UTPANNA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE IN HINDI

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा और महत्व

 Friday, 8 December 2023

एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है लेकिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष महत्व है क्योंकि सतयुग में एकादशी भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी या फिर उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है।


एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अति प्रिय है क्योंकि इसी दिन एकादशी देवी भगवान के शरीर से प्रकट हुई थी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदाई होता है। इस दिन एकादशी व्रत करने से पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। 

उत्पन्ना एकादशी व्रत  का महत्व

एकादशी का व्रत करने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है ।शत्रुओं का विनाश होता है और विघ्न दूर होते हैं ।जो मनुष्य एकादशी महात्म को पढ़ता या फिर सुनता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का महत्व युधिष्ठिर को सुनाया था। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी व्रत करने वाले को आरोग्य, संतान प्राप्ति होती है और मोक्ष का अधिकारी होता है। उत्पन्ना एकादशी के दिन मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करने से धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।


मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

 एक बार मुर नामक भयंकर दैत्य था ।उसने इंद्र ,वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग से भगा दिया ।सभी देवताओं ने जाकर भगवान शिव की स्तुति की। देवताओं ने अपनी विपति भगवान शिव को सुनाई।

भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने को कहा।सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाकर हाथ जोड़कर विनती करने लगे। हे उत्पत्ति ,पालन और संहार करने वाले प्रभु आप हमारी रक्षा करें।

दैत्य मुर ने हमें पराजित करके स्वर्ग से भगा दिया है। प्रभु आप हमारी रक्षा कीजिए। देवताओं की विनती सुनकर भगवान कहने लगे कि वह दैत्य कौन है और कहां से आया है ?

इंद्रदेव कहने लगे कि, "प्रभु यह दैत्य नाड़ीजंघ नाम के राक्षस का पुत्र है ,वह चंद्रावती नामक नगरी में रहता है उसमें समस्त देवताओं को स्वर्ग से निकालकर अपना अधिकार कर लिया है।"

 प्रभु आप हमारी रक्षा कीजिए और उस दैत्य का संहार करे। हम आपकी शरण में आए हैं। भगवान विष्णु ने कहा कि," मैं शीघ्र दैत्य का संहार करूंगा।" भगवान विष्णु दैत्य का संहार करने के लिए चंद्रावती नगर में गए।

मुर दैत्य ने विष्णु जी पर तीखे बाण छोड़े । भगवान विष्णु के बाण नागों की तरह लहराते हुए दैत्य को मारने लगे । युद्ध में सभी दैत्य मारे गए लेकिन मुर दैत्य बच गया।

 मुर दैत्य 10000 वर्षों तक भगवान से युद्ध करता रहा परंतु पराजित नहीं हुआ ।उस मुर दैत्य से लड़ते-लड़ते भगवान थक कर बद्रिका आश्रम चले गए। बद्रीनाथ में भगवान एक गुफा में विश्राम करने लगे। मुर दैत्य भगवान का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंच गया। मुर दैत्य सोया हुआ जानकर जैसे ही  भगवान को मारने के लिए उद्यत हुआ, उसी समय भगवान श्री हरि के शरीर से एक तेजस्वी कन्या अस्त्र-शस्त्र लिए हुए उत्पन्न हुई। उसने मुर दैत्य के साथ युद्ध किया और दैत्य का सिर काट डाला। किस प्रकार वह दैत्य पृथ्वी पर गिर कर मृत्यु को प्राप्त हुआ। 

 भगवान विष्णु की निंद्रा टूटी तो उन्होंने दैत्य के कटे हुए सिर और दो हाथ जोड़े खड़ी है कन्या को देखा। भगवान ने पूछा कि," इस दैत्य को किसने मारा है।" उस कन्या ने बताया कि जब आप निंद्रा में थे तो यह दैत्य आप को मारने के लिए उद्यत हुआ था। उसी समय मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इस दैत्य का वध किया है ।

भगवान बोले की तुमने दैत्य को मारकर देवताओं का महान कार्य किया है ।अब तुम इच्छा अनुसार वर मांगो।उस देवी ने वर मांगा कि, "जो मेरा व्रत करें उसके सब पाप नष्ट हो जाए और उसे मोक्ष को प्राप्त हो जाएं।"

रात्रि को भोजन करने वाले को आधा फल और जो एक बार भोजन करें उसको भी आधा फल प्राप्त हो । जो मनुष्य भक्ति पूर्वक व्रत को करें वह निश्चित ही आपके लोक को प्राप्त हो। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम्हारे और मेरे भक्त एक ही होंगे और वे जीवन में सुख को प्राप्त करेंगे । क्योंकि तुम एकादशी को उत्पन्न हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। तुम मुझको सब तिथियों में प्रिय हो इस कारण एकादशी व्रत का फल सभी तीर्थों से अधिक फलदाई होगा।

 भारत के उत्तराखंड राज्य के बद्रीनाथ में एक गुफा में भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी ।उस गुफा को एकादशी गुफा या फिर उत्पन्ना गुफा कहा जाता है। बद्रीनाथ से उसकी दूरी 1km 0.5 के लगभग है। 

व्रत विधि

एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात लक्ष्मी नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए।

भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है।

 इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।

भगवान कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए। गीता का पाठ करना चाहिए।

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए।

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है।

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी मार्ग शीर्ष मास शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत कथा


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