DHANNA BHAKT KI KATHA
धन्ना भगत की जयंती पर पढ़ें उनके पत्थर से भगवान को पाने की कथा
धन्ना भगत ने अपनी निश्छल भक्ति से पत्थर में से भगवान को पाया था। वह भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। 23 अप्रैल 2023 दिन रविवार को धन्ना भगत की जयंती मनाई जाएगी। धन्ना भगत की जयंती पर पढ़ें उनकी भक्ति पूर्ण कथा (devotional story) कैसे उन्होंने अपने प्रेम से भगवान को पाया था।
धन्ना जी का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। जब वह पांच साल के थे तो एक पंडित जी तीर्थ यात्रा से लौट कर उनके घर पर कुछ दिनों के लिए ठहरे। पंडित जी के पास एक शालीग्राम था। वह हर रोज स्नान के पश्चात शालीग्राम को स्नान करवाते। उनकी पूजा करते और उनको भोग लगा कर ही फिर स्वयं भोजन करते। पंडित जी को शालीग्राम की सेवा, पूजा करते देख धन्ना उनको कहते कि जब आप हमारे घर से जाए तो यह शालीग्राम जी मुझे दे जाना मैं भी आपके जैसे उनकी पूजा करूंगा। पंडित जी को लगा कि बच्चा शायद उन्हें खिलौना समझ रहा है।
पंडित जी ने बहुत समझाया कि तुम अभी छोटे हो अभी तुम इन की सेवा नहीं कर पाओगे। माता पिता ने भी समझाया। लेकिन नन्हे बालक की जिद्द को देखकर पंडित जी को एक उपाय सूझा।
पंडित जी जब सुबह स्नान करने गए तो शालिग्राम जी से मिलता-जुलता एक पत्थर आप साथ ले आए। उन्होंने धन्ना के सामने उस पत्थर को स्नान कराया, उसको आसन पर विराजमान करवाया और अपने वाले शालिग्राम जी को जानबूझकर नीचे विराजमान किया। उन्होंने धन्ना से पूछा कि तुम्हें कौन सा शालीग्राम चाहिए। धन्ना ने पंडित के शालीग्राम की ओर इशारा दिया कि मुझे तो नीचे वाला शालीग्राम चाहिए।
पंडित जी कहने लगे कि," एक बार फिर से सोच लो, क्योंकि जो शालीग्राम ऊपर विराजमान हैं वह राजा है और जो नीचे विराजमान हैं वह सेवक है। अब सोचकर बताओ कि तुम्हें कौन सा शालीग्राम चाहिए।" धन्ना पंडित जी की बातों में आ गया और पंडित जी उसे पत्थर को शालीग्राम बता कर दे दिया।
पंडित जी जाते समय धन्ना से कहा कि तुम इस शालिग्राम जी को हर रोज स्नान करवा कर उनकी पूजा करना और इनको भोग लगा कि ही स्वयं भोजन ग्रहण करना। धन्ना भक्त ने पत्थर को स्नान करवाया और चार मोटी- मोटी बाजरे की रोटियां और साथ में मक्खन लेकर उस पत्थर को भोग लगाने की याचना करने लगा। धन्ना नहीं जानते थे कि भगवान को भोग कैसे लगाते है वह सोच रहे थे कि वह प्रत्यक्ष प्रकट होकर भोग लगाएंगे।
जब भगवान पत्थर में से प्रकट नहीं हुए तो धन्ना कहने लगे कि जब तक आप भोजन नहीं करोंगे मैं भी नहीं खाऊंगा। उन्होंने शाम होने पर सारा खाना गाय को डाल दिया। उसके माता-पिता को यह बात पता नही चली क्योंकि वह किसान थे। सुबह ही रोटी बनाकर माता पिता खेत में निकल जाते थे।
तीन दिन बीत गए लेकिन उन्होंने भोजन नहीं किया। भगवान उनकी निश्छल भक्ति भाव से रीझ गए और शालिग्राम जी के दो हाथ उस पत्थर में से निकलकर बाहर आए। भगवान ने बाजरे की बनी हुई चारों रोटियों को उठा ली। धन्ना की नज़र जब भगवान के हाथों पर पड़ी तो उन्होंने भगवान के हाथ पकड़े लिए और कहने लगे कि तुम अकेले ही भूखे नहीं हो मैं भी तीन दिन से भूखा हूं। इसमें दो रोटी रोटी तुम खाओ और दो रोटी मै खाऊंगा। इतना कहकर वह भगवान के हाथों से दो रोटी छीनने लगे तो भगवान स्वयं प्रकट हो गए। भगवान ने बड़े चाव से बाजरे की रोटी और मक्खन खाया। इस तरह धन्ना भक्त की निश्छल भक्ति से भगवान स्वयं प्रकट हो गए थे इसलिए तो कहते हैं कि भगवान तो भाव के भूखे हैं।
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