SATSANG AUR SANT KI MAHIMA

सत्संग की महिमा 


एक बार देव ऋषि नारद भगवान विष्णु से पूछने लगे कि," प्रभु सत्संग की महिमा क्या है?" भगवान विष्णु नारद जी से कहने लगे कि," नारद जी आपको इमली के पेड़ पर एक गिरगिट मिलेगा आप उससे सत्संग की महिमा पूछना। नारद जी गिरगिट के पास गए और उससे सत्संग की महिमा पूछने लगे।

नारद जी का प्रश्न सुनते ही गिरगिट ने उसी क्षण प्राण त्याग दिए। नारद जी भगवान विष्णु के पास वापस लौट आए। नारद जी कहने लगे कि," प्रभु मेरा प्रश्न सुनते ही गिरगिट ने प्राण क्यों त्याग दिये?" विष्णु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया अपितु वह कहने लगे कि, अब तुम एक सेठ के घर जाओ और उसके पिंजरे में एक तोता दिखेगा तुम उससे सत्संग का महत्व पूछना।

 नारद जी जैसे ही उस तोते से सत्संग का महत्व पूछा उसके भी प्राण पखेरू हो गए। नारद जी भगवान विष्णु के पास वापस लौटे और कहने लगे कि," प्रभु मैं तो आपसे सत्संग की महिमा पूछने गया था लेकिन मैंने जिस से भी सत्संग की महिमा पूछी वह मर गया।

 क्या मरना ही सत्संग की महिमा है ? भगवान विष्णु मुस्कुराते हुए बोले कि नारद जी बहुत जल्दी आपको सत्संग और संत के संग का महत्व नज़र आ जाएगा। अब आप नगर के राजा के पास जाओ। उसके नवजात शिशु से सत्संग की महिमा पूछना।

 नारद जी कहने लगे कि," इससे पहले तो उस जानवर और पक्षी दोनो ने सत्संग की महिमा पूछते ही प्राण त्याग दिए थे। अगर राजा का नवजात शिशु भी मर गया तो राजा मुझे नहीं छोड़ेगा और मेरी बहुत बदनामी होगी। लेकिन भगवान विष्णु के कहने पर नारद जी राज महल में पहुंच गए। राजमहल में नवजात शिशु के आगमन की खुशी में जश्न का माहौल था। राजा नवजात शिशु को आशीर्वाद दिलाने के लिए नारद जी को उनके पास ले गया।

नारद जी नवजात शिशु के पास पहुंचे और उससे सत्संग की महिमा पूछने लगे। वह नवजात शिशु नारद जी की बात सुनकर मुस्कुराने लगा और कहने लगा कि," नारद जी जैसे चंदन को स्वयं अपनी सुगंध और अमृत के बारे में पता नहीं होता ऐसे ही आप अपनी महिमा नहीं जानते।"

 वास्तव में आपके दर्शन मात्र से ही मैं गिरगिट की योनि से मुक्त हो गया और उसके पश्चात मैं तोते की उस योनि से भी मुक्त हो गया। आपका दर्शन पाने के कारण ही मेरी सारी अधम योनियां कट गई और मैं सीधा में मानव योनि में पहुंच गया और एक राजकुमार के रूप में जन्म लिया यह सत्संग और संत के संग का ही प्रभाव है।

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