SHRI KRISHNA AUR RUKMANI VIVAH KATHA

श्री कृष्ण और रूक्मिणी विवाह कथा

 श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। चाहे श्री कृष्ण के साथ सदैव राधा रानी की पूजा की जाती है। लेकिन रूक्मिणी जी का भी एक विशेष स्थान है। 




रूक्मिणी जी कौन थी(Rukmani ji kaun hai)

 रूक्मिणी श्री कृष्ण की पत्नी थी और उन्होंने श्री कृष्ण के साथ प्रेम विवाह किया था। उन्हें माता लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।

 रूक्मिणी जी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या थी।  रूक्मिणी के पांच भाई थे रूक्मी ,रूक्मरथ, रूक्मबाहू, रूक्मेश और रूक्माली।

रूक्मिणी जी ने नारद जी के मुख से श्री कृष्ण के रूप, पराक्रम और गुणों के बारे में सुनकर उन्हें पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। उधर श्री कृष्ण ने भी रूक्मिणी की बुद्धि,रूपशीलता और गुणों के बारे में सुना था।

बाकी सब भाई तो रूक्मिणी का विवाह श्री कृष्ण से करना चाहते थे लेकिन रूक्मी श्री कृष्ण से शत्रुता रखता था इसलिए वह शिशुपाल के साथ रूक्मिणी का विवाह करवाना चाहता था। 

रूक्मिणी जी द्वारा श्री कृष्ण को विवाह के लिए पत्र भेजना (rukmani dawara Shri Krishna ko vivah ka patar) 

जब रूक्मिणी जी को जब पता चला तो उसका भाई उसका विवाह शिशुपाल से करवाना चाहता है तो उन्होंने अपने विश्वास पात्र ब्राह्मण को श्री कृष्ण के पास अपना संदेश दे कर भेजा।

श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का आदर सत्कार किया और उनके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने रूक्मिणी जी द्वारा भेजा हुआ पत्र  श्री कृष्ण को सौंप दिया।

पत्र में रूक्मिणी जी ने लिखा था कि हे अच्युत! जब से मैंने आपके  विषय में सुना है आपका मनोरम रूप मेरे हृदय में बस गया है। 

मैंने मन से पति रूप में आपको स्वीकार कर लिया है आप यहां आकर मेरा वरण कर ले। यदि मैंने ईश्वर की अराधना पूर्ण रूप से की है तो श्री कृष्ण आप ही आकर मेरा पाणिग्रहण करें, शिशुपाल नहीं।

कल मेरा विवाह है इसलिए आप कल आकर आसुरी विधि से मुझ से विवाह कर ले उसके लिए मेरे पास उपाय है कि कल सुबह मैं विवाह से पहले अपनी कुल देवी अम्बिका की पूजा के लिए मंदिर जा रही हूँ । अगर आपने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं प्राण त्याग दूंगी।

श्री कृष्ण द्वारा उनका प्रेम संदेश स्वीकार करना(Shri Krishna dawara Prem sandesh swikar karna)

ब्रह्माण देव संदेश पढ़ कर कहने लगे कि" प्रभु जैसा आपको उचित लगे वैसे करें। श्री कृष्ण ने ब्राह्मण को आश्वासन दिया कि मैं आपके साथ चलूंगा।"

श्री कृष्ण ने राजा उग्रसेन से आज्ञा दी और सारथी दारूक को रथ तैयार करने के लिए बोला। श्री कृष्ण रथ पर सवार होकर एक ही रात में वहां पहुंच गए।

रूक्मिणी के पिता राजा भीष्मक  अपने पुत्र के कहने पर अपनी पुत्री का विवाह शिशुपाल से करने के लिए राजी हो गए। इसलिए शिशुपाल बारात सजा कर कुंडिनपुर पहुंच गया। शिशुपाल के साथ जरासंध, वाल्व, दन्तवक्र, विदूरथ और पौंड्रिक आदि राजा भी आये थे ताकि श्री कृष्ण और बलराम विवाह में आए तो मिलकर उन्हें युद्ध करेंगे।

रूक्मिणी जी द्वारा श्री कृष्ण की प्रतीक्षा करना(Rukmani dawara Shri Krishna ki partiksha karna)

उधर रूक्मिणी जी प्रतीक्षा कर रही है कि ना तो उनके भेजे हुए ब्राह्मण देव आए और ना ही श्री कृष्ण की कोई सूचना। विवाह को केवल एक रात्रि ही शेष रह गई है।

तभी ब्राह्मण ने उनको श्री कृष्ण का समाचार सुनाया कि मैं सभी राजाओं को हरा कर आपको वर‌ कर ले जाऊंगा। राजा भीष्मक को जब श्री कृष्ण और बलराम जी के आने का समाचार मिला तो उन्होंने उनका स्वागत किया।

रूक्मिणी का अम्बिका मंदिर में पूजन के लिए जाना( Rukmani dawara Ambika pujan)

