YUDHISHTHIR AUR NEVLA KI KAHANI युधिष्ठिर और नेवले की कहानी
YUDHISHTHIR NEVLA KI MYTHOLOGICAL STORY IN HINDI
महाभारत युद्ध में विजयी होने के पश्चात युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त हुआ। श्री कृष्ण और महर्षि वेद व्यास जी ने युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा।
पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उनके इस यज्ञ में हजारों की संख्या में राजा, महाराजा, ऋषि, मुनि और ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया। पांडवों ने दिल खोलकर याचकों को दान दिया जिससे हर कोई युधिष्ठिर द्वारा किए गए यज्ञ और दान पुण्य की प्रशंसा करने लगा। जिससे युधिष्ठिर के मन में अहंकार पैदा हो गया। श्री कृष्ण समझ गए कि युधिष्ठिर का अहंकार दूर करना पड़ेगा।
उसी समय एक नेवला वहां आया जिसका आधार शरीर स्वर्ण का था। वह वहां यज्ञ भूमि में लोटने लगा।
नेवला युधिष्ठिर से कहने लगा कि," मैंने सुना था कि पांडवों द्वारा करवाया गया यज्ञ सबसे वैभवशाली और बड़ा है लेकिन मेरी दृष्टि में इस यज्ञ की कोई महानता नहीं है।"
वहां उपस्थित लोग कहने लगे कि," यह तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ? हमने तो इससे बड़ा यज्ञ कहीं नहीं देखा।"
नेवला ने बताया कि, "पांडवों से भी महान यज्ञ वहां था जहां लोटने पर मेरा आधा शरीर सोने का हो गया।"
नेवला कथा सुनने लगा कि, एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू के साथ रहता था और जो भी खाने को मिलता उसको मिल बांट कर खाते थे।
एक बार गांव में अकाल पड़ा तो कई दिन उन सबको भोजन नहीं मिल। बहुत दिन के बाद उनको थोड़ा सा आटा मिला तो ब्राह्मणी ने उससे भोजन बना कर उसको खाने के लिए चार बराबर भागों में बांट दिया।
लेकिन जैसे ही वह भोजन करने वाले थे, तभी एक अतिथि आ गया। ब्राह्मण ने अपनी रोटी का हिस्सा उस अतिथि को दे दिया। लेकिन उससे उस अतिथि की भुख नहीं मिटी तो उस ब्राह्मण की पत्नी ने भी अपना भोजन अतिथि को दे दिया।
उसके पश्चात भी जब अतिथि की भूख शांत नहीं हुई तो उसके पुत्र और पुत्रवधू ने भी अपने हिस्से का भोजन उस अतिथि को खाने के लिए दे दी।
अतिथि तृप्त होकर चला गया लेकिन ब्राह्मण का सारा परिवार भूखा ही रह गया।
उस अतिथि द्वारा खाते वक्त अन्न के कुछ कण जमीन पर गिरे थे। नेवला उन पर लोटने लगा जिससे उसका आधा शरीर सोने का हो गया।
नेवला कहने लगा कि तब से मैं सारी पृथ्वी पर घूम रहा हूं मुझे वैसा यज्ञ कहीं भी नहीं मिला। इसलिए मेरा आधा शरीर सोने का है और आधा भूरा ही रह गया।
जब मैंने पांडवों द्वारा करवाए गए इस महान यज्ञ के बारे में सुना तो मैं यहां चला आया ताकि मेरा पूरा शरीर सोने का हो सके। लेकिन मैंने पूरी यज्ञ भूमि पर लोटकर देख लिया लेकिन मेरा शरीर सोने का नहीं हुआ। इसलिए महाराज युधिष्ठिर द्वारा करवाए गए इस अश्वमेध यज्ञ की मेरी दृष्टि में कोई महानता नहीं है।
नेवले की बात सुनकर युधिष्ठिर के मन में यज्ञ को लेकर जो अहंकार पैदा हुआ था वह चूर हो गया। फिर युधिष्ठिर श्री कृष्ण से उस ब्राह्मण द्वारा किए गए दान की महानता के बारे में पूछा।
श्री कृष्ण कहने लगे कि, महाराज आप ने निःसंदेह महान यज्ञ का आयोजन किया था लेकिन वह आयोजन अपने अपनी कुल सम्पत्ति में से कुछ भाग गरीबों, ब्राह्मणों और याचको को दिया। लेकिन उस ब्राह्मण और उसके परिवार ने अपनी भूख की चिंता किए बिना अपना - अपना भोजन उस अनजान अतिथि को दिया। इसलिए उसके यज्ञ को नेवला ज्यादा महान कह रहा है ।
इसलिए कहा जाता है कि श्रद्धा पूर्वक और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। अगर आप के पास कुछ नहीं है तो आप जल दान कर सकते हैं।
श्री कृष्ण ने सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ जी के अहंकार को कैसे तोड़ा
"मैं ना होता तो क्या होता" पढ़ें हनुमान जी का अहंकार कैसे दूर हुआ
हनुमान जी ने बाली के अहंकार को कैसे चूर किया
महात्मा बुद्ध की राजा का अहंकार दूर करने की कथा
श्री कृष्ण ने मोरध्वज की परीक्षा लेकर अर्जुन का अहंकार कैसे चूर किया
Comments
Post a Comment