SHRI KRISHNA KO RANCHHOD KYUN KAHA
श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है?
श्री कृष्ण को रणछोड़ नाम किस ने दिया ?
श्री कृष्ण को यह नाम कालयवन ने दिया था। जब कालयवन जरासंध की ओर से श्री कृष्ण से युद्ध लड़ने आया तो श्री कृष्ण उससे युद्ध लड़ने की बजाय मैदान छोड़ कर वहां से भाग गए तो उनके इस तरह भागने पर कालयवन ने श्री कृष्ण को रणछोड़ नाम दिया था जिसे श्री कृष्ण ने सहर्ष स्वीकार किया।
कालयवन के साथ युद्ध के समय भागना भगवान श्री कृष्ण की रणनीति ही थी क्योंकि कालयवन ने भगवान शिव की तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था कि उसे ना ही कोई चंद्रवंशी मार सकता है और ना ही सूर्यवंशी। युद्ध में किसी भी हथियार से उसका वध नहीं हो सकता और ना ही कोई अपने बल के दम पर उसे हरा सकता है इसलिए श्री कृष्ण जानते थे कि उसे किसी और तरीके से ही मारना पड़ेगा।
काल यवन ने नारद जी से पूछा था कि मुझ जैसे बलवान से युद्ध लड़ने योग्य कौन है? नारद जी ने ही कालयवन से कहा था कि यादव तुम्हारे जैसे बलवान है तुम उनसे जाकर युद्ध करो। कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया।
श्री कृष्ण जब मथुरा से बाहर निकले तो उनकी शोभा देखकर कालयवन सोचने लगा कि यह ही श्री कृष्ण लगता है क्योंकि इसकी छवि जैसी नारद जी ने वर्णन की थी उससे मिलती है।
श्री कृष्ण ने कालयवन को अकेले युद्ध करने के लिए ललकार। श्री कृष्ण कहने लगे कि युद्ध मेरे और अकेले कालयवन के बीच में होगा। दोनों की ओर से कोई भी सैनिक युद्ध में नहीं लड़ेगा। कालयवन युद्ध के लिए मान गया तो श्री कृष्ण वहां से भाग कर एक गुफा में चले गए।
गुफा में राजा मुचकुंद सो रहे थे। राजा मुचकुंद ने त्रेता युग में देवताओं की ओर से दैत्यों को हराने के लिए कई वर्षों तक युद्ध किया था। जब राजा ने दैत्यों को युद्ध में हरा दिया तो देवराज इन्द्र ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा।
राजा मुचकुंद कहने लगे कि मैं लगातार युद्ध करके थक गया हूं मैं निर्विघ्न सोना चाहता हूंँ तो देवराज इन्द्र ने उन्हें वरदान दिया कि अगर कोई भी उनकी निद्रा भंग करेगा वह जल कर राख हो जाएंगा।
श्री कृष्ण ने गुफा में घुस कर अपना पिताम्बर राजा मुचकुंद के ऊपर डाल दिया। कालयवन जब श्री कृष्ण के पीछे गुफा में गया तो उसने सोचा कि श्री कृष्ण पीताम्बर ओढ़ कर जानबूझकर कर सोने का स्वांग रच रहे हैं।
उसने राजा मुचकुंद को श्री कृष्ण समझ कर लात मारी तो राजा मुचकुंद ने जैसे ही आंख खोलकर देखा तो उनकी देह से अग्नि प्रकट हुई जिसके कारण कालयवन वहीं पर राख हो गया।
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