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Showing posts from October, 2022

KHATU SHYAM BABA JI KI AARTI LYRICS

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 श्री खाटूश्यामजी बाबा आरती लिरिक्स इन हिन्दी  खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है।  खाटू श्याम बाबा को श्री कृष्ण ने वरदान दिया था कि वह कलयुग में उनके नाम श्याम से जाने जाएंगे और जो भी भक्त उनका नाम लेगा उनके कष्ट दूर होंगे। खाटू श्याम बाबा को शिश का दानी,  हारे का सहारा ,लखदातार के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि खाटू श्याम बाबा की आरती से जीवन के संकट दूर होते हैं। खाटू श्याम बाबा जी की आरती  ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।।  ॐ जय श्री श्याम हरे।। रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे। तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े।।   ॐ जय श्री श्याम हरे।। गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे। खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले।।   ॐ जय श्री श्याम हरे।। मोदक, खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे। सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे ।।  ॐ जय श्री श्याम हरे।। झांझ कटोरा ​घड़ियावल, शंख मृदंग धुरे। भक्त आरती गावें, जय-जयकार करे।।  ॐ जय श्री श्याम हरे।। जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे। सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे।।  ॐ जय श्री श्या

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2024

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 खाटू श्याम जन्मोत्सव: 2024 खाटूश्यामजी मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है।  खाटू श्याम जी का जन्मदिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 2024 में श्याम बाबा का जन्मोत्सव 12 नवंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। श्रद्धालु श्याम बाबा के दर्शन करने दूर-दूर से पहुंचते हैं। खाटू श्याम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित मेले में लाखों की संख्या में भक्त बाबा के दरबार में हाजिर लगाने पहुंचते हैं।   निसंतान दंपत्ति बाबा को बांसुरी, खिलौने और मोर छड़ी चढ़ाकर संतान प्राप्ति की मन्नत मांगते हैं और भक्त नारियल बांधकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। श्याम बाबा के जन्म दिवस पर भक्त अनेक प्रकार के केक का भोग लगाकर बधाई देते हैं। खाटू श्याम जी का स्नान श्री श्याम कमेटी के द्वारा रुह इत्र से करवाया जाता है ।श्याम बाबा को गुलाब,चंपा, चमेली आदि फूलों से सजाया जाता है।खाटू श्याम मंदिर कमेटी की ओर से मंदिर की सजावट के लिए वृन्दावन से विशेष कारीगर बुलाएं जाते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के सिंह द्वार पर श्री कृष्ण के लड्डू गोपाल और मुरलीधर रूप की सुंदर झांकी

DHANTERAS 2023 KAB HAI

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 धनतेरस पर बर्तन और धनिया क्यों खरीदते हैं  DHANTERAS 2023 Friday, 10 November  धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।  इस पर्व को धनतेरस और धनत्रयोदशी भी कहा जाता है । इस दिन भगवान  धन्वंतरी समुद्र मंथन के समय अमृत का कलश हाथ में लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि भगवान विष्णु का ही अवतार माने जाते हैं। धनतेरस का महत्व  धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरी भगवान की पूजा की जाती है। धन्वंतरी भगवान को देवताओं के चिकित्सक माना जाता है। इस दिन धन्वंतरी भगवान की पूजा करने से आरोग्य और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है ।धन के देवता कुबेर की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है।  मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन वैभव और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है और उनके नाम से दक्षिण दिशा में दीपक जलाया जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से घर में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती। धनतेरस के दिन बर्तन और धातु खरीदने की परंपरा क्यों है  समुद्र मंथन के समय धन्वंतरी भगवान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे । इसलिए इस दिन बर्तन

KARTIK PURNIMA DEV DEEPAWALI

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कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली का महत्व  कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक मास का अंतिम पर्व के रूप में मनाई जाती है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. 2023 में कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को मनाई जाएगी।  कार्तिक मास भगवान विष्णु को बहुत प्रिय माना जाता है। कार्तिक मास को दामोदर मास भी कहा जाता है क्योंकि दामोदर मास में ही भगवान श्री कृष्ण ने दामोदर लीला की थी और यमलार्जुन के वृक्षों का उद्धार किया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दान पुण्य, और दीप दान का विशेष महत्व है. इस दिन माँ लक्ष्मी और तुलसी पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.  मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन  भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था.कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरारी राक्षस का वध करने के लिए त्रिपुरारी अवतार लिया था और वध कर देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त करवाया था।       देव दीपावली की कथा  भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरारी नामक राक्षस का वध करने के लिए त्रिपुरारी अवतार लिया था. इसलिए

