SOMVAR VRAT KATHA AARTI IN HINDI
सोमवार व्रत कथा आरती सहित
भगवान शिव त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से एक है। भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है। भगवान शिव अपने भक्तों की पूजा अर्चना से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इसलिए सोमवार व्रत का भी बहुत महत्व है सोमवार के दिन भगवान शिव का व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। सावन मास भगवान शिव का प्रिय महीना है। सावन मास में भी सोमवार व्रत करने पर विशेष फलदाई माना गया है। सोमवार व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा और आरती जरूर पढ़नी चाहिए।
सोमवार व्रत कथा
एक बार एक धनवान साहूकार था। उसे किसी प्रकार की धन वैभव की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उसे एक ही चिंता थी क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी। वह भगवान शिव का भक्त था। वह साहूकार प्रत्येक सोमवार पुत्र की कामना से भगवान शिव का व्रत और पूजन किया करता था और शिव मंदिर में दीपक जलाया करता था।
एक बार माता पार्वती भगवान शिव से कहने लगी कि," हे प्रभु! यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है। आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। भगवान शिव कहने लगे कि," पार्वती इस संसार में जो जैसा कर्म करता है वैसा ही फल भोक्ता है।" इसके भाग्य में कोई भी संतान नहीं है।
माता पार्वती के बार-बार कहने लगी कि," प्रभु आप अपने भक्तों के कष्ट दूर करते हैं इसलिए वह आपकी पूजा अर्चना करते हैं। इसलिए आपको इसके भी दुःख को दूर करें अन्यथा भक्त आपके व्रत और पूजन क्यों करेंगे?"
माता पार्वती का ऐसा आग्रह देखकर भगवान शिव भोले कहने लगे कि," पार्वती इसके कोई भी संतान नहीं है इसलिए यह दुःखी रहता है। मैं इसको पुत्र प्राप्ति का वर देता हूं लेकिन उसकी आयु केवल 12 वर्ष ही होगी उसके पश्चात व मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।"
भगवान शिव और मां पार्वती की बातें साहूकार भी सुन रहा था। यह सुनकर साहूकार ना तो खुश हुआ और ना ही दुःखी हुआ। वह पहले जैसे भगवान शिव का पूजन करता रहा।
साहूकार की पत्नी ने दसवीं महीने में एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। उसके घर पर बहुत खुशियां मनाई गई। लेकिन साहूकार ने पुत्र की आयु 12 वर्ष जानकर अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और ना ही यह भेद किसी पर प्रकट कर पाया ।
जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उसकी माता कहने लगे कि अब हमें इसका विवाह करना चाहिए। साहूकार कहने लगा कि," मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा, मैं इसे काशी पढ़ने भेजूंगा।" साहूकार ने साले अर्थात बालक बालक मामा को बुलाकर कहा कि इस बालक को पढ़ने के लिए वाराणसी ले जाओ और रास्ते में जहां भी रहो वहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जाना।
वे मामा दोनों मामा-भांजा रास्ते में यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा थे। एक बार एक नगर में वहां के राजा की कन्या का विवाह था। दूसरे राजा का पुत्र जो बरात लेकर आया था एक आंख से काना था। राजा को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं मेरे पुत्र को देखकर विवाह में कोई अड़चन ना आ जाए ।
इसलिए उसने जब अतिसुंदर सेठ के लड़के को देखा तो कहने लगा कि आप ऐसा करें कि दरवाजे के समय का काम करा दो उसके बदले में हम आपको पैसे दे देंगे। लड़का और उसका मामा दोनों मान गए। वह कार्य अच्छे से निपट गया तो वर के पिता ने सोचा कि विवाह कार्य भी इसी सुंदर लड़के से करवा लेता हूं। उसके लिए उसने लड़के और उसके मामा को मना लिया और राजकुमारी का विवाह साहूकार के लड़के के साथ हो गया।
विवाह के बाद जाने से पहले लड़के ने राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिख दिया कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं। लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर ऐसा लिखा पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया और कहने लगी कि इसका विवाह मेरे साथ नहीं हुआ। मेरा पति तो काशी जी पढ़ने गया है । राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई।
उधर मामा और भांजा काशी जी पहुंचे और लड़का पढ़ना शुरू किया। एक दिन जब उन्होंने यज्ञ रच रखा था तब लड़का कहने लगा कि,"मामा जी आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है।"
मामा ने कहा अंदर जाकर सो जा ।थोड़ी देर में लड़के के प्राण निकल गए। मामा ने जब अंदर जाकर देखा तो लड़के के प्राण पखेरू हो चुके थे।
उसने यज्ञ का कार्य समाप्त कर रोना पीटना आरंभ किया। उसी समय संयोग वश भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। माता पार्वती भगवान शिव से कहने लगे कि प्रभु कोई दुखिया रो रहे है, आपको उनके कष्टों को दूर करना चाहिए।
जब वह दोनों वहां गए तो भगवान शिव कहने लगे यह तो उसी साहूकार का लड़का है जिसको मैंने 12 वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया था। माता पार्वती आग्रह कहने लगी कि भगवन् इस लड़के को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता पर तड़प तड़प कर मर जाएंगे।
भगवान शिव कहने लगे कि पार्वती इसकी जितनी आयु थी वह यह बालक भोग चुका है। लेकिन माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान शिव ने उसे दीर्घायु का आशीर्वाद दिया और जिसकी कृपा से लड़के को जीवनदान मिला। जिसके पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती वहां से चले गए।
अब लड़का और उसका मामा फिर से ब्राह्मणों को दान कराते हुए घर की ओर जा रहे थे ।रास्ते में उसी नगर में आए जहां लड़के का विवाह हुआ था। वहां पर उन्होंने यज्ञ किया तो लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर बहुत आदर सत्कार किया। बहुत से दहेज और दास दासियों सहित अपनी लड़की और जमाई को विदा किया ।
जब वह अपने शहर के निकट आए तो लड़के का मामा कहने लगा कि," मैं पहले तुम्हारे घर पर खबर कर आता हूं।"लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता ने प्रण कर रखा था कि अगर हमारा पुत्र सकुशल वापस नहीं आया तो हम अपने प्राण त्याग देंगे।
लड़के के मामा ने कहा कि आपका पुत्र आ गया है तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब मामा ने शपथ लेकर कहा कि," आपका पुत्र अपनी स्त्री और बहुत से धन के साथ आया है तो साहूकार और उसकी पत्नी ने अपने पुत्र और पुत्रवधू का स्वागत किया। "
इस प्रकार जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा कथा को पढ़ता है। उसकी मनोकामनाएं भगवान शिव की कृपा से पूर्ण करते हैं।
कर्पूरगौरं करूणावतारमं संसारसारं मंत्र लिरिक्स अर्थ सहित
।।आरती शिव जी की।।
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा ।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज ते सोहे।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा ।।
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहे भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा ।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा।।
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जग-कर्ता जग-भर्ता जग जन पालन कर्ता ।।
ऊँ जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनों एका ।।
ॐ जय शिव ओंकारा।
लक्ष्मी और सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा।।
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ऊँ जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा ।।
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