SHRI KRISHNA DWARKADHISH LEELA

श्री कृष्ण को द्वारिकाधीश क्यों कहा जाता है ?



श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। उनका जन्म कंस वध और उसके जैसे दुष्टों का वध कर पृथ्वी का उद्धार करने के लिए हुआ था। श्री कृष्ण को हम लड्डू गोपाल, दामोदर, मुरारी, गिरधर, गोपाल कई नामों से जानते हैं उनमें से उनका एक नाम द्वारिकाधीश भी है। श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे इसलिए उन्हें द्वारिकाधीश कहा जाता है।

श्री कृष्ण मथुरा छोड़ कर द्वारिका पुरी क्यों चले गए ?

जब श्री कृष्ण ने मथुरा में कंस का वध कर दिया तो कंस की दोनों पत्नियां जिनके नाम अस्ति और प्राप्ति थे, वह कंस वध के पश्चात दुखी हुई और अपने पिता जरासंध के पास चली गई। 

जब जरासंध को कंस वध का समाचार मिला तो वह बहुत क्रोधित हुआ उसने श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए अपने मित्र राजाओं को मथुरा पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा।

उसने अपने मित्र राज्य के साथ मिलकर हाथी, घोड़े और रथों की चतुरंगिनी सेना सजा कर मथुरा पर धावा बोल दिया ।श्री कृष्ण मनन करने लगे कि मेरा अवतार तो पृथ्वी का भार उतारने के लिए हुआ है‌। इसलिए पहले जरासंध का वध करूँ या फिर उसकी सेना का ?

श्री कृष्ण ने पहले उसकी सेना के संहार का करने का निश्चय किया क्योंकि श्री कृष्ण सोचने लगे कि पृथ्वी का भार यह सेना है ।जरासंध स्वयं सबको एकत्रित करके लाया है एक- एक को ढूंढ कर मारने से अच्छा है कि पृथ्वी का भार उतारने के लिए इन सभी राजाओं की एकत्रित सेना को एक बार में ही मार दूं। इन सभी के विनाश के लिए ही तो मैंने अवतार लिया है

उसी समय दो सुसज्जित रथ वहाँ आकाश मार्ग से आएं तो श्री कृष्ण बलराम जी से कहने लगे कि यादवों की रक्षा के लिए इस रथ में बैठ कर जरासंध की तईस अक्षौहिणी सेना का वध कर पृथ्वी को उनके भार से मुक्त करने का समय आ गया है।श्री कृष्ण और बलराम रथ में बैठ कर जरासंध से युद्ध करने के लिए निकले।

 कृष्ण और बलराम जी ने जरासंध की सेना को नष्ट कर दिया ।अब केवल जरासंध ही शेष बचा था तो बलराम जी जैसे ही उसे पकड़ कर बांधने लगे ,श्री कृष्ण ने उन्हें रोक दिया । श्री कृष्ण कहने लगे कि इससे अभी ओर काम भी लेना है ।यह ऐसे ही दुष्टों की सेना लाता रहेगा और हम उसे समाप्त करते रहेंगे।

इस प्रकार श्री कृष्ण और बलराम जी ने जरासंध को छोड़ दिया जरासंध ने कुछ समय के अंतराल में तेईस - तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किया लेकिन मथुरा को श्री कृष्ण का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए जरासंध को हर बार वापसी लौटना पड़ता। श्री कृष्ण हर बार उसकी सेना को मार भगाते।

काल यवन राक्षस का मथुरा पर आक्रमण 

लेकिन जब अट्ठारवीं बार जरासंध युद्ध करने के लिए आना चाहता था तो उसी समय काल यवन नाम के म्लेच्छ ने मथुरा नगरी को घेर लिया। काल यवन ने नारद जी से पूछा था कि मुझ जैसे बलवान से युद्ध लड़ने योग्य कौन है? नारद जी ने ही कालयवन‌ से कहा था कि," यादव तुम्हारे जैसे बलवान है, तुम उनसे जाकर युद्ध करो।"

श्री कृष्ण और बलराम जी सोचने लगे कि काल यवन बहुत बलवान है यह तो भगवान शिव के वरदान से रक्षित है इसलिए अगर यह हम से नहीं मरा तो यह हमारे भाई बंधुओं को मार डालेगा या भी बंदी बनाकर कर अपने राज्य ले जाएगा।

अगर युद्ध आरम्भ करते हैं तो कही उसी समय जरासंध भी अपनी सेना सहित आक्रमण ना कर दे ।इसके साथ -साथ मथुरा की प्रजा जरासंध के बार बार के आक्रमण से त्रस्त हो चुकी थी। श्री कृष्ण जानते थे कि जरासंध मेरे ही कारण बार बार मथुरा पर आक्रमण कर रहा है। लेकिन विधि के विधान के अनुसार उसका वध तो भीम के हाथों लिखा था।   

श्री कृष्ण कहने लगे कि कोई ऐसी नगरी का निर्माण किया जाए कि जहां कोई ना पहुंच पाए और मैं अपने भाई बंधुओं को सुरक्षित वहां भेज सकूं। ऐसा विचार कर श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा को एक अद्भुत नगरी बनाने के लिए आदेश दिया। नगरी का निर्माण हो जाने पर श्री कृष्ण ने अपनी योग माया के बल पर सबको परिवार सहित पहुंचा दिया था। श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे इसलिए उन्हें द्वारिकाधीश कहा जाता है।

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