JARASANDHA VADH KATHA

 जरासंध के जन्म और वध कथा

श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उन्होंने अपने इस अवतार में बहुत से दुष्टों का स्वयं वध किया या फिर जिनका वध‌ विधि के विधान अनुसार उनके हाथों नहीं लिखा था। उस दुष्ट के वध‌ की योजना बना कर उसका विनाश किया। उनमें से एक जरासंध भी था।



जरासंध मथुरा के राजा कंस का ससुर था। जब श्री कृष्ण ने मथुरा में कंस का वध कर दिया तो कंस की दोनों पत्नियां जिनके नाम अस्ति और प्राप्ति थे, वह कंस वध के पश्चात दुखी हुई और अपने पिता जरासंध के पास चली गई। 

जब जरासंध को कंस वध का समाचार मिला तो वह बहुत क्रोधित हुआ उसने श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए अपने मित्र राजाओं को मथुरा पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा।

कंस वध कथा

जरासंध के मित्र राजा 

जरासंध के मित्र राज्य राजा दंतवक , चेदिराज, राजा भीष्मक का पुत्र रूक्मी, शाल्वराज, राजा भगवत्त, कलिंग पति पौंड्रक और यवन का राजा कालयवन थे और शिशुपाल उसका सेनापति था।

जरासंध ने 17 बार मथुरा पर हमला किया। श्री कृष्ण ने हर बार उसे पराजित किया। बलराम श्री कृष्ण से कहते हैं कि जरासंध बार बार हमला करता है तुम इसका वध क्यों नहीं करते ?श्री कृष्ण कहने लगे कि," यह ऐसे ही दुष्टों की सेना लाता रहेगा और हम उसे समाप्त करते रहेंगे।" 

इस जरासंध ने सत्रह  बार मथुरा पर आक्रमण किया लेकिन मथुरा को श्री कृष्ण का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए जरासंध को हर बार वापसी लौटना पड़ता। श्री कृष्ण हर बार उसकी सेना को मार भगाते। 18वीं बार हमला करने से पहले श्री कृष्ण द्वारिकापुरी चले गए। इसलिए उन्हें रणछोड़ भी कहा जाता है।

श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है

जरासंध जन्म कथा 

 जरासंध राजा बृहद्रथ का पुत्र था जो कि मगधदेश में राज्य करते थे। राजा बृहद्रथ की दो पत्नियां थीं परन्तु राजा की दोनों पत्नियों से कोई संतान नहीं थी। एक बार राजा बृहद्रथ ने ऋषि चण्डकौशिक को अपनी सेवा से प्रसन्न किया कर संतान प्राप्ति का वर मांगा । उन्होंने  होकर राजा को एक फल दिया और बोला कि इसे खाने से तुम्हारी पत्नी को संतान अवश्य प्राप्त होगी । 

 राजा ने वह फल काटकर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया। राजा ने  चण्डकौशिक को अपनी दो पत्नियों के बारे में नहीं बताया था। राजा की दोनों रानियों के गर्भ से बच्चे के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ। दोनों रानियों ने भयभीत होकर शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर फेंक दिया।

 संयोग वश उसी समय वहां से एक राक्षसी निकली । राक्षसी ने जब  जीवित शिशु के दो टुकड़ों को देखा तो उसने राक्षसी माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और एक पूर्ण शिशु बन गया जुड़ते ही बच्चा रोने लगा।

 राजा बृहद्रथ ने जब शिशु के रोने की आवाज सुनी तो वह वहां पहुंचे तो जरा राक्षसी ने राजा को सारी बात बता दी। राजा बृहद्रथ बहुत प्रसन्न हुएं उन्होंने शिशु का नाम जरासंध रखा क्यों कि जरा नाम की राक्षसी ने उसे संधि  से जोड़ा था।

जरासंध द्वारा राजाओं को कैद करना 

जरासंध ने अपने गिरिव्रज नामक किले में बीस हजार आठ सौ  राजाओं को कैद करके रखा था। एक दिन श्री कृष्ण के पास द्वारिका जी में उन राजाओं द्वारा भेजा हुआ एक दूत आया। उन्होंने श्रीकृष्ण को संदेश भेजा कि हमें जरासंध के बंधन से मुक्त करवाओ।