रूक्मिणी जी अपनी माताओं और सखियों के संग माँ अम्बिका के दर्शन के लिए गईं और मंदिर में पहुंच कर उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती को प्रणाम किया और माता अम्बिका से विनती की कि आप मुझ पर कृपा करें, जिससे श्री कृष्ण को मैं पति रूप में प्राप्त कर सकूंँ। पूजन की सभी विधियां करने के पश्चात रूक्मिणी जी अपनी सखी के संग मंदिर से बाहर आई तो सभी राजा उनकी मोहिनी चितवन को देखकर मोहित हो गए।रूक्मिणी जी श्री कृष्ण की आने की राह देखने लगी ।

श्री कृष्ण द्वारा रूक्मिणी जी का हरण (Shri Krishna dwara Rukmani haran) 

उसी समय उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन हुए। श्री कृष्ण सभी राजाओं के बीच से रूक्मिणी जी को अपने रथ पर  बैठाकर उसी प्रकार ले गए जैसे गीदड़ों के बीच से शेर अपना भाग ले जाता है। बलराम जी सेना सहित उनके साथ चलने लगे।

जरासंध और उसके साथी राजा को अपना अपमान सहन नहीं हो रहा था कि एक ग्वाला सभी धनुषधारी राजाओं के मान को भंग करके चला गया।

मार्ग में रूक्मिणी जी को चिंतित देखकर श्री कृष्ण कहने लगे कि आप चिंता ना करें द्वारिका पहुंच कर हम वेद विधि से विवाह करेंगे और रूक्मिणी जी को अपनी माला पहनाकर शंख ध्वनि की। जिसे सुनकर सभी राजा श्री कृष्ण की ओर दौड़े। बलराम जी ने शत्रुओं की सेना का नाश कर दिया ।

रूक्मी मान भंग(Rukmani Maan bhang)

रूक्मिणी जी का भाई रूक्मी श्री कृष्ण के साथ अपनी बहन के आसुरी विवाह के कारण क्रोधित होकर श्री कृष्ण के पीछे गया।

उसने प्रण किया था कि रूक्मिणी जी को लौटाये बिना और श्री कृष्ण को मारने बिना मैं कुण्डिनपुर में प्रवेश नहीं करूंगा।

रूक्मी श्री कृष्ण के सम्मुख पहुंच कर श्री कृष्ण को कहने लगा कि तू छलिया है और मेरी बहन को चुरा कर ले जा रहा है। आज़ मैं तुम्हारे घमंड को चूर करूंगा और श्री कृष्ण पर बाण चलाने लगा। श्री कृष्ण ने उससे धनुष को काट कर उसको बांध दिया। फिर उसने दूसरे धनुष को हाथ में लिया तो श्री कृष्ण ने उसे भी काट दिया। फिर वह अन्य शस्त्रों से प्रहार करने लगा तो भगवान ने उनको भी काट दिया।

भगवान ने जब रूक्मी को मारने के लिए शस्त्र उठाया तो रूक्मिणी जी उससे करूणामय विनय करने लगी कि प्रभु यह मेरा भाई है इसलिए इसे ना मारे।

रूक्मिणी जी की करूणा विनय सुनकर श्री कृष्ण ने वस्त्र से रूक्म को बांध दिया और उसकी मूंछों और सिर का मुंडन कर उसको करूप बना कर छोड़ दिया।

बलराम जी का श्री कृष्ण और रूक्मिणी को ज्ञान देना(Balram ji ka shri krishna aur Rukmani ko gyaan) 

जब बलराम जी ने रूक्मिणी जी की करूण दशा देखी तो उन्होंने रूक्म को बंधन मुक्त कर दिया और श्री कृष्ण से कहने लगे कि," तुम ने बहुत बुरा किया है क्योंकि अपने सम्बंधी की दाढ़ी मूंछ काट कर करूप बना देना उसको मारने के समान है।"

उसके पश्चात बलराम जी रूक्मिणी जी को समझाने लगे कि," अपने भाई के करूप होने का दोष तुम हमको मत देना क्योंकि वह अपने कर्मों का फल भुगत रहा है।"

फिर श्री कृष्ण से कहने लगे कि अगर सम्बंधी मारने योग्य अपराध करें तो भी उसे छोड़ देना चाहिए । इस प्रकार बलराम जी ने श्री कृष्ण और रूक्मिणी जी दोनों को समझाया।

श्री कृष्ण और रूक्मिणी विवाह(Shri Krishna aur Rukmani vivah) 

उधर श्री कृष्ण ने द्वारिकापुरी पहुंँच कर विधिपूर्वक तरीके से रूक्मिणी जी से विवाह किया। द्वारिकापुरी में उत्सव जैसा माहौल था। पूर्ण नगरी को सजाया गया।

जो भी श्री कृष्ण और रूक्मिणी जी के इस प्रसंग को पढ़ेगा या फिर सुनेगा उन्हें श्री कृष्ण की भक्ति प्राप्त होगी।

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