PROPKAR KI MORAL STORY
परोपकार क्या है
परोपकार पर एक नैतिक कहानी
अब राजा चिंतित हो गया कि यह सुरमा किस सुयोग्य व्यक्ति को दें क्योंकि उसके राज्य में नैत्रहीन व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक थी।
फिर राजा को स्मरण हो आया कि उनके राज्य के राज वैद्य ने नैत्रहीन होने के कारण अपनी सेवाओं से छुट्टी ले ली है,इसलिए मैं यह सुरमा उनकी आंखों में लगाने के लिए ले जाता हूं। राजा स्वयं सुरमा लेकर राज वैद्य के घर पर पहुंचा और जाकर राज वैद्य को सुरमे की खासियत बता कर उन्हें दोनों आंखों में सुरमा लगाने के लिए दे दिया।
वैद्य जी ने जैसे ही सुरमा अपनी एक आंख में लगाया उनकी आंख की रोशनी आ गई।
राजा ने वैद्य जी से दूसरी आंख में भी सुरमा लगाने के लिए कहा लेकिन वैद्य जी ने बचे हुए सुरमे को ध्यान से हाथ में लेकर देखा और जीभ पर रख लिया। यह देख कर राजा आश्चर्यचकित हो गया। राजा कहने लगा कि वैद्य जी यह आपने क्या किया?
अब तो लोग आपको काना बोलेंगे ।आपको अपनी दूसरी आंख में भी सुरमा लगा लेना चाहिए था। आपने तो सुरमा व्यर्थ कर दिया।
वैद्य जी कहने लगे कि,"राजन तुम फ़िक्र मत करो, सुरमा व्यर्थ नहीं गया, एक आंख मिलते ही मैंने सुरमे को अच्छी तरह से जांच लिया था और सुरमे को मुंह में रखते ही मुझे पता चल गया कि इस सुरमे को कौन कौन सी सामग्री से बनाया गया है। मैं इतने सालों से वैद्य का काम कर रहा हूं इसलिए अपने अनुभव के आधार पर और इसकी सामग्री को चख कर अब मैं ऐसा ही सुरमा स्वयं बनाऊंगा ताकि हमारे राज्य में जितने भी नैत्रहीन है सबको दृष्टि मिल सकें।"
वैद्य की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि मैं धन्य हूं कि आप जैसा परोपकारी मेरे राज्य का वैद्य है। आपने अपने अभाव को पूर्ण रूप से दूर करने की बजाय पूरी प्रजा के हित के बारे में सोचा।
Moral - परोपकारी को अपने दुख में भी दूसरों की चिंता रहती है।
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