 दूत कहने लगा कि प्रभु आपने जरासंध से सत्रह बार युद्ध करके उसे हराया और 18वीं बार आप रणछोड़ लीला कर वहां से भाग गए।जरासंध आपकी प्रजा को दुःखी कर रहा है। प्रभु आप उनको मुक्त करवाओ।

 उसी समय नारद जी सभा में प्रगट हुए। श्रीकृष्ण ने सभा सहित नारद जी को प्रणाम कर उनका आदर सत्कार किया और उनके आगमन का कारण जानना चाहा। नारद जी कहने लगे कि," राजा युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ कर आपका पूजन करना चाहते हैं।"

श्री कृष्ण ने बनाई जरासंध वध की योजना 

श्रीकृष्ण ने तब सभा में उद्धव जी से पूछा कि," हमें क्या करना चाहिए?" उद्धव जी कहने लगे कि," राजा युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ पूजन करना चाहते हैं। परंतु राजसूय यज्ञ के लिए संपूर्ण दिशाओं के राजाओं को जीतना होगा और उसके लिए जरासंध को जीतता पड़ेगा।

 प्रभु इससे शरण में आए राजाओं की भी रक्षा होगी और आपका यश भी चारों ओर फैल जाएगा। जरासंध में दस हज़ार हाथियों का बल था। श्री कृष्ण जानते थे कि विधि के विधान के अनुसार जरासंध का भीम के हाथों ही मरना लिखा है। इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन और भीम के साथ जरासंध के पास पहुंचे।

जरासंध वध कथा

 जरासंध ब्राह्मणों का भक्त था।इसलिए श्री कृष्ण, अर्जुन और भीम ब्राह्मण के भेष में जरासंध के पास गए थे और उससे भिक्षा मांगी। श्री कृष्ण कहने लगे कि हम बहुत दूर से तुम्हारे अतिथि होकर आए हैं। हमें जो वस्तु चाहिए क्या तुम हमें दे सकते हो ? 

जरासंध कहने लगा कि," तुम लोग जो मांगोगे, वह मैं अवश्य दूंगा।" उसका उत्तर सुनते ही श्री कृष्ण कहने लगे कि, हम छत्रिय हैं ।मेरा नाम वसुदेव है और यह दोनों मेरे फुफेरे भाई अर्जुन और भीम है। यह द्वंद युद्ध करने तुम्हारे पास आए हैं।"

 श्रीकृष्ण की बात सुनकर जरासंध कहने लगा कि," मैं भीमसेन से युद्ध करने के लिए तैयार हूं ,क्योंकि यह मेरे समान बलवान है। दोनों में द्वंद्व युद्ध शुरू हुआ।

 जरासंध भीम से कहने लगा पहले पर प्रहार तुम करो क्योंकि तुम ब्राह्मण का वेश धारण करके मेरे द्वार पर आए थे इसलिए मैं तुम पर पहला प्रहार नहीं करूंगा ।दोनों में धर्म युद्ध शुरू हो गया और दोनों सत्ताईस दिन तक लड़ते रहे । श्री कृष्ण सोचने लगे इस तरह तो जरासंध मारा नहीं जाएगा ।

जरासंध को वरदान और मृत्यु का कारण 

जरासंध का जन्म दो माताओं से हुआ था और उसे जरा नामक राक्षसी ने संधि से जोड़ा था इसलिए उसे वरदान प्राप्त था कि वह मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित हो सकता है। उसको मारने का एक ही उपाय था कि उसके शरीर के दोनों हिस्सों को अलग कर विपरीत दिशा में फैंक दिया जाए।  श्री कृष्ण इस बारे में जानते थे।

श्री कृष्ण ने भीम को तिनका को चीर कर उलटी दिशा में फेंक कर संकेत से समझा दिया कि इस तरह से जरासंध का वध होगा। श्री कृष्ण का संकेत पाते ही भीम ने उसे उसी प्रकार पकड़ कर चीर डाला जैसे हाथी वृक्ष की शाखा को चीर देता है। श्री कृष्ण ने जरासंध के वध के पश्चात उसके पुत्र सहदेव को मगध का राजा बना दिया और बीस हज़ार आठ सौ राजाओं को जरासंध की कैद से मुक्त करवाया।

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