SHRI KRISHNA KO MATHURA LAANE KAUN GAE
श्री कृष्ण को वृन्दावन से मथुरा लाने कौन गए थे ?
नारद जी का कंस को श्री कृष्ण और बलराम की सच्चाई बताना
वृषभासुर के वध के पश्चात नारदजी कंस के पास और उसे श्री कृष्ण और बलराम की सच्चाई बता दी। नारद जी कहने लगे कि तुम्हें दोनों भाईयों को मथुरा बुलाना चाहिए।
कंस ने सच्चाई जान कर देवकी और वसुदेव जी को फिर से बेड़ियों में बांध कर जेल में कैद करवा दिया।
कंस ने अपने मंत्रियों और हाथियों के महावतों को बुलाकर कहा दिया जब कृष्ण और बलराम मथुरा आएं तो तुम उनको मार देना क्योंकि नारद जी ने बताया है कि मेरी मृत्यु इन दोनों के हाथों से होगी। इस लिए मैं चाहता हूं कि वह दोनों भाई यहांँ आये और तुम सब किसी ना किसी तरह से दोनों को मार देना।
कंस के मंत्री ने सुझाव दिया कि आप एक यज्ञ का आयोजन करें और उसके होम के लिए भैंसें और बकरे मंगवाएं। कृष्ण और बलराम जब जहाँ आएंगे तो कोई ना कोई उनको मार ही देगा। कंस ने रंगभूमि के चौतरे पर शिव यज्ञ का आयोजन किया। ब्राह्मणों ने कार्तिक चौदस को यज्ञ आरम्भ करने को कहा।
अक्रूर जी श्री कृष्ण बलराम को मथुरा लाने जाना
कंस ने अक्रूर जी को बुलाकर उनकी प्रशंसा की और उन्हें श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा लाने का कार्य सौंपा। अक्रूर जी सोचने लगे कि कंस दुष्ट है अगर इसकी बात नहीं मानी तो अभी मुझे मार देगा। होनहार के आगे किसी का कोई जोर नहीं है। इसलिए अक्रूर जी कहने लगे कि मैं सुबह ही वृन्दावन चला जाऊंगा और दोनों भाईयों को यहां ले आउँगा।
अक्रुरजी जी का मथुरा पहुंचने पर श्री कृष्ण और बलराम बहुत सम्मान करते हैं। वह अक्रूर जी से अपने स्वजनों का हालचाल पूछते हैं कि आप जैसे सज्जन पुरुष कंस के साथ कैसे रहते हैं?
अक्रूर जी ने नंद बाबा को कंस के यज्ञ का संदेश दिया और कंस का बच्चों और गोपों सहित मेला देखने आने का संदेश दिया।
श्री कृष्ण और बलराम अक्रूर जी के साथ रथ पर बैठकर दिन के तीसरे पहर मथुरा पहुंचे ।
अक्रूर जी श्री कृष्ण से उनके घर पधारने को कहते हैं तो श्री कृष्ण कहने लगेकि मैं कंस को मारकर आपके घर आऊंगा।
मथुरा के नर नारी दोनों भाईयों के दर्शन कर धन्य हुए। मथुरा वासी कहते हैं कि गोप गोपियों ने जरुर कोई भारी पुण्य किया होगा नित्य आनंद देने वाले श्री कृष्ण के दर्शन करते हैं।
श्री कृष्ण का धोबी से वस्त्र मांगना
उसी समय वहां पर कंस का धोबी आया है तो श्री कृष्ण ने उससे उत्तम और योग्य वस्त्र मांगे। वह धोबी कंस का सेवक होने के कारण अहंकार से भर कर कहने लगा कि तुम क्या पहाड़ों जंगलों में रहते हुए ऐसे ही वस्त्र धारण करते थे । अपना भला चाहते हो तो दोबारा ऐसी मांग मत करना। श्री कृष्ण ने अपने हाथ के अग्रभाग से उसके धड़ को नीचे गिरा दिया।यह देख धोबी के सब साथी कपड़ों की पोटली वहीं छोड़ कर भाग गए।
