MAHARISHI VEDVYAAS JIVAN PARICHAY
महर्षि वेदव्यास जी
उनके नाम पर ही गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहा जाता है. उस दिन गुरु को व्यास जी का अंश मान कर पूजा की जाती है.
महर्षि वेद व्यास जी के पिता का नाम महर्षि पराशर और माता का नाम सत्यवती था। उनकी पत्नी का नाम आरुणी था जिन्होंने शुकदेव जी को जन्म दिया।
महर्षि वेद व्यास जी जन्म कथा
महर्षि वेद व्यास के पिता महर्षि पराशर एक बार भ्रमण पर निकले तो उनकी दृष्टि एक सुंदर कन्या पर पड़ी। उनका नाम सत्यवती था जो कि एक मछुआरे की कन्या थी उसके शरीर से मछली की गंध आती थी इस कारण उस कन्या को मत्स्य कन्या भी कहा जाता था बड़ी होने पर वह कन्या नाव खेने का काम करने लगी।
महर्षि पराशर ने एक बार कन्या से उन्हें यमुना नदी पार करवाने के लिए कहा तो सत्यवती ने उनको नाव में बैठा लिया।
महर्षि पराशर सत्यवती की सुंदरता और रूप पर आसक्त हो गए और नाव में बैठने के पश्चात उन्होंने सत्यवती से सहवास के लिए निवेदन किया। सत्यवती ने उनके इस निवेदन को मानने के लिए उनके सम्मुख तीन शर्तें रखी।
महर्षि पराशर के सामने पहली शर्त रखी कि उनको संभोग करते हूं कोई ना देख सके।
सत्यवती ने दूसरी शर्त रखी कि उसके शरीर से मछली के स्थान पर सुगंधित पुष्पों की खुशबू आएं।
सत्यवती ने तीसरी शर्त रखी कि उसके संबंध बनाने के पश्चात उसके गर्भ से महाज्ञानी पुत्र उत्पन्न हो ना कि एक मछुआरा।
महर्षि पराशर ने सत्यवती की तीनों शर्तें मान ली।
पहली शर्त के अनुसार उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से एक द्वीप का निर्माण कर उसके चारों ओर घना कोहरा कर दिया ताकि प्रणय मिलन करते समय उनको कोई देख ना सके ।
दूसरी शर्त के अनुसार सत्यवती के शरीर से मछली के स्थान पर सुगंधित पुष्पों की खुशबू आने लगी।
तीसरी शर्त को भी उन्होंने मान लिया कि उनका पुत्र ब्रह्मज्ञानी होगा। महर्षि पराशर ने उनको यह वरदान भी दिया कि संभोग के पश्चात भी उनका कौमार्य कायम रहेगा।
सत्यवती की सभी शर्तों को स्वीकार करने के पश्चात दोनों ने कोहरे से भरे द्वीप पर संभोग क्रिया। सत्यवती ने समय आने पर एक पुत्र को जन्म दिया जो कि जन्म से ही महाज्ञानी था। पैदा होते ही बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से कहने लगा कि जब भी वह उन्हें स्मरण करेंगी मैं उपस्थित हो जाऊंगा और वह स्वयं द्वैपायन द्वीप की ओर चले गए।
महर्षि वेद व्यास जी का योगदान
महर्षि वेद व्यास जी त्रिकालदर्शी थे । इसलिए उन्हें आभास हो गया था कि कलयुग में धर्म क्षीण हो जाएगा। साधारण मनुष्य के लिए एक विशाल वेद का अध्ययन करना संभव नहीं होगा इसलिए उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर दिया। महर्षि वेदव्यास जी ने ही महाभारत और 18 पुराणों की भी रचना की ।
महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों के चार भाग किये और उन्हें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद नाम दिया। वेदों के विभाजन के कारण ही वह वेद व्यास नाम से विख्यात हुए। उन्होंने इन वेदों को अपने शिष्यों पैल , जैमू, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया। महर्षि वेद व्यास जी ने अपने शिष्यों के सामर्थ्य के अनुसार उन वेदों की शाखाएं बना दी।
महर्षि वेद जी ने अठाहरा पुराण की भी रचना की जिन में वेदों के ज्ञान को कथाओं के रूप में कहा गया था। महर्षि वेद व्यास जी ने अपने शिष्य रोमहर्षण को पुराणों का ज्ञान दिया।
महाभारत की रचना की वेद व्यास जी ने इस महाग्रंथ को गणेश जी से लिखवाया था।
पुराणों और महाभारत की रचना के पश्चात उन्होंने ब्रह्म सुत्रोंकी रचना भी की।
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