SHRI KRISHNA AUR KARNA SAMVAD STORY OF MAHABHARATA

श्री कृष्ण और कर्ण संवाद महाभारत 

SHRI KRISHNA AUR KARNA KI MORAL STORY IN HINDI/STORY OF MAHABHARAT/MOTIVATIONAL STORY IN HINDI/HINDU MYTHOLOGY STORY 

Mahabharata story: जब महाभारत युद्ध निश्चित हो चुका था तो श्री कृष्ण ने कर्ण को बता दिया कि तुम कुंती के ज्येष्ठ पुत्र हो और पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता हो।‌‌‌ श्री कृष्ण कहने लगे कि तुम को पांडवों की ओर से युद्ध करना चाहिए दुर्योधन की तरफ से युद्ध नहीं लड़ना। कर्ण ने श्री कृष्ण को दुर्योधन की ओर से ही लड़ने का अपना निश्चय बता दिया।कर्ण अपने पक्ष को उचित ठहराया और कहने लगा कि केवल दुर्योधन ने ही उसका साथ दिया था। 

 कर्ण ने श्री कृष्ण से प्रश्न किये

शुरू से ही परिस्थितियां मेरे विरुद्ध है।

कर्ण: मेरी मां ने मुझे जन्म लेते ही छोड़ दिया अवैध संतान होने में मेरा क्या कसूर क्या था?

गुरु द्रोणाचार्य ने मुझे क्षत्रिय ना होने के कारण मुझे युद्ध शिक्षा देने से इंकार कर दिया इसमें मेरा क्या कसूर था ?

द्रोपदी ने मुझे भरी सभा में अपमानित किया क्योंकि मैं राजघराने से संबंध नहीं रखता था इसमें मेरा क्या कसूर था ?

एक गाय को अनजाने में मेरा बाण लगा गया तो उसके स्वामी ने मुझे श्राप दे दिया इसमें मेरा क्या दोष था?

मेरे गुरु परशुराम ने मुझे युद्ध की शिक्षा तो दी लेकिन जब उन्हें लगा कि मैं ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय हूं तो उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जिस समय तुम को इस विद्या कि सबसे ज्याद जरूर होगी तुम इस विद्या को भूल जाओगे। इसमें मेरा क्या कसूर है?

केवल दुर्योधन ने मेरा सहयोग किया तो अगर मैं इस युद्ध में दुर्योधन की ओर से लड़ता हूंँ तो उसमें क्या ग़लत है?



श्री कृष्ण ने कर्ण को उत्तर दिया और बताया कि उसका निर्णय क्यों गलत है?


श्री कृष्ण ने उत्तर दिया कि कर्ण तुम ने अपनी विपरीत परिस्थितियों के कारण दुर्योधन का साथ देना उचित लग रहा है। लेकिन परिस्थितियां तो मेरी भी कभी अनुकूल नहीं रही।

श्री कृष्ण- मेरा जन्म से पहले मेरे माता पिता जेल में थे इसलिए मेरा जन्म कारावास में हुआ।

जन्म लेते कंस मुझे मारने की प्रतीक्षा कर रहा था। इसलिए उसकी रात मुझे अपने माता पिता से दूर गोकूल में पहुंचा दिया गया ।

कर्ण तुम खड्ग,रथ , घोड़े, धनुष बाण की आवाज सुनकर बड़े हुए लेकिन मेरा बचपन गौशाला, गाय और ग्वालों के बीच बीता। 

मुझ पर कंस के भेजे गए राक्षसों द्वारा की प्राण घाती हमले हुए।

जिन माता पिता ने मेरा पालन पोषण किया मुझे उन्हें छोड़कर आना पड़ा।

मुझे जरासंध के कारण मथुरा छोड़ कर द्वारिका पुरी बसना पड़ा जिस कारण मुझे रणछोड़ नाम दिया गया।

कर्ण तुम ने अपनी पसंद से विवाह किया लेकिन मैं जिसे प्रेम करता था वह मुझे नहीं मिली। मुझे उन कन्याओं से विवाह करना पड़ा जिन्हें मैंने राक्षसों से बचाया था।

अगर तुम दुर्योधन की ओर से युद्ध जीतते हो तो तुम को इसका श्रेय प्राप्त होगा।

लेकिन अगर धर्मराज अगर युद्ध जीतते हैं तो मुझे क्या प्राप्त होगा मुझे केवल युद्ध के लिए दोषी ठहराया जाएगा।

श्री कृष्ण कर्ण से कहने लगे कि चुनौतियां हर व्यक्ति के जीवन में आती है। कर्ण तुम जानते हो कि सत्य किसके साथ है। बहुत बार होता है कि हमें वह सब कुछ नहीं मिलता जिसके हम हकदार होते हैं लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम उन विपरीत परिस्थितियों के कारण अर्धम के मार्ग पर चल पड़े।
 
MORAL - श्री कृष्ण और कर्ण का संवाद में श्री कृष्ण ने यह शिक्षा दी है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें गलत रास्ते पर नहीं चलना चाहिए। श्री कृष्ण से भी जीवन में कुछ ना कुछ छूटता रहा लेकिन फिर भी उनकी मुस्कान हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

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