशी
10 OCTOBER 2023
हिन्दू पंचाग के अनुसार पितृपक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता हैं. अश्विन मास चार्तुमास का तीसरा महीना होता है. चार्तुमास मास में व्रत, पूजा, पाठ ,जप- तप का विशेष फल प्राप्त होता है.
इंदिरा एकादशी का व्रत करने से सात पीढ़ियों के पितृ तर जाते हैं। पितृरों की मुक्ति के लिए इस व्रत का बहुत महत्व है. इंदिरा एकादशी व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.
SIGNIFICANCE OF INDRA EKADASHI इंदिरा एकादशी महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार इंदिरा एकादशी पापों को नष्ट करने वाली है . इस व्रत के प्रभाव से सात पीढ़ियों के पितृ तर जाते हैं और जो पितृ अधोगती को प्राप्त हुए हैं वह पितृ भी तर जाते हैं, उनका उद्धार हो जाता है.पितृ दिव्य लोक के अधिकारी हो जाते हैं. एकादशी व्रत करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु के सालिग्राम रूप की पूजा की जाती है. इस दिन गरीबों को दान करने का भी बहुत महत्व है।
INDRA EKADASHI VRAT KATHA इंदिरा एकादशी व्रत कथा
महिष्मती नगर में इन्द्रसेन नाम का राजा धर्म पूर्वक राज्य करता था. राजा इन्द्रसेन भगवान विष्णु का भक्त था और पुत्रों, पौत्रों और धनधान्य से सम्पन्न था. एक दिन देव ऋषि नारद उसकी सभा में आए. राजा ने नारदजी का उचित सम्मान किया. नारदजी ने राजा से उनकी कुशल मंगल पूछा.
राजा इन्द्रसेन कहने लगे कि आपकी कृपा से सब कुशल है और यज्ञ आदि कर्म सुचारू रूप से हो रहे हैं. कृपया देव ऋषि अपने आने का प्रयोजन कहें.
देव ऋषि नारदजी कहने लगे कि मैंने यमराज की सभा में तुम्हारे धर्मात्मा और ज्ञानी पिता को एकादशी का व्रत भंग होने की वजह से देखा था.
तुम्हारे पिता का संदेश है कि पूर्व जन्म में एकादशी व्रत भंग होने के कारण मुझे यमलोक रहना पड़ रहा है. लेकिन अगर तुम इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित करो इससे मुझे स्वर्ग प्राप्ति हो सकती है.
राजा इन्द्रसेन ने बन्धु - बांधवों और दरबारियों सहित इंदिरा एकादशी के व्रत को सम्पन्न किया. व्रत के प्रभाव से राजा के पिता यमलोक से स्वर्ग लोक पहुँच गए.
राजा इन्द्रसेन भी व्रत के प्रभाव से इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए.
व्रत विधि
एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए.
इस दिन विष्णु भगवान के शंख, चक्र, गदा और पदम् धारी रूप की पूजा करनी चाहिए।
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप पर तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है. भगवान विष्णु का चालीसा, भगवान विष्णु की आरती, मंत्र और भगवान के नामों का पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है।
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.
भगवान कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए. गीता का पाठ करना चाहिए.
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.
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