SHRI KRISHNA AUR DURVASA RISHI

दुर्वासा ऋषि ने कैसे ली श्रीकृष्ण की परीक्षा ?

 श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। उन्होंने अपने अवतार काल में बहुत सी लीला की। दुर्वासा ऋषि अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। किसी से उनकी सेवा में कोई त्रुटी हो जाती तो वह झट से शाप दे देते थे। पढ़ें एक प्रसंग जब बार दुर्वासा ऋषि ने ली श्रीकृष्ण की परीक्षा।



एक बार दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ द्वारिका नगरी के पास से गुजर रहे थे। जब वह जंगल में रुक कर विश्राम कर रहे थे तो उन्होंने अपने शिष्य को श्री कृष्ण को बुलाने के लिए भेजा। श्री कृष्ण अपने गुरु दुर्वासा ऋषि का संदेश पाते हैं दौड़े चले आए और उनको दंडवत प्रणाम किया।

 श्री कृष्ण, दुर्वासा ऋषि से उनकी नगरी द्वारिकापुरी चलने के लिए अनुरोध करने लगे। दुर्वासा ऋषि ने श्री कृष्ण के सामने एक शर्त रखी कि," मैं उस रथ पर जाऊंगा जिसे घोड़े नहीं खींचे थे अपितु एक तरफ तुम और दूसरी तरफ से तुम्हारी पटरानी रुकमणी खींचेंगी। दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर श्री कृष्ण दौड़े-दौड़े रुकमणी के समक्ष गए। श्री कृष्ण ने रूक्मिणी को दुर्वासा ऋषि की शर्त बताई। रुक्मिणी सहर्ष श्री कृष्ण के साथ दुर्वासा ऋषि को लेने के लिए चल पड़ी । दोनों ने जाकर गुरुदेव से रथ पर बैठने का अनुरोध किया।

 दुर्वासा ऋषि ने अपने साथ-साथ अपने शिष्यों को भी रथ पर बैठा लिया। श्री कृष्ण जानते थे कि दुर्वासा ऋषि उनकी परीक्षा ले रहे हैं। रुक्मणी और श्री कृष्ण ने रथ को खींचना शुरू किया और खींचते-खींचते द्वारिकापुरी पहुंच गए। श्री कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि को अपने सिंहासन पर बैठाया और उनका उचित आदर सम्मान किया। उनके लिए छप्पन भोग तैयार करवाई।

 लेकिन दुर्वासा ऋषि ने सभी भोग खाने से इंकार का त्याग किया और श्री कृष्ण से  खीर बनाने के लिए कहा। श्री कृष्ण ने उनकी आज्ञा मानकर खीर बनवाई ‌‌। खीर तैयार होने के बाद श्री कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि से खीर का भोग लगाने के लिए विनती की। उन्होंने थोड़ी सी खीर का भोग लगा लिया और श्रीकृष्ण को खाने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने थोड़ी सी खीर को चख लिया। 

उसके पश्चात दुर्वासा ऋषि ने श्री कृष्ण खीर को अपने शरीर पर लगाने की आज्ञा दी । श्री कृष्ण ने उनकी आज्ञा को स्वीकार कर खीर को अपने पूरे शरीर पर लगा लिया। लेकिन जब खीर पैरों पर लगाने की बारी आई तो श्री कृष्ण ने कहा कि गुरुदेव यह खीर आपका भोग प्रसाद है ,इसको मैं अपने पैरों पर कैसे लगा सकता हूं। उसकी बात सुनकर दुर्वासा ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और श्रीकृष्ण को आशीर्वाद दिया।

दुर्वासा ऋषि ने कहा कि," मैं तुम्हारी सेवा भाव से बहुत खुश हूं और तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए। इस खीर को पूरे शरीर पर लगाने के कारण तुम्हारा शरीर व्रज के समान हो गया है।"

 इस तरह श्री कृष्ण दुर्वासा ऋषि द्वारा ली गई परीक्षा में सफल हुए और उन्होंने उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इतिहास साक्षी है कि महाभारत युद्ध के दौरान कोई भी शस्त्र श्री कृष्ण का बाल भी बांका नहीं कर पाया था।

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