SHRI DAMODAR ASHTAKAM LYRICS IN SANSKRIT

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कार्तिक मास में पढ़ें श्री दामोदर अष्टकम संस्कृत लिरिक्स   श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। श्री दामोदर अष्टकम श्री कृष्ण की उस लीला को दर्शाता है जिसमें मां यशोदा के भय से भाग रहे हैं और मां यशोदा उन्हें पकड़ कर ऊखल से बांध रही है और रस्सी से बंधने के पश्चात उन्होंने नलकुबेर और मणिग्रीव नामक कुबेर के नारद जी द्वारा शापित पुत्र जो यमलार्जुन के वृक्षों के रूप में बदल गए थे श्री कृष्ण ने उनका उद्धार किया था।  नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं, लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं। यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं, परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या।।१।। पढ़ें दामोदर अष्टकम हिन्दी अर्थ सहित रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम् कराम्भोज युग्मेन सातङ्क-नेत्रम् मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम्।।२।। इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे।।३।। वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह। इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः।।४।। इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त

KARTIK MASS RAMA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE IN HINDI

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रमा एकादशी व्रत कथा  एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने एकादशी का विशेष महत्व है . दिवाली से 4 दिन पूर्व पढ़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी ,रम्भा एकादशी और कार्तिक कृष्णा एकादशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण जी की  केशव रूप में पूजा की जाती है.   रमा एकादशी व्रत का महत्व रमा एकादशी व्रत करने पर अश्वमेध यज्ञ और वाजपेयी यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.  इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में धन वैभव की बढ़ोतरी होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी करने से बड़े-बड़े पापों का नाश होता है और असीम वैभव देने वाली है.  रमा माँ लक्ष्मी का एक नाम है इसलिए इसदिन भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी की पूजा करने से धन लक्ष्मी प्राप्त होती है. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए.  रमा एकादशी व्रत कथा प्राचीन काल में मुचकंद नाम का एक राजा था जिसकी इंद्र, कुबेर, वरुण, यम के साथ मित्रता थी. वह राजा धर्मात्मा और विष्णु भक्त था .उस राजा की चंद्रभागा नाम की एक कन्या थी . जिसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था.  एक समय शोभन

KARWA CHAUTH VRAT KATHA

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 Karwa chauth 2023 WEDNESDAY, 1 NOVEMBER  करवा चौथ व्रत का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत सुहानिग स्त्रियां अपने पति की दीर्घ आयु की कामना से रखती है। करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता हैं। करवा चौथ व्रत के दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती ।रात को  सुहागन स्त्रियां सबसे पहले छलनी में दिया रखती हैं और  इसके पश्चात उसमें चंद्रमा के दर्शन करती है और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके पश्चात पति अपनी पत्नी को पानी पिलाते हैं और कुछ मीठा खिलाते हैं ।  KARWA CHAUTH VRAT KATHA  पौराणिक कथा के अनुसार  वीरवती नाम की एक लड़की थी जो अपने सात भाईयों की अकेली बहन थी। वीरवती भाई बहुत प्रेम करते थे। शादी के पश्चात वीरवती मायके आई थी तो वहीं पर उसने करवा चौथ व्रत रखा। निर्जला व्रत के कारण वह भूख प्यास से व्याकुल हो उठी। वीरवती के भाईयों से अपनी बहन की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी । उन्हें भय सता रहा था कि कहीं उनकी बहन की तबीयत खराब ना हो जाए। उन्होंने एक योजना बनाई। भाईयों ने एक पेड़ की ओट में छलनी के पी

