CHAUTH MATA MANDIR SAWAI MADHOPUR
चौथ माता मेला 2024
चौथ माता मंदिर: चौथ का बरवाड़ा,सवाई माधोपुर राज्यस्थान
चौथ माता का मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के बरवाड़ा में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यह मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है और इसका प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोह लेने वाला है। हर महीने चतुर्थी पर लाखों श्रद्धालु दूर दूर से दर्शन करने आते हैं। माघ चौथ, भाद्रपद चौथ, करवा चौथ और नवरात्रि में जहां पर श्रद्धालुओं के आने की संख्या लाखों में होती है।
इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने 1451 में करवाई थी। बरवाड़ा में चौथ माता की प्रतिमा स्थापित करने के बाद गांव चौथ का बरवाड़ा नाम से प्रसिद्ध हो गया। राजा भीम सिंह ने 1463 अपने पिता बीजल की स्मृति में एक विशाल छतरी का निर्माण करवा कर शिवलिंग की स्थापना की और एक तालाब का निर्माण करवाया। यह छतरी आज भी बीजल की छतरी और तालाब माता का तालाब से प्रसिद्ध है
चौथ माता पार्वती का ही एक रूप है। उनकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नवरात्रों के दौरान मंदिर में विशेष धार्मिक आयोजन किए जाते हैं ।
मंदिर में चौथ माता की मूर्ति के इलावा भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित की गई हैं। मंदिर की वास्तुकला परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करती है।
बूंदी राज घराने के लोग चौथ माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पुजते हैं।चौथ माता सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं। चौथ माता मंदिर में सैकड़ों सालों से एक अखंड ज्योति जल रही है। मन्दिर राजस्थान के 11प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। माता के नाम पर कोटा में चौथ बाजार भी है।
करवा चौथ के पर्व पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मंदिर में विशेष सजावट की जाती है और मेला लगता है। सुहागिन स्त्रियां सुखी दांपत्य जीवन और पति की लंबी आयु की कामना और सुख समृद्धि के लिए चौथ माता की पूजा के लिए आती है । यह मंदिर 1000 फीट की ऊंचाई पर बना है और शहर से 35 किमी दूर है। यहां तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।
चौथ माता मंदिर निर्माण राजा भीम सिंह ने करवाया
एक कथा के अनुसार राजा भीम सिंह चौहान एक बार शाम के समय शिकार पर जा रहे थे। तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका। राजा ने यह कहकर उनकी बात को टाल दिया कि चौहान एक बार अगर सवार हो जाते हैं तो वह शिकार करके ही घोड़े से नीचे उतरते हैं। राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल की तरफ चले गए। शिकार के दौरान राजा एक मृग का पीछा करते-करते काफी दूर तक निकल गए और शाम ढल गई। मृग भी राजा की नजरों से ओझल हो गया और वह राजा रास्ता भटक चुके थे और उनके सैनिक भी उनके साथ नहीं थे।
राजा बहुत प्यार से लगी हुई थी। राजा को जब काफी खोजने के बाद भी पानी नहीं मिला तो वह मूर्छित होकर गिर पड़े। उसी मूर्छित अवस्था में राजा को पंचाल तलहटी में चौथ माता की प्रतिमा दिखी। कुछ देर के बाद वर्षा होने लगी बिजली कड़कने लगी। जब राजा की मुर्च्छा छूटी तो चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया। राजा ने पानी पीने के पश्चात एक कन्या को देखा। राजा ने कन्या से पूछा कि इस जंगल में अकेली क्या कर रही हो ?तुम्हारे माता-पिता कहां है ?
कन्या ने राजा से पूछा कि हे राजन् आप बताओ आपकी प्यास बुझी गई। इतना सुनकर देवी असली रूप में प्रकट हुई ।तब राजा उनके चरणों में गिर गया और विनती करने लगा हे! माता मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए ।अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे वरदान दे कि आप सदैव मेरे इस राज्य में निवास करें ।
देवी उसे आशीर्वाद देकर वहां से अदृश्य हो गई । राजा को चौथ माता की प्रतिमा मिली। माता की प्रतिमा को राजा बरवाड़ा आ गया। बरवाड़ा जाने के पश्चात राजा ने पुरोहितों को सब वृतांत सुनाया। राजा ने उनकी सलाह पर संवत 1451 को माघ मास कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से माता की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित कर दिया तब से आज तक इस दिन वहां चौथ माता का मेला लगता है।
चौथ माता मंदिर में आप कभी भी यात्रा कर सकते हैं लेकिन माघ मास की चौथ , नवरात्रि और करवा चौथ के समय यहां विशेष महत्व है। मंदिर में राज्यस्थान के अतिरिक्त पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं।
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