GANESH CHATURTHI PER CHANDER DARSHAN KYUN NAHI KARNA CHAHIYE
गणेश चतुर्थी पर क्यों नही करते चंद्र दर्शन और चंद्रमा के दर्शन करने पर क्या उपाय करें
भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेशोत्सव मनाया जाता है . इस दिन को कलंक चतुर्थी, गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्र दर्शन करने से मिथ्या आरोप लगता है।
गणेश चतुर्थी का महत्व
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि हर तरह के विघ्न और बाधा को दूर हो जाएं.वह भक्तों के संकट दरिद्रता और रोग हर लेते हैं.
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एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का उपहास किया. गणेश जी ने उसे शाप दिया था कि तुम्हें अपने रूप पर इतना अभिमान है . आज से यह रूप ही तुम्हारे कलंक का कारण बनेगा . जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा उस पर मिथ्या कलंक जरूर लगेगा.
ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को कहा कि गणेश जी के श्राप को केवल गणेश जी ही काट सकते हैं . इसलिए आप गणेश जी की शरण में जाए . ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को कृष्ण चतुर्थी की रात्रि को गणेश जी का पुजन करने की विधि कही.
चंद्रमा के पूजन से गणेश जी प्रसन्न हो गए. गणेश जी ने चंद्रमा को वरदान मांगने को कहा. चंद्रमा ने कहा कि सभी मेरा दर्शन पूर्ववत कर सके ऐसा वरदान दे.
गणेश जी ने कहा कि अपना शाप तो मैं वापिस नहीं ले सकता. भाद्रमाह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो आपके दर्शन करेगा उसको मिथ्या कलंक का सामना करना पड़ेगा.
लेकिन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो चंद्रमा का दर्शन करेगा वह मिथ्या कलंक से बच जाएगा. इसलिए शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चंद्र दर्शन अवश्य करने चाहिए. गणेश जी ने कहा कि मैं तुम्हारी एक कला को मस्तिष्क पर धारण करूँगा. इसलिए गणेश जी को भाल चंद्र कहलाएं.
अगर गलती से कर ले चंद्र दर्शन तो क्या करें |श्री कृष्ण पर क्यों लगा मिथ्या कलंक
एक शेर ने स्त्राजित के भाई प्रसेन को उसके घोड़े सहित मार जब मणि लेकर गुफा में जाने लगा कि तो जामबंत नामक रीछ ने सिंह को मार डाला। जामवन्त में मणि लेकर अपने बालक को खिलौने के रूप में दे दी।
राजा स्त्राजित को भाई के वापस ना आने पर चिंता होने लगी।वह सोचने लगा कि श्री कृष्ण ने उसके भाई प्रसेन को मार दिया होगा क्योंकि वह मणि गले में धारण कर वन में गया था।
उसी समय जामबन्त वहां आया और वह भगवान श्री कृष्ण को साधारण मनुष्य जानकर युद्ध करने लगा। दोनों के मध्य अट्ठाइस दिन तक युद्ध होता रहा। श्री कृष्ण के प्रहार से जब जामबन्त का अंग अंग ढीला हो गया तो उन्होंने पहचान लिया कि आप तो मेरे इष्ट देव श्री राम है।
श्री कृष्ण जामबन्त जी से कहने लगे कि मैं इस गुफा में स्यमंतकमणि को लेने आया हूं ताकि अपने ऊपर मणि को चोरी करने के मिथ्या कलंक को दूर कर सकूं। इतना सुनते ही जामबन्त जी ने मणि श्री कृष्ण को भेंट कर दी।
श्री कृष्ण ने स्त्राजित को बुलाकर मणि उसे वापस लौटा दी। स्त्राजित श्री कृष्ण पर स्यमंतकमणि चुराने के मिथ्या आरोप के कारण बहुत लज्जित महसूस कर रहा था। स्त्राजित ने अपनी सुन्दर कन्या सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ करवा दिया और मणि भी श्री कृष्ण को भेंट करनी चाही।
लेकिन श्री कृष्ण कहने लगे कि सूर्य देव ने यह मणि आप को भेंट की है इसलिए इसे आप ही रखें लेकिन इस मणि से जो स्वर्ण उत्पन्न होगा उसे तुम द्वारिका भेज देना।
जब श्री कृष्ण बलराम जी के साथ हस्तिनापुर गए थे तब शतधन्वा जिसके साथ स्त्राजित की पुत्री सत्यभामा का पहले विवाह होना निश्चित हुआ था को कृतवर्मा और अक्रूर जी ने कहा कि तुम सत्राजित की मणि क्यों नहीं ले लेते।
उसने लोभ में आ कर स्त्राजित की हत्या कर दी और मणि चुरा कर ले गया। श्री कृष्ण को जब यह समाचार मिला तो वह शीघ्र लौट आए और शतधन्वा को मारकर मणि वापस लाने के लिए प्रयास करने लगें। जब शतधन्वा को यह समाचार मिला तो उसने कृतवर्मा से मदद मांगी। लेकिन कृतवर्मा ने यह कह कर कि श्री कृष्ण से वैर के कारण कंस मारा गया और जरासंध सत्रह बार पराजित हुआ उनका मैं विरोध नहीं कर सकता।
जब शतधन्वा ने अक्रूर जी से सहायता मांगी तो वह भी कहने लगे कि जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह उठा लिया था उनको मैं बार बार प्रणाम करता हूं और उसकी मदद करने से इंकार कर दिया। शतधन्वा मणि अक्रूर जी को सौंप कर स्वयं सौ योजन चलने वाले घोड़े पर बैठकर चला गया तो श्री कृष्ण उसके पीछे दौड़े। श्री कृष्ण ने उसका सिर चक्र से काट दिया लेकिन उनको मणि नहीं मिली तो बलराम जी कहने लगे कि तुम द्वारिका जा कर मणि का पता लगाओ। श्री कृष्ण ने द्वारिकापुरी आकर सत्यभामा को शतधन्वा के मरने का समाचार सुनाया और मणि ना मिलने की भी बात बताई। श्री कृष्ण ने स्त्राजित की क्रिया करवाई।
जब कृतवर्मा और अक्रूर जी को श्री कृष्ण के द्वारा शतधन्वा के वध का समाचार मिला तो दोनों द्वारिका पुरी से चले गए। श्री कृष्ण ने उनको बुलाकर उनका आदर सत्कार किया और कहने लगे कि मैं जानता हूं कि शतधन्वा आपको स्त्राजित की मणि दे गया है। उस मणि के कारण मुझे कलंक झेलना पड़ रहा है। आप मुझे वह मणि लौटा दे ताकि मैं वह मणि अपने बंधुओं को दिखा कर अपने ऊपर लगे कलंक को उतार सकूं। श्री कृष्ण ने अपने बन्धुओं को दिखा कर वह मणि फिर से अक्रूर जी को लौटा दी और अपने ऊपर लगे कलंक को मिटा दिया।
जो भी श्री कृष्ण के इस मंगलकारी चरित्र को सुनेंगा या पढ़ेगा उसका कलंक दूर हो जाएगा।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
सिंहः प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
भाव- सिंह ने प्रसेन को मारा, सिंह को जाम्बवन्त ने मार दिया. हे सुकुमार रो मत यह स्यमन्तक मणि तुम्हारी है.
श्री गणेश आरती जय गणेश जय गणेश देवा
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