PROPKAR KI MORAL STORY

 परोपकार क्या है 

परोपकार शब्द पर और उपकार दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है दूसरों पर उपकार करना। परोपकार एक ऐसी भावना है जब व्यक्ति बिना किसी निजी स्वार्थ के किसी दूसरे की भलाई के बारे में सोचता है।  

महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग कर अपनी हड्डियों का वज्र बनाने के लिए देवताओं पर परोपकार किया था।
 कई लोग बिना किसी स्वार्थ के राहगीरों को भोजन खिलाते हैं, पानी पिलाते हैं। 

परोपकार पर एक नैतिक कहानी 

एक बार एक राजा को दूसरे राज्य के राजा को सुरमे की एक डिबिया भेजी जिसके साथ एक संदेश था कि यह बहुत ही उपयोगी सुरमा है। इसकी खासियत यह है कि इस सुरमे को लगाते ही नैत्रहीन व्यक्ति की आंखों की रोशनी वापिस आ जाएगी। लेकिन यह सुरमा केवल दो आंखों में ही लगाया जा सकता है। इसलिए आप सोच समझ कर किसी योग्य व्यक्ति को चुनना जिसमें परोपकार की भावना हो ताकि वह नैत्र‌ प्राप्त कर किसी और का भला कर सके।

अब राजा चिंतित हो गया कि यह सुरमा किस सुयोग्य व्यक्ति को दें क्योंकि उसके राज्य में नैत्रहीन व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक थी।

फिर राजा को स्मरण हो आया कि उनके राज्य के राज वैद्य ने नैत्रहीन होने के कारण अपनी सेवाओं से छुट्टी ले ली है,इसलिए मैं यह सुरमा उनकी आंखों में लगाने के लिए ले जाता हूं। राजा स्वयं सुरमा लेकर राज वैद्य के घर पर पहुंचा और जाकर राज वैद्य को सुरमे की खासियत बता कर उन्हें दोनों आंखों में सुरमा लगाने के लिए दे दिया।

वैद्य जी ने जैसे ही सुरमा अपनी एक आंख में लगाया उनकी आंख की रोशनी आ गई।

राजा ने वैद्य जी से दूसरी आंख में भी सुरमा लगाने के लिए कहा लेकिन वैद्य जी ने बचे हुए सुरमे को ‌ध्यान से हाथ में लेकर देखा और जीभ पर रख लिया। यह देख कर राजा आश्चर्यचकित हो गया। राजा कहने लगा कि वैद्य जी यह आपने क्या किया?

अब तो लोग आपको काना बोलेंगे ।आपको अपनी दूसरी आंख में भी सुरमा लगा लेना चाहिए था। आपने तो सुरमा व्यर्थ कर दिया।

वैद्य जी कहने लगे कि,"राजन तुम फ़िक्र मत करो, सुरमा व्यर्थ नहीं गया, एक आंख मिलते ही मैंने सुरमे को अच्छी तरह से जांच लिया था और सुरमे को मुंह में रखते ही मुझे पता चल गया कि इस सुरमे को कौन कौन सी सामग्री से बनाया गया है। मैं इतने सालों से वैद्य का काम कर रहा हूं इसलिए अपने अनुभव के आधार पर और इसकी सामग्री को चख कर अब  मैं ऐसा ही सुरमा स्वयं बनाऊंगा ताकि हमारे राज्य में जितने भी नैत्रहीन है सबको दृष्टि मिल सकें।"

वैद्य की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि मैं धन्य हूं कि आप जैसा परोपकारी मेरे राज्य का वैद्य है। आपने अपने अभाव को पूर्ण रूप से दूर करने की बजाय पूरी प्रजा के हित के बारे में सोचा। 

Moral - परोपकारी को अपने दुख में भी दूसरों की चिंता रहती है।

Comments

Popular posts from this blog

RAKSHA SUTRA MANTAR YEN BADDHO BALI RAJA

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2023

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA