KARWA CHAUTH VRAT KATHA

 Karwa chauth 2023

WEDNESDAY, 1 NOVEMBER 

करवा चौथ व्रत का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत सुहानिग स्त्रियां अपने पति की दीर्घ आयु की कामना से रखती है। करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता हैं।

करवा चौथ व्रत के दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती ।रात को  सुहागन स्त्रियां सबसे पहले छलनी में दिया रखती हैं और  इसके पश्चात उसमें चंद्रमा के दर्शन करती है और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके पश्चात पति अपनी पत्नी को पानी पिलाते हैं और कुछ मीठा खिलाते हैं । 


KARWA CHAUTH VRAT KATHA 

पौराणिक कथा के अनुसार  वीरवती नाम की एक लड़की थी जो अपने सात भाईयों की अकेली बहन थी। वीरवती भाई बहुत प्रेम करते थे। शादी के पश्चात वीरवती मायके आई थी तो वहीं पर उसने करवा चौथ व्रत रखा। निर्जला व्रत के कारण वह भूख प्यास से व्याकुल हो उठी।

वीरवती के भाईयों से अपनी बहन की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी । उन्हें भय सता रहा था कि कहीं उनकी बहन की तबीयत खराब ना हो जाए। उन्होंने एक योजना बनाई।

भाईयों ने एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे जलता दिया रख दिया जो दूर से देखने पर ऐसा लगता था कि मानो चांद हो। उन्होंने वीरावती को बताया कि चांद निकल आया है। तुम उसको अर्ध्य देकर अपना व्रत खोल सकती लो।

 वीरवती भाईयों की बात मानकर  झूठा चांद देखकर अर्घ्य दे देती है और भोजन करने बैठ जाती है। 

भोजन का पहला निवाला मुंह में रखते ही उसको छींक आ जाती है। दूसरे निवाले में बाल आ जाता है और तीसरा निवाला जैसे ही खाने लगती उसके पति की मृत्यु की सूचना आ जाती है। वीरवती सूचना सुनते ही विलाप करने लगती है।

वीरवती की भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? वीरवती अपने पति के शरीर का दाह संस्कार नहीं करने देती । उसे पूर्ण विश्वास होता है कि वह अपने सतीत्व से अपने पति को पुनर्जीवित कर लेगी। वह अपनी ग़लती स्वीकार करती है और अपने पति के पुनः जीवित होने की कामना करती है।

अगले साल वह फिर करवा चौथ व्रत विधि पूर्ण करती है।इस बार वह छलनी से पहले चंद्रमा और उसके बाद अपने पति को देखती है। करवा चौथ माता उसकी मनोकामना पूरी करती हैं और उसका पति पुनर्जीवित हो जाता है।

मां पार्वती ने भी इस व्रत को किया था। एक बार जब देवताओं और दैत्यों के मध्य युद्ध हुआ तो ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत करने के लिए कहा। सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा जिसके प्रभाव से देवता विजयी हुए थे।

द्रोपदी ने श्री कृष्ण के कहने पर कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत किया था जिससे पांडवों को कष्टों से मुक्ति मिली थी। 

करवा चौथ व्रत की सार्थकता 

वर्तमान समय में कुछ लोग करवा चौथ व्रत को अंधविश्वास मानते हैं ।लेकिन करवा चौथ व्रत रखना या नहीं रखना यह हर किसी की व्यक्तिगत पसंद होती है लेकिन यह व्रत हिन्दू सनातन संस्कृति का सबसे सुंदर त्योहार में से एक है।

करवा चौथ व्रत में किसी भी सुहागन स्त्री को व्रत करने पर ससुराल और मायके दोनों को प्यार और आशीर्वाद प्राप्त होता है। व्रत से पहले मायके से सुहाग का सामना, गहने,कपड़े और मिठाई आती है जिसे बाया कहते हैं। यह एक ऐसी परंपरा है कि अगर किसी के मां बाप ना हो तो उसके भाई और भाभी इस रीति को निभाते हैं। 

उधर व्रत से पहले सास भी अपनी बहू को सरगी देती है ।अब सास बहू की कितनी भी अनबन क्यों न हो सास अपने बेटे की लंबी आयु की मनोकामना के लिए बहू और सरगी जरूर देती है और चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात बहू अपनी सास को बाया फल और मिठाई और शगुन अवश्य देती है। 

इस तरह ना चाहते हुए भी दोनों को एक दूसरे को प्यार और सम्मान देना ही पड़ता है। मुझे करवा चौथ व्रत की यह प्रथा इसलिए बहुत पसंद हैं। इससे सिद्ध होता है कि हमारे बड़े बुजुर्गो ने जो रीति रिवाज बनाएं है उनके पीछे गहरे भाव छिपे होते हैं।

हिन्दू धर्म में स्त्री को अन्नपूर्णा कहा जाता है। उसके लिए अपना परिवार सर्वप्रथम होता है। वह सबसे ज्यादा अपने पति से प्यार करती है इसलिए वह अपने पति की दीर्घ आयु,सुख समृद्धि और सौभाग्य के लिए व्रत रख कर ईश्वर से प्रार्थना करती है।

व्रत का अर्थ केवल भूखा रहना नहीं होता अपितु अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव होता है इसलिए हम श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं। हमें विश्वास होता है कि वह हमारी कामना को जरूर पूर्ण करेंगे।

पति पत्नी का रिश्ता सबसे अटूट रिश्ता है। करवा चौथ के दिन व्रत रखकर पत्नियां अपने स्नेह का इजहार करती है। कुछ लोग इसे दकियानूसी सोच मानते हैं। लेकिन जो लोग हिन्दू धर्म को मानते हैं उनको पता होगा कि एक पतिव्रता स्त्री की ताकत क्या होती है।

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