दोनों भाईयों ने अपने मनचाहे वस्त्र धारण कर लिये और शेष गोपों को दे दिये। एक दर्जी ने दोनों के लिए सुंदर वस्त्र बनाकर उन्हें भेंट किये तो श्री कृष्ण ने उन्हें लक्ष्मी और ऐश्वर्य प्रदान किया।
श्री कृष्ण बलराम का माली
श्री कृष्ण और बलराम गोपों सहित सुदामा माली के पास पहुंचे तो उसने माला , बीड़ा और चंदन के तिलक से उनका स्वागत और पूजन किया। श्री कृष्ण और बलराम जी ने सुदामा को वरदान दिया। सुदामा ने भगवान में अपनी निश्चल भक्ति और प्राणी मात्र से दया का भाव बनाएं रखने का वरदान मांगा। श्री कृष्ण वह वरदान दिया और लक्ष्मी, बल और कीर्ति बढ़ाने का भी वरदान दिया।
कुब्जा का उद्धार
कुब्जा त्रिवक्रा नाम की कंस की दासी थी और कंस के लिए उत्तम लेप बनाती थी।
श्री कृष्ण ने रास्ते में एक युवती को चंदन का प्याला लेकर जाते हुए देखा तो उन्होंने कुब्जा को रोक कर पूछा कि तुम कौन हो? और यह चंदन किस के लिए लेकर जा रही हो।?अगको तुम यह चंदन हमें लगा दो तो तुम्हारा कल्याण होगा।
कुब्जा कहने लगी कि यह चंदन कंस के लिए है क्यों कि उसे मेरे हाथ से घिसा हुआ चंदन बहुत प्रिय है। लेकिन श्री कृष्ण की मधुरता, रूप और चितवन से मोहित होकर कुब्जा ने वो चंदन दोनों भाईयों को भेंट कर दिया। उसके चंदन से श्री कृष्ण और बलराम जी के शरीर की शोभा और बढ़ गई।
श्री कृष्ण ने अपने पैरों से उसके पांव के अगले भाग को दबाकर हाथ से उसकी ठोड़ी पकड़ कर उसके शरीर को जैसे ही ऊँचा किया वैसे ही कुब्जा सीधे और समान अंग वाली बन गई।
कुब्जा श्री कृष्ण से कहने लगी कि प्रभु आप मेरे घर पर चले। भगवान कहने लगे कि मैं कार्य सिद्ध होने पर तुम्हारे घर पर आऊंगा।
कंस वध के पश्चात भगवान श्री कृष्ण कुब्जा के घर पर गए तो कुब्जा ने भगवान का यथोचित सत्कार किया कुब्जा को केवल भगवान को चंदन अर्पण करने का इतना उत्तम फल प्राप्त हुआ।
श्री कृष्ण द्वारा कुबलयापीड़ हाथी का वध (KUVALAYAPIDA HATHI VADH KATHA)
उसके पश्चात श्री कृष्ण और बलराम धनुष की जगह पर आये जिसकी रक्षा हज़ारों रक्षक कर रहे थे । श्री कृष्ण ने धनुष को मतवाले हाथी की तरह तोड़ दिया। धनुष के टूटने से इतना भयंकर शब्द हुआ कि चारों दिशाएं उसकी ध्वनि से गूँज उठी और कंस भयभीत हुआ।
पहरेदार जब दोनों भाईयों को मारने दौड़े तो दोनों ने धनुष के टुकड़ों से सबका वध कर दिया। अपनी भेजी हुई सेना का संहार सुनकर कंस को रात भर नींद नहीं आई।
रंग भूमि में कंस ने मल्ल युद्ध का आयोजन किया था। सभी लोग अपने अपने स्थान पर बैठ गए। श्री कृष्ण जब रंग भूमि के द्वार पर पहुँचे तो वहां महावत कंस के कहने पर श्री कृष्ण को मारने के लिए अपने कुबलयापीड़ हाथी के साथ खड़ा था।
श्री कृष्ण ने महावत से कहा कि हमें अंदर प्रवेश करने का मार्ग दे नहीं तो हाथी सहित तुम को यम लोक भेज दूंगा। इतना सुनते ही महावत ने हाथी को श्री कृष्ण पर चढ़ाया। हाथी ने श्री कृष्ण को अपनी सूंड में पकड़ लिया। श्री कृष्ण खिसक कर हाथी के पैरों में छिप गए। हाथी ने सूंघते हुए जब फिर श्री कृष्ण को पकड़ा तो श्री कृष्ण ने हाथी को उसकी पूंछ से पकड़ कर उसको पिछे की ओर धकेल दिया और पैरों से प्रहार कर और ठोकर मारकर उसे नीचे गिरा दिया ।
