DAAN KA MAHATAV MORAL STORY

 दान का महत्व प्रेरणादायक कहानी 

हर व्यक्ति को अपने जीवन में दान जरूर करना चाहिए क्योंकि उस पैसे का भी क्या अर्थ जिसका आप केवल संचय करते रहे उसका ना तो स्वयं उपयोग करें और ना ही दूसरों को दान दें। दान पर संस्कृत में बहुत उपयुक्त श्लोक है -




यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनो यज्ञधनम् ।

अन्ये मृतस्य क्रीडन्ति दारैरपि धनैरपि ॥
धनिक का सच्चा धन तो वह ही होता है जो वह (दान) करता है और जो वह(स्वयं) भोगता है । अन्यथा मरणांतर तो, उसकी स्त्री और धन का उपभोग अन्य लोग ही करते हैं ।

पढ़ें दान के महत्व एवं प्रेरक प्रसंग 

एक बार बहुत ही धनी व्यापारी था। उसने अपने जीवन में बहुत धन वैभव इकट्ठा किया था। लेकिन वह एक भी पैसा दान ना तो दान करता था और ना ही किसी गरीब की जरूरत पड़ने पर मदद करता था। व्यापारी का एक वफादार नौकर था वह अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा दान पुण्य या फिर गरीबों की मदद पर जरूर लगाता था। 

व्यापारी उसे हर बार धन का महत्व समझाता और कहता कि तुम्हें यह धन अपने लिए बचा कर रखना चाहिए, ना कि दूसरों को दान करते फिरो। लेकिन नौकर की बात को ना मान कर अपनी आय का एक हिस्सा किसी ना किसी धर्म कर्म के काम में जरूर लगाता था। 

जब व्यापारी ने जब देखा कि उसके नौकर पर उसके समझाने का कोई असर नहीं हो रहा तो उसने इसे अपना अपमान समझा। व्यापारी ने नौकर को एक डंडा दिया और कहा कि मेरी नज़र में इस समय तुम सबसे बड़े मूर्ख हो क्योंकि तुम अपना कमाया हुआ धन दूसरों को बांटते फिर रहे हो। जिस दिन तुम्हें अपने से बड़ा मूर्ख कोई मिल जाएगा उस दिन तुम यह डंडा उसे दे देना।

 नौकर ने विनम्रता से मुस्कुराते हुए मालिक के डंडे को स्वीकार कर लिया। कुछ समय के पश्चात व्यापारी बहुत बीमार पड़ गया और मरणासन्न हो गया। उसके अंतिम समय में उसका वफादार नौकर उसके पास पहुंचा और कहने लगा कि मालिक आप मुझे अपने साथ ले चलें।

 व्यापारी ने डांटते हुए कहा कि तुम जानते हो कि मृत्यु के पश्चात में कोई भी किसी को अपने साथ नहीं लेकर जा सकता। नौकर बोला कि ठीक है आपने जो सारी उम्र इतना धन संपदा इकट्ठा किया है उसमें से थोड़ा धन दौलत अपने साथ ले जाओ ताकि वहां आराम से रह सको।

 व्यापारी ने में डांटते हुए कहा कि," तुम्हें एक बात समझ नहीं आती कि इंसान खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। वहां कोई भी कुछ भी नहीं लेकर जा सकता।

 नौकर ने उसी समय डंडा निकाला और अपने मालिक को दे दिया। नौकर कहने लगा कि आज मुझे अपने से ज्यादा मूर्ख व्यक्ति मिल गया है और वह आप हैं।

 आप सारा जीवन धन दौलत और सुविधा का सामान इकट्ठा करते रहे । आपने ना तो दान पुण्य किया और धन वैभव इकट्ठा करने के चक्कर में कभी ईश्वर का नाम ही ठीक से ही कर पाए‌। इसलिए अधिक धन का लोभ अच्छा नहीं उससे अपने जीवन रहते हैं प्रयोग करें और अधिक होने पर दूसरों की सहायता में लगाएं।

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