ISHWAR KI AKHAND BHAKTI KISE MILTI HAI
ईश्वर की अखंड भक्ति किसे प्राप्त होती है ?
एक बार अयोध्या में एक संत जी थे। वह श्री राम के परम भक्त थे। उनके राम कथा सुनना बहुत पसंद था। जब भी मौका मिलता वह किसी ना किसी से राम कथा श्रवण कर लेते थे। एक बार एक पंडित जी रास्ते से गुजर रहे थे। संत जी पंडित जी से कहने लगे कि," मुझे रामायण कथा सुना दो।"
पंडित जी ने संत जी को राम कथा सुनाने के लिए हामी भर दी। संत जी कहने लगे कि, पंडित जी मेरे पास आपको देने के लिए दक्षिणा नहीं है। पंडित जी कहने लगे कि, कोई बात नहीं आप मुझे अपना आशीर्वाद दे देना।
पंडित जी ने लगातार कई दिनों तक संत जी को रामायण कथा सुनाई। संत जी कभी कथा सुनकर भाव विभोर हो जाते, कभी कोई प्रसंग सुनकर रोने, नृत्य करने लगते। उन्हें पंडित जी से रामायण की कथा सुनकर बहुत आंनद आया। जिस दिन पंडित जी ने रामायण कथा संपूर्ण की उस दिन संत जी कहने लगे कि," मुझे आपसे कथा श्रवण का बहुत आंनद आया। आपको जो चाहिए बता दो। राम जी की कृपा से आपको प्राप्त हो जाएगा।" पंडित जी कहने लगे कि," मैं बहुत गरीब हूं इसलिए मैं चाहता हूं कि मेरी गरीबी दूर हो जाएं।"
संत ने राम जी से प्रार्थना की प्रभु इस ब्रह्माण को धन, संपत्ति प्रदान करें। संत जी ने पूछा कुछ और चाहिए। पंडित जी कहने लगे कि," मेरे कोई संतान नहीं है। इसलिए मुझे सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति हो।" संत जी ने फिर ईश्वर से प्रार्थना कर कि और कहने लगे कि तुम को ज्ञानवान पुत्र की प्राप्ति होगी।
संत जी ने पुनः पंडित जी से पूछा और कोई इच्छा हो तो मांग लो। पंडित जी कहने लगे कि," मुझे ईश्वर की अखंड भक्ति प्राप्त हो।"
संत जी कहने लगे कि," पंडित जी वह आपको प्राप्त नहीं हो सकती।" पंडित जी आश्चर्य से संत जी की ओर देखने लगे। संत जी मुस्कुराएं और कहने लगे कि, " तुम ने सबसे पहली प्राथमिकता धन, वैभव, संपत्ति को दी। दूसरी ज्ञानवान पुत्र प्राप्ति को दी। और तीसरे स्थान पर तुम ने भक्ति की मांग की।"
ईश्वर की अखंड भक्ति उसी को मिलती है जो सब कुछ छोड़ कर उसको ही मांगते हैं। भगवान राम ने केवट को धन, ध्रुव पद, इन्द्र पद देने की बात कही थी लेकिन उसने केवल राम जी की भक्ति ही मांगी थी। हनुमान जी को भी धन, वैभव, रिद्धि सिद्धि, अमरत्व से कोई मोह नहीं था उन्होंने केवल सीताराम जी की अखंड भक्ति मांगी थी। भक्त ध्रुव और प्रह्लाद ने भी केवल हरि भक्ति मांगी थी उन्हें किसी और पद का कोई मोह नहीं था। इसलिए ईश्वर की अखंड भक्ति उसी को मिलती हैं जो केवल सब मोह माया और सहारे छोड़ कर केवल उसी को मांगते हैं।
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