BHAGWAAN SHIV NE GOPI ROOP KYUN DHARAN KIYA

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 भगवान शिव ने श्री कृष्ण की महारास में गोपी रूप क्यों धारण किया  श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण ने जब शरद पूर्णिमा के दिन गोपियों संग महारास का निश्चय किया तो श्री कृष्ण की बंसी की धुन से तीनों लोक आनंद मग्न हो गए। श्री कृष्ण की बांसुरी के कारण भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया। भगवान शिव अपना ध्यान छोड़ कर वृन्दावन में महारास के स्थल पर पहुंच गए। भगवान शिव और मां पार्वती जब रास स्थल पर प्रवेश करने लगे तो मां पार्वती को तो प्रवेश मिल गया। लेकिन भोलेनाथ को द्वार पर ललिता सखी ने रोक लिया।  महारास में श्री कृष्ण के अलावा किसी और पुरुष को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ललिता सखी ने भगवान शिव को इस विषय में बताया तो भगवान शिव कहने लगे कि तुम मुझे महारास में जाने का उपाय बताएं। ललिता सखी कहने लगी कि प्रभु आपको स्त्री वेश धारण करना पड़ेगा।  भगवान शिव ललिता सखी से कहने लगे कि तुम मुझे शीघ्र स्त्री बना दो। ललिता सखी ने भगवान शिव का गोपी वेश में श्रृंगार किया और राधा कृष्ण के युगल मंत्र की दीक्षा दी। भगवान शिव घूंघट ओढ़े महारास में शामिल हो कर भगवान श्री रासबिहारी, श

SHRI KRISHAN SHIKARI AUR SANT KI KATHA

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 श्री कृष्ण , शिकारी और संत जी का प्रसंग  एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार पकड़ने ‍‍‍‍‍‍‍‍गया लेकिन उसे शिकार नहीं मिला तो परेशान हो कर भोजन और पानी की तलाश में इधर-उधर देखने लगा। शिकारी को दूर एक कुटिया दिखाई दी। शिकारी ने कुटिया का दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक संत की आवाज आई। शिकारी ने संत को प्रणाम किया और पूछने लगा कि महाराज मैं तो शिकार की तलाश में इस निर्जन वन में भटक रहा हूं लेकिन आप क्यों इस वन में रह रहे हैं? साधू महाराज कहने लगे कि मैं अपने सांवले सलोने ठाकुर जी को ढूंढने के लिए इस वन में तपस्या कर रहा हूं। शिकारी धर्म, कर्म, पूजा- पाठ के बारे में कुछ नहीं जानता था इसलिए उसे कुछ भी समझ में नहीं आया। लेकिन वह एक ही रट लगाए था कि आप मुझे बताएं कि आपका शिकार कैसा दिखता है मैं उसे पकड़ कर लाऊंगा। आप इस वृद्धावस्था में कहां उसे ढूंढते फिरेंगे ? मुझे तो शिकार पकड़ने की आदत है मैं जल्दी ही उसे पकड़ कर लाऊंगा। संत कहने लगे कि मुझे कितने वर्ष हो गए उसे ढूंढते लेकिन वह मुझे नहीं मिला तो तुम कैसे उसे पकड़ लोगे। लेकिन शिकारी जिद्द पर अड़ गया कि अब तो मैं आपके शिकार को पकड़ कर ही अन्न जल ग

SHRI RAM AUR GILAHARI KI KAHANI

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 श्री राम और गिलहरी की MORAL STORY पढ़े नन्ही गिलहरी का सेतु निर्माण में क्या योगदान था और श्री राम ने गिलहरी को क्या आशीर्वाद दिया  लंका युद्ध से पहले जब समुद्र ने श्री राम से समुद्र पर सेतु बनाने का सुझाव दिया। समुंदर ने कहा कि प्रभु आपकी सेना में नल और नील नाम के दो भाई हैं उन दोनों को लड़कपन में आशीर्वाद मिला था कि उनका  स्पर्श  होते ही पहाड़ भी तर जाएंगे। आप उनकी सहायता से सेतु का निर्माण करें। मैं आपकी प्रभुताई को हृदय में धर कर अपने बल के अनुसार आपकी सहायता करूंगा। समुंद्र के वचन सुनकर श्री राम जी ने मंत्रियों को बुलाया और उनको शीघ्र सेतु निर्माण का कार्य शुरू करने के लिए आज्ञा दी। जाम्बवान ने नल- नील दोनों भाइयों को सारी कथा सुना कर सेतु निर्माण का कार्य शुरू करने के लिए कहा। वानरों के समूहों वृक्षों और पर्वतों को उखाड़ कर लाते और नल नील को देते वह दोनों अच्छे से सेतु का निर्माण कर रहे थे । उसी समय एक गिलहरी को जब सेतु निर्माण के कार्य के बारे में पता चला तो उसने भी इस शुभ कार्य के लिए अपना योगदान देने की सोची। गिलहरी समुद्र में जाती स्वयं को पानी में भिगोती और फिर वापस आकर रेत