LADOO GOPAL KI BHAKTI KI STORY IN HINDI

 लड्डू गोपाल की भक्त की कथा  

भगवान तो भाव के भूखे होते हैं। उन्हें हम बाहरी दिखावे से प्रसन्न नहीं कर सकते उसके लिए सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। भगवान निश्छल प्रेम भाव पर रिझ जाते हैं। पढ़े लड्डू गोपाल श्री कृष्ण की ऐसी ही भक्त की कहानी 

एक बार एक औरत श्री कृष्ण की परम भक्त थीं। उनके पास लड्डू गोपाल विग्रह थे जिसकी वह हर रोज़ सेवा करती थी। एक बार तीर्थ यात्रा के लिए उसे एक मास के लिए घर से दूर जाना था। उसने अपनी बहू जिसकी अभी नई नई शादी हुई थी से कहा कि मेरे तीर्थ यात्रा पर जाने के बाद तुम लड्डू गोपाल जी की सेवा करना।


बहू कहने लगी कि ठीक है मां जी आप मुझे विधि बता दें। मैं पूरी श्रद्धा से उनकी सेवा करूंगी। 

उसकी सासू मां कहने लगी कि बहू सुबह सबसे पहले ठाकुर जी को स्नान कराना। उसके पश्चात उनको सुंदर वस्त्र, आभूषण, बांसुरी, मुकुट पहनना, इत्र लगाना और उसके पश्चात् ठाकुर जी को दर्पण दिखाना। दर्पण में जब ठाकुर जी मुस्कुराये तो उनको भोग लगा देना। बहू ने हां में हामी भर दी तो सास निश्चित हो गई।

सासू मां के तीर्थ यात्रा पर जाने के पश्चात जब पहले दिन बहू ने श्रद्धा भाव से ठाकुर जी को स्नान कराया, उसके पश्चात सुंदर वस्त्र, आभूषण, मुकुट पहनाया, बांसुरी अर्पित की और फिर इत्र लगाकर ठाकुर जी को दर्पण दिखाया । उसे याद आया कि मां जी ने कहा था कि जब ठाकुर जी का विग्रह मुस्कुराते हुए दिखे तो उन्हें भोग लगा देना। लेकिन उसे लगा कि ठाकुर जी का विग्रह मुस्कुरा नहीं रहा ,वह सोचने लगी कि शायद ठाकुर जी को मेरा किया श्रृंगार पसंद नहीं आया इसलिए वह मुस्करा नहीं रहे। 

उसने ठाकुर जी को फिर से स्नान कराया और श्रृंगार की सारी प्रक्रिया दोहराई लेकिन उसे हर बार यही लगता है ठाकुर जी मुस्कुरा नहीं रहे । जरूर मेरे श्रृंगार में कोई कमी रह गई है। सर्दियों के दिन थे लेकिन बहू बार - बार ठाकुर जी को स्नान कराती और श्रृंगार को बदलती रही। आखिर में कई बार यह प्रक्रिया करने के पश्चात उसे लगा कि ठाकुर जी मुस्कुरा रहे हैं। एक महीने तक लगातार वह ठाकुर जी की सेवा करती रही।

एक महीने के पश्चात जब उसकी सास वापिस आई तो कहने लगी कि बहू अब से लड्डू गोपाल जी की सेवा में कर दिया करूंगी। बहू कहने लगी कि ठीक है मां जी जैसा आपको उचित लगे।

अगले दिन सुबह सासू मां ने ठाकुर जी को स्नान कराया और श्रृंगार किया, दर्पण दिखा‌ कर भोग लगा दिया। रात को ठाकुर जी उनके सपने में आये और कहने लगे कि तुम मेरे स्नान और श्रृंगार की सेवा अपनी बहू को दे दो क्यों कि उसकी सेवा में जो भाव है उसमें मुझे ज्यादा आंनद आता है। 

तुम भी मुझे हर रोज़ स्नान करती हो लेकिन उसने मुझे स्नान कराया, वस्त्र, आभूषण, मुकुट, बांसुरी पहनाएं लेकिन जब भी वह मुझे दर्पण दिखाती तो उसे लगता कि मैं मुस्कुरा नहीं रहा इसलिए बार बार मुझे स्नान कराया वस्त्र आभूषण बदले। उसके इस भोले भाव के कारण मुझे सच में मुस्कुराना पड़ता है। इसलिए उसकी सेवा में सच्ची भक्ति का रस मिलता है। सपने के पश्चात उसकी नींद खुल गई। 

अगले दिन सुबह उठते ही सासू मां ने सपने को परखने के लिए बहू से पूछा कि मेरे जाने के पश्चात तुम ने ठाकुर जी की सेवा कैसे की थी। बहू ने सारी बात सासू मां को बता दी। सास बहू से कहने लगी कि तू धन्य हो तुम्हारे कारण मुझे स्वप्न में ठाकुर जी के दर्शन हुए और बहू से कहने लगी कि ठाकुर जी चाहते हैं कि उनकी स्नान और श्रृंगार तुम करवाया करो यह कहते हुए सास ने अपना स्वप्न बहू को सुना दिया। 

इसलिए तो कहते हैं कि भगवान कि सेवा सच्चे भाव से करनी चाहिए क्योंकि वह सच्चे भाव पर रिझते है बाहरी दिखावे पर नहीं।

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