SHRI KRISHAN SHIKARI AUR SANT KI KATHA

 श्री कृष्ण , शिकारी और संत जी का प्रसंग 


एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार पकड़ने ‍‍‍‍‍‍‍‍गया लेकिन उसे शिकार नहीं मिला तो परेशान हो कर भोजन और पानी की तलाश में इधर-उधर देखने लगा। शिकारी को दूर एक कुटिया दिखाई दी। शिकारी ने कुटिया का दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक संत की आवाज आई।

शिकारी ने संत को प्रणाम किया और पूछने लगा कि महाराज मैं तो शिकार की तलाश में इस निर्जन वन में भटक रहा हूं लेकिन आप क्यों इस वन में रह रहे हैं? साधू महाराज कहने लगे कि मैं अपने सांवले सलोने ठाकुर जी को ढूंढने के लिए इस वन में तपस्या कर रहा हूं।

शिकारी धर्म, कर्म, पूजा- पाठ के बारे में कुछ नहीं जानता था इसलिए उसे कुछ भी समझ में नहीं आया। लेकिन वह एक ही रट लगाए था कि आप मुझे बताएं कि आपका शिकार कैसा दिखता है मैं उसे पकड़ कर लाऊंगा। आप इस वृद्धावस्था में कहां उसे ढूंढते फिरेंगे ? मुझे तो शिकार पकड़ने की आदत है मैं जल्दी ही उसे पकड़ कर लाऊंगा।

संत कहने लगे कि मुझे कितने वर्ष हो गए उसे ढूंढते लेकिन वह मुझे नहीं मिला तो तुम कैसे उसे पकड़ लोगे। लेकिन शिकारी जिद्द पर अड़ गया कि अब तो मैं आपके शिकार को पकड़ कर ही अन्न जल ग्रहण करूंगा बस आप मुझे यह बता दें कि वह दिखता कैसा है। 

संत सोचने लगे कि यह मूढ़ भक्ति के बारे में कुछ भी नहीं जानता लेकिन उसकी जिद्द के कारण वह श्री कृष्ण के स्वरूप का बखान करने लगे कि वह सांवला सलोना दिखता है, उसने मोर मुकुट धारण किया हुआ है, उसके हाथों में बांसुरी है, मुस्कान ऐसी की चित्त को चुरा ले, कहते कहते संत की आंखों से अश्रु धारा बहने लगी कि ऐसे श्याम सुंदर को ही तलाश में ही मैं इस वन में कर रहा हूं। शिकारी कहने लगा कि, बाबा आप चिंता ना करें अब तो समझो आपका शिकार मिल ही गया।

शिकारी ने वन एक जगह पर जाल बिछाया और संत द्वारा बताए गए शिकार की प्रतीक्षा करने लगा। अब उसका प्रण था कि बिना शिकार मिलें अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। हर पल हर क्षण संत द्वारा बताई गई श्री कृष्ण की मोहिनी मुर्त का ध्यान कर रहा था और उसके होंठों पर,  मन मस्तिष्क में भी श्री कृष्ण का ही नाम था कि कब आओगे,कब आओगे।

फिर उसे दूर से आता एक अलौकिक प्रकाश दिखाई दिया श्री कृष्ण स्वयं उसके जाल में फंसने का अभिनय करने लगे। शिकारी ने जैसे ही जाल में फंसे श्री कृष्ण को पकड़ा उसे एक अलौकिक अनुभव हुआ लेकिन उसने श्री कृष्ण को शिकार की तरह अपने कंधे पर लाद कर संत के पास पहुंच गया।

श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन कर संत धन्य हो गए और श्री कृष्ण‌ के प्रणाम कर पूछने लगे कि प्रभु मैं वर्षों से आपकी पूजा कर रहा हूं लेकिन आपने मुझे दर्शन नहीं दिए फिर इस शिकारी को आपने साक्षात दर्शन क्यों दिएं ?

 श्री कृष्ण कहने लगे कि शिकारी ने तो मेरा नाम तक जानता था और ना ही मेरे बारे में उसने कभी भी सुना था लेकिन उसे तुम्हारे कहे पर पूर्ण विश्वास था कि सावरा सलोना कृष्ण ऐसा दिखता है और मुझे किसी भी हालत में इसे संत के लिए उसे पकड़ना है। 

उसने तीन दिन तक बिना कुछ खाएं पिएँ पूरी तन्मयता से मेरे में ही ध्यान लगाया हुआ था चाहे अनजाने में ही सही लेकिन हर पल हर क्षण वह मुझे ही पुकार रहा था मुझे पकड़ने की चाह में वह कभी पेड़ पर चढता, कभी रास्ता निहारता कभी उत्सुकता से मुझे पुकाराता श्याम सलोने अब तो आ जाओ. तीन दिन तीन रात तक उसे भूख प्यास का कोई अहसास नहीं था। 

ईश्वर को पाने के लिए ऐसी ही तड़प होनी चाहिए। उसका मुझे पाने का भाव सच्चा था इसलिए मुझे स्वयं उसके जाल में आना पड़ा। 

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