HANUMAN JI KE BHAKT KI KATHA
हनुमान जी के भक्त की कथा
जयपुर में एक बार एक संत जी थे, जोकि हनुमान जी के भक्त थे। हनुमान मंदिर में मेला लगा तो एक दिन वहां दर्शन के लिए गए। मेले में वह एक हलवाई की दुकान पर गए और उसे चवन्नी देकर पाव सेर पेड़े मांगे। हलवाई कहने लगा कि," बाबा जी पांव सेर पेड़े चवन्नी के नहीं बल्कि बारह आन्ने के मिलेंगे।"
साधु बाबा कहने लगे कि, मेरे पास तो चवन्नी ही है हो सके तो मुझे इतने पैसे में ही पाव सेर पेड़े दे दो।
हलवाई मजाक उड़ाने लगा कि लगता है आप मुफ्त में ही पेड़े खाना चाहते हो। अगर जेब में पैसे नहीं हैं तो ऐसे शौक क्यों पालते हो। साधु बाबा ने उसे बहुत बार मनाया लेकिन हलवाई नहीं माना और उसने गुस्से में चवन्नी दुकान के पास बने एक गड्ढे में फैंक दी।
साधु बाबा विनम्रता से बोले कि अगर पेड़े नहीं देने तो कोई बात नहीं लेकिन मेरे पैसे तो मुझे लौटा दो। हलवाई तुनक कर बोला कि," उस गड्ढे में पड़े हैं आपके पैसे, जाओ जाकर उसमें से निकल लो।"
उसकी अकड़ देखकर सुनकर साधु बाबा भी अड़ गए। वह कहने लगे कि," मेरा भी प्रण है कि जब तक तुम स्वयं मेरे पैसे गड्ढे से नहीं निकलकर दोगे मैं इस स्थान पर ही बैठा रहूंगा और उसकी दूकान के सामने एक चबुतरे पर पालथी मार कर बैठ गए ।" लेकिन हलवाई पर उनके प्रण का कोई प्रभाव नहीं हुआ था ।
शाम के समय हलवाई जब अपने पैसे गिन रहा था तो उसी समय वहां पर चार बंदर आ धमके। एक बंदर उसके पैसों की थैली लेकर पेड़ पर चढ़ गया, एक ने पेड़े के थाल पर अधिकार जमा लिया, एक बंदर साधु बाबा के पास बैठ गया और चौथे बंदर ने उसकी दुकान पर उद्धम मचा दिया और लगा सामान इधर उधर पटकने।
हलवाई ने बहुत यत्न किए कि बंदर किसी तरह उसके पैसों की थैली लौटा दे लेकिन उसके सारे प्रयास असफल रहे। किसी ने कहा कि तुम ने साधु बाबा का अपमान किया था जाओ जाकर उनसे माफी मांगो। मरता क्या ना करता। जाकर साधु बाबा के चरणों में गिर गया और कहने लगा कि बाबा माफ कर दो। साधु संत स्वभाव से दयालु होते हैं।
साधु बाबा कहने लगे कि," माफी ही मांगनी है तो मुझ से नहीं बल्कि भगवान से जाकर माफी मांग जिन्होंने इन बंदरों को भेजा है।" हलवाई दुकान में से बचें हुए पेड़े लेकर हनुमान मंदिर में गया और जाकर उनसे प्रार्थना करने लगा कि हनुमान जी मेरी इस संकट से रक्षा करें। वापस आकर साधु बाबा से क्षमा मांगी और उनको पाव सेर पेड़े दे दिये।
साधु बाबा कहने लगे कि मेरी चवन्नी कहां है? हलवाई कहने लगा कि वो तो गड्ढे में गिर गई। बाबा कहने लगे कि," तू मुझे कहता था कि गड्ढे में से चवन्नी ढूंढ लो । अब तू जा और गड्ढे में से पहले चवन्नी ढूंढ कर ला। हलवाई गया और गड्ढे से चवन्नी ढूंढ कर उसे धोया और साधु बाबा को देकर उनसे क्षमा मांगी।
अब साधु बाबा प्रण पूरा हो गया तो वह हनुमान जी से कहने लगे कि, प्रभु यह नादान बालक है इसको क्षमा कर दो। उनके इतना कहते हैं पेड़ पर चढ़े बंदर ने पैसों की पोटली जमीन पर फैंक दी और वहां से चला गया। देखते ही देखते बाकी के बंदर भी यकायक गायब हो गए। इस तरह हनुमान जी के भक्त को लगा कि उसके इष्ट देव ने उनके प्रण को पूरा करने के लिए यह सारा प्रयोजन किया था।
जय श्री राम।
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