ISHWAR KE DHARSHAN

  ईश्वर के दर्शन एक प्रेरणादायक कहानी 


एक बार एक बहुत ही प्रजा वत्सल और दयालु राजा था। वह अपनी प्रजा की सेवा संतान की तरह करता था। उसकी ईश्वर में भी प्रगाढ़ आस्था थी। अपने प्रत्येक कार्य का श्रेय ईश्वर को देता और बहुत श्रद्धा भाव से भगवान की पूजा अर्चना करता था। एक बार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे दर्शन दिये। भगवान को साक्षात देकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। भगवान कहने लगे कि," मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं ,तुम जो चाहे मांग लो।"

राजा ने उत्तर दिया कि," प्रभु मेरे पास आप का दिया हुआ सब कुछ है। मैं आपके दर्शन मात्र से धन्य से हो गया हूं। अब मुझे किसी भी चीज की कोई अभिलाषा नहीं है। लेकिन मेरी इच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन दिए वैसे आप एक बार मेरी प्रजा , दरबारियों और स्वजनों को भी दर्शन दो।"

भगवान कहने लगे कि," राजन्! ऐसा संभव नहीं है क्योंकि बिना भाव के वें मेरे दर्शन नहीं कर पाएंगे।" राजा की जिद्द के आगे भगवान को झुकना पड़ा। 

भगवान कहने लगे कि," मैं कल पहाड़ी के ऊपर सब को दर्शन देने को तैयार हूं। तुम अपनी प्रजा को लेकर वहां पहुंच जाना।" राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि भगवान पहाड़ी पर सब को दर्शन देने वाले हैं। सब लोग मेरे पीछे-पीछे भगवान के दर्शन के लिए आ जाना।

अगले दिन प्रातः राजा अपनी प्रजा और परिवार वालों के साथ पहाड़ी की ओर चल पड़ा ।कुछ दूर ही रहे थे कि एक चांदी के सिक्कों का पहाड़ दिखाई दिया। जिसे देखकर प्रजा के लोग उस सिक्कों को इकट्ठा करने के लिए भागे। राजा उन्हें समझाने लगा की उस पर ध्यान ना दो। तुम लोग भगवान से मिलने जा रहे हो। 

लेकिन किसी ने भी राजा की बात नहीं सुनी और बहुत से लोग चांदी के सिक्कों को इकट्ठे कर अपने घर की ओर चल दिए।  क्योंकि उनके मन में यही चल रहा था कि पहले चांदी के सिक्के संभाल ले, भगवान के दर्शन का क्या है ? वह तो फिर कभी कर लेंगे।

कुछ दूरी पर आगे चले तो सोने के सिक्कों का पहाड़ दिखा। अब जो लोग राजा के साथ बचे थे वें भी सोने के मोह में अपने कपड़ों की गठरी बनाकर उसमें सोने के सिक्के बांधने लगे।

सिक्के इकट्ठे कर अपने घर की ओर चले गए। वें लोग यही सोच रहे थे कि भगवान के दर्शन फिर कभी कर लेंगे। सोने के सिक्के कौन से रोज रोज मिलते हैं पहले इन्हें संभाल ले।

 अब केवल राजा के साथ उसकी अब रानी बची थी। राजा रानी को बता रहा था कि आज ईश्वर साक्षात दर्शन देने वाले थे। लेकिन यह लोग सिक्कों के मोह में ईश्वर के दुर्लभ दर्शनों को छोड़कर चांदी, सोने के सिक्कों के पीछे भाग रहे हैं। यह नहीं जानते कि यह क्या छोड़ रहे हैं? रानी ने राजा के हां में हां मिला दी।

 लेकिन जब राजा और रानी पहाड़ से केवल कुछ दूरी थे तो हीरो का चमचमाते हुआ एक पहाड़ दिखाई दिया। अब तो रानी भी राजा को छोड़कर उन हीरो के लालच में उस और दौड़ी और अपने वस्त्रों में जल्दी से जल्दी जितने हीरे इकट्ठे कर सकती थी इकट्ठे कर वापिस राज महल की ओर चल दी।

 जब राजा पहाड़ी पर पहुंचा तो वहां सचमुच ईश्वर दर्शन देने के लिए खड़े थे। वह राजा को देख कर मुस्कुराए और बोले क्यों राजन्! कहां है तुम्हारी प्रजा और कहां है तुम्हारे स्वजन? जिनको तुम मेरे दर्शन करवाना चाहते थे मैं कब से उनका इंतजार कर रहा हूं।

राजा ने शर्मिंदगी से अपना सर झुका लिया। भगवान कहने लगे कि," इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। क्योंकि राजन्! जो लोग भौतिक और संसारिक सुख की प्राप्ति को ईश्वर से अधिक मानते हैं उन्हें कभी भी मेरी प्राप्ति नहीं हो सकती।"

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