MAA PRAVATI CHALISA LYRICS IN HINDI

   माँ पार्वती चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी 

मां पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी है। उन्हें उमा, गौरी, काली, दुर्गा, अन्नपूर्णा कई नामों से जाना जाता है। विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए और कुंवारी कन्याएं मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए मां पार्वती की पूजा करती है। उन्हें सुहाग सामग्री चढ़ाती है। सावन मास में शिव और मां पार्वती को अति प्रिय है। मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए पार्वती चालीसा और मां पार्वती की आरती करना फलदाई होता है। 



               ।।दोहा।।

 जय गिरी तनये दक्षजे, शम्भु प्रिये गुणखानि।

गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।।

                ।।चौपाई।।

ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, 

पंच बदन नित तुमको ध्यावे।

षटमुख कहि न सकत यश तेरो, 

सहसबदन  श्रम  करत  घनेरो।

तेऊ पार न पावत माता, 

स्थित रक्षा लय हिय सजाता।

अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, 

अति कमनीय नयन कजरारे।

ललित ललाट विलेपित केशर, 

कुंकुम अक्षत शोभा मनहर।

कनक बसन कंचुकी सजाए, 

कटी मेखला दिव्य लहराए।

कंठ मदार  हार की  शोभा, 

जाहि देखि सहजहि मन लोभा। 

बालारुण अनंत  छबि  धारी, 

आभूषण की  शोभा  प्यारी।

नाना रत्न जड़ित सिंहासन, 

तापर राजति हरि चतुरानन।

इन्द्रादिक परिवार पूजित, 

जग मृग नाग यष रव कूजित।

गिरकैलास निवासिनी जै जै, 

कोटिक प्रभा विकासित जै जै। 

त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, 

अणु -अणु महंतुम्हारी उजियारी।

हैं    महेश  प्राणेश!      तुम्हारे, 

त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब,

 सुकृत  पुरातन  उदित भए  तब।

बूढ़ो  बैल   सवारी   जिनकी, 

महिमा का गावे कोउ तिनकी।

 सदा श्मशान बिहारी शंकर, 

आभूषण हैं भुजंग भयंकर।

कण्ठ हलाहल को छबि छायी, 

नीलकण्ठ की पदवी पायी।

देव मगन के हित अस कीन्हों, 

विषैलै आपु तिनहि अमि दीन्हों।।

ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी, 

दूरित विदारिणी मंगल कारिणी। 

देखि  परम  सौंदर्य  तिहारो, 

त्रिभुवन चकित बनावन हारा।।

भय भीता  सो माता‌  गंगा, 

लज्जा मय है सलिल तरंगा।

सौत समान शम्भू पहंआयी,

 विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।

तेहि कों कमल बदन मुरझायो, 

लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।

 नित्यानंद      करीबरदायिनी, 

अभय भक्त कर नित अनपायिनी।

अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, 

माहेश्वरी   हिमालय     नन्दिनी।

काशी  पुरी  सदा  मन  भायी, 

सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।

भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री,

 कृपा प्रमोद सनेह विधात्री। 

रिपुक्षय कारिणी जै जै अम्बे, 

वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।

गौरी  उमा शंकरी  काली, 

अन्नपूर्णा जग प्रति पाली।

सब जन की ईश्वरी भगवती, 

पति  प्राणा  परमेश्वरी  सती।

तुमने कठिन तपस्या कीनी, 

नारद सों जब शिक्षा लीनी। 

अन्न न नीर न वायु अहारा,

 अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।

पत्र घास को खाद्यन भायउ, 

उमा नाम तब तुमने पायउ।

तप बिलोकी ऋषि सात पधारे,

 लगे डिगावन डिगी न हारे।

तब तव जय जय जय उच्चारेउ, 

सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ। 

सुर विधि विष्णु पास तब आए, 

वर देने के वचन सुनाए।।

मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, 

चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।

एवमस्तु कही ते दोऊ गए, 

सुफल मनोरथ तुमने लए।।

करि विवाह शिव सों भामा, 

पुनः कहाई हर की बामा। 

जो पढ़िहै जन यह चालीसा, 

धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।

      ।।दोहा।।

कूट चंद्रिका सुभग शिर,जयति जयति सुख खानि।

 पार्वती निज भक्त हित,   रहहु   सदा    वरदानि।।

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