MAKAR SANKRANTI KA MAHATVA KATHA DAAN
मकर संक्रांति 2023
मकर संक्रांति का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। सूर्य देव के एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने को सक्रांति कहा जाता है । एक साल में 12 संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य भगवान धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
इस दिन तिल, गुड़ से बनी चीजें दान की जाती है और खाई जाती हैं। कई राज्यों में इसे उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है और लोग पतंग उड़ा कर त्योहार का मजा लेते हैं। मकर संक्रांति के दिन किए गए जप, तप, दान का विशेष महत्व है । इस दिन किए हुए दान का फल बाकी दिनों से दिए दान से कई गुना अधिक होता है। इस दिन गुड़, तिल और गरीबों को अनाज, कंबल आदि दिए जाते हैं । मकर सक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने और खाना विशेष फलदाई माना जाता है।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं जो मकर राशि के स्वामी माने जाते हैं ।इस दिन इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है।
इस दिन से सूर्य भगवान अपनी दिशा दक्षिण से बदल उत्तर ओर की बढ़ते हैं। इस लिए इस दिन को उत्तरायण भी कहा जाता है।
मकर संक्रान्ति का महत्व और मकर संक्रांति को क्या दान करना चाहिए
गुड़ तथा तिल दान करने से सूर्य और शनि ग्रह को मजबूती मिलती है।
नमक दान करने से बुरा वक्त खत्म होता है।
घी दान करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं।
गरीबों को अनाज दान करने से धन धान्य के भंडार भरते हैं और मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होती है।
मकर संक्रांति के दिन जुड़ी से प्रचलित कई कथाएं हैं ।
माना जाता है कि भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर सक्रांति के दिन को चुना था। क्योंकि माना जाता है सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्यागने से पुनर्जन्म के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है।
जिस दिन मां यशोदा ने श्री कृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था तब सूर्य उत्तरायण थे और उस दिन मकर सक्रांति का ही दिन था।
एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का वध कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। भगवान विष्णु की इस विजय को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व क्यों है ?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। अपने परोपकार और पुण्य कार्य के लिए पहले ही तीनो लोक में प्रसिद्ध थे। जब चारों ओर उनका गुणगान होने लगा तो देवराज इंद्र सोचने लगे कि कहीं महाराज सगर इंद्र पद पाने के लिए तो अश्वमेघ यज्ञ नहीं करवा रहे। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ की जिम्मेदारी अपने पौत्र अंशुमान को सौंप दी।
उधर इंद्रदेव ने यज्ञ में विघ्न डालने के लिए महाराज सगर का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे मुनि कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को घोड़ा चोरी होने का समाचार मिला तो सभी घोड़े को ढूंढने के लिए निकल पड़े और खोजते खोजते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे।
उन्हें ऐसा लगा कि कपिल मुनि ने घोड़ा चुराया है और उन्होंने कपिल मुनि पर उन्होंने घोड़ा चोरी करने का दोष लगा दिया।मिथ्या आरोप से क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।
राजा सगर को जब इस बात की सूचना मिली तो वह दौड़े हुए कपिल मुनि के आश्रम में आए और उनसे अपने पुत्रों के किए के लिए क्षमा मांगी। कपिल मुनि कहने लगे कि," राजन! तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष मिलने का एक ही मार्ग है यदि तुम्हारे वंश में से कोई मोक्षदायिनी गंगा को इस पृथ्वी पर ले आए।"
राजा सगर के पोते अंशुमन ने प्रण लिया की जब तक मां गंगा को पृथ्वी पर नहीं ले जाते तब तक इस वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं बैठेगा।
राजा सगर, उनके पौत्र अंशुमन और उनके पुत्र दिलीप ने गंगा को धरती पर लाने के बहुत तप किया लेकिन वह सफल नहीं हुए। लेकिन राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तप किया जिससे मां गंगा प्रसन्न हुई। उन्होंने मां गंगा से उनके पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पृथ्वी पर चलने के लिए कहा।
माँ गंगा भगीरथ से कहने लगी कि," मैं पृथ्वी पर चलने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरा वेग बहुत ज्यादा है और पृथ्वी मेरे वेग कों संभाल नहीं पाएंगी और सर्वनाश हो सकता है ।
उन्होंने भगीरथ से भगवान शिव को प्रसन्न करने का सुझाव दिया। भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की और भगवान शिव की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए।
भगवान शिव ने वरदान मांगने के लिए कहा। भगीरथ ने भगवान शिव को अपनी समस्या बता दी। भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं से होकर पृथ्वी पर उतरने दें जिससे गंगा का वेग कम हो सकेगा। भगवान ने शिव गंगा को अपनी जटाओं में बांधकर गंगाधर बने उन्होंने अपनी जटाओं से होकर गंगा को पृथ्वी पर उतरने दिया।
जिससे गंगा का वेग कम हो गया मां गंगा पृथ्वी पर उतरी। आगे राजा भागीरथ और पीछे पीछे मां गंगा पृथ्वी पर बहने लगी। राजा भगीरथ गंगा को लेकर कपिल मुनि के आश्रम तक गए जहां पर मां गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों मोक्ष प्रदान किया। जिस दिन गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष दिया उस दिन मकर सक्रांति थी।
वहां से मां गंगा सागर में मिल गई । वह स्थान अब गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध है ।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर सक्रांति को गंगा सागर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण गंगासागर में मकर सक्रांति का मेला लगता है ।इस दिन अलग अलग राज्य में गंगा जी के किनारे माघ मेला लगता है।
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