लेकिन महावत की ललकार पर हाथी फिर से भगवान श्री कृष्ण को मारने दौड़ा तो श्री कृष्ण ने उसकी सूंँड पकड़ कर धरती पर पटक दिया और उसके दांत उखाड़ कर उसी से हाथी और महावत दोनों को मार दिया।
श्री कृष्ण और बलराम का रंग भूमि में प्रवेश
श्री कृष्ण रंग भूमि में हाथी के दांत को लेकर रंग भूमि में पधारे तो भगवान का स्वरूप सबको वैसा ही दिखाई दिया जैसी जिसकी भावना थी। सब लोग कहने लगे कि यह दोनों देवकी और वसुदेव जी के पुत्र हैं। जन्म के बाद यह नंद और यशोदा के घर पर छिप कर रह रहे थे।
इन्होंने ही पुतना, शकटासुर और तृणावर्त फिर वत्सासुर बकासुर और अघासुर को मारा । कालिदास नाग का मर्दन किया, यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार किया, गोवर्धन पर्वत को उठाया और इंद्र के अहंकार को चूर किया। जब सब लोग उनको देखकर आपस में वार्ता कर रहे थे ।
चारूण का श्री कृष्ण और बलराम जी को मल्ल युद्ध के लिए ललकारना
चारूण ने मल्ल युद्ध के लिए बलराम जी को बुलाया तो श्री कृष्ण कहने लगे कि हम तो बालक है इसलिए तुम को अपने समान बल वाले के साथ मल्ल युद्ध करना चाहिए।
चारूण कहने लगा कि तुम दोनों साधारण बालक नहीं हो क्योंकि तुम ने हज़ार हाथियों के बल वाले कुबलयापीड़ हाथी का वध कर दिया।
ऐसा कह कर चारूण ने फिर से श्री कृष्ण को लड़ने के लिए ललकारा तो श्री कृष्ण चारूण से और बलराम मुष्टिक से जा भिड़े हाथों से हाथ और पैरों से पैर मिलाकर एक दूसरे से लड़ने लगे।
इस युद्ध को देखकर वहाँ बैठे सभाजन कहने लगे कि इन सुकुमार बालकों के साथ इन बलशाली पहलवानों का मल्ल युद्ध तो एक दम अन्याय है, बहुत बड़ा अधर्म है ।श्री कृष्ण ने चारूण को दोनों भुजाओं से पकड़ कर घुमने के पश्चात धरती पर पछाड़ दिया जिससे उसके प्राण पखेरू हो गए ।उधर बलराम जी ने मुष्टिक को हरा कर उसके प्राण हर लिये।
उसके पश्चात बलराम जी ने कूट नामक मल्ल को मार दिया और श्री कृष्ण ने शल को अपने चरण प्रहार से मार दिया और तोशल को चीर कर उसके दो टुकड़े कर दिये बाकी बचे मल्ल यह देखकर भाग गए।
अपनी विजय के बाद श्री कृष्ण और बलराम गोपों के संग अखाड़े में खेलने लगे तो कंस को छोड़ अन्य सभी को बहुत आनंद प्राप्त हो रहा था।
उसके पश्चात श्री कृष्ण ने कंस का वध कर दिया। कंस आठों पहर, सोते जागते श्री कृष्ण को ही देखता था इसलिए भगवत रुप को प्राप्त हुआ और भगवान ने उसका उद्धार कर दिया।
कंस के मरते ही आकाश में दुन्दुभि बजने लगी और सभी देवता फूल बरसा कर भगवान की स्तुति करने लगे श्री कृष्ण और बलराम ने माता - पिता को बंधन से मुक्त करवाया।
कंस की मृत्यु के पश्चात अपने नाना उग्रसेन को राजा बना दिया।
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