GANGA SAGAR MELA KAHA LAGTA HAI HISTORY

गंगा सागर मेला 2023 



गंगा सागर मेला कब और कहां लगता है ?

गंगा सागर का मेला प्रतिवर्ष पौष मास के अंतिम दिनों 8 जनवरी से शुरू हो जाता है और मकर सक्रांति के दिन जो कि 14 या 15 जनवरी को आती है तब अपने चरम पर होता है। गंगा सागर तीरथ के बारे में कहा जाता है कि सारे तीरथ बार- बार गंगासागर एक बार। 

गंगा सागर का मेला भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर के निकट हुगली नदी के तट लगता है। गंगा नदी इस स्थान पर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसलिए यह मेला गंगासागर नाम से प्रसिद्ध है। 

ऐसी मान्यता है कि मां गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों जिस दिन मोक्ष दिया था उस दिन मकर सक्रांति थी। उसके पश्चात मां गंगा सागर में मिल गई । वह स्थान अब गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध है ।

 गंगा सागर मेले का महत्व 

हिंदू धर्म में गंगासागर मेले का स्नान करना बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि यह पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है। मकर सक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान करना विशेष फलदाई होता है क्योंकि इस दिन सूर्य भगवान धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं ।गंगा स्नान के दौरान श्रद्धालु सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और अच्छी फसल की कामना के लिए भी सूर्य देव की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन ही मां गंगा भगीरथ के अनुरोध पर पृथ्वी पर आई थी ।

 मकर सक्रांति के दिन किसी पवित्र नदी सरोवर में स्नान करना शुभ माना जाता है लेकिन जो गंगासागर में स्नान करते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू धर्म को मानने वालों की एक इच्छा होती है एक बार गंगासागर पर स्नान अवश्य करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर सक्रांति को गंगा सागर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण गंगासागर में मकर सक्रांति का मेला लगता है ।

गंगा सागर मेले में आने वालों में नागा साधुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। जब वे अपने शिविरों में योग और अनुष्ठान करते हैं तो उनके शरीर पर आमतौर पर राख का लेप लगाया जाता है। इन अनुष्ठानों में अधिकांश भक्त भी शामिल होते हैं जो मेले में इसे एक और लोकप्रिय आकर्षण बनाते हैं। 

गंगा सागर के तट पर पितरों के निमित जल तर्पण अवश्य करना चाहिए । इससे पितरों का उद्धार होता और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन गंगासागर में जो युवतियां-युवक स्नान करते हैं उन्हें मनवांछित वर तथा वधु मिलते हैं। गंगा सागर के तट पर  पंडागण गाय बछिया के साथ खड़े रहते हैं और जो श्रद्धालुओं की इच्छा अनुसार पूजा करा देते हैं। 

श्रद्धालु गंगासागर तट पर स्नान और पूजन के पश्चात कपिल मुनि के आश्रम में दर्शन किए जाते हैं। मंदिर में कपिल मुनि के साथ साथ गंगा नदी और भागीरथी की मूर्तियां स्थापित हैं।मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगासागर में स्नान जरूर किया जाना चाहिए। 

गंगा सागर मेले का इतिहास 

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा सगर ने अश्वमेध य़ज्ञ का आयोजन किया। देवराज इंद्र सोचने लगे कि कहीं महाराज सगर इंद्र पद पाने के लिए तो अश्वमेघ यज्ञ नहीं करवा रहे।  इंद्रदेव ने यज्ञ में विघ्न डालने के लिए महाराज सगर का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे मुनि कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब राजा सगर के साठ हजार ‌ पुत्रों को घोड़ा चोरी होने का समाचार मिला तो सभी घोड़े को ढूंढने के लिए निकल पड़े और खोजते- खोजते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे।

 उन्हें ऐसा लगा कि कपिल मुनि ने घोड़ा चुराया है और उन्होंने कपिल मुनि पर उन्होंने घोड़ा चोरी करने का दोष लगा दिया।मिथ्या आरोप से क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।

राजा सगर को जब इस बात की सूचना मिली तो वह दौड़े हुए कपिल मुनि के आश्रम में आए और उनसे अपने पुत्रों के किए के लिए क्षमा मांगी। कपिल मुनि कहने लगे कि," राजन! तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष‌ मिलने का एक ही मार्ग है यदि तुम्हारे वंश में से कोई मोक्षदायिनी गंगा को इस पृथ्वी पर ले आए।"

राजा सगर, उनके पौत्र अंशुमन और उनके पुत्र दिलीप ने मां गंगा को धरती पर लाने के बहुत तप किया लेकिन वह सफल नहीं हुए। लेकिन राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तप किया जिससे मां गंगा प्रसन्न हुई। उन्होंने मां गंगा से उनके पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पृथ्वी पर चलने के लिए कहा।

माँ गंगा भगीरथ से कहने लगी कि," मैं पृथ्वी पर चलने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरा वेग बहुत ज्यादा है और पृथ्वी मेरे वेग कों संभाल नहीं पाएंगी और सर्वनाश हो सकता है ।

उन्होंने भगीरथ से भगवान शिव को प्रसन्न करने का सुझाव दिया। भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की और भगवान शिव की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए। भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं में बांधकर गंगाधर बने उन्होंने अपनी जटाओं से होकर गंगा को पृथ्वी पर उतरने दिया। 

जिससे गंगा का वेग कम हो गया मां गंगा पृथ्वी पर उतरी। आगे राजा भागीरथ और पीछे पीछे मां गंगा पृथ्वी पर बहने लगी। राजा भगीरथ गंगा को लेकर कपिल मुनि के आश्रम तक गए जहां पर मां गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों मोक्ष प्रदान किया।  जिस दिन गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष दिया उस दिन मकर सक्रांति थी।

 वहां से मां गंगा सागर में मिल गई । इसलिए यह गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध है ।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर सक्रांति को गंगा सागर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और अश्वमेध यज्ञ तथा हजार गाय दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। 

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