JIVAN KI DOOR ISHWAR KO SAUMP DE
अपने जीवन की डोर ईश्वर को सौंप दें।
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैं उसे राजकोष में जमा करवा दूंगा। उसका उत्तर सुनकर गुरु ने उसे वापस भेज दिया और शिष्यों से कहने लगे कि," यह व्यक्ति मूर्ख है।"
कुछ समय के पश्चात एक और राहगीर वहां से गुजरा तो गुरु जी उसे भी अपनी कुटिया में ले गए और उससे वहीं सवाल दोहराया कि," अगर तुम को सोने के सिक्के से भरी थैली मिले तो तुम क्या करोगे?" क्या राजकोष में लौटा दोगे ? या उसके मालिक को ढूंढ कर उसे लौटा दोगे। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया मैं क्या मुर्ख हूं जो हाथ आई लक्ष्मी को जाने दूंगा। मैं उसे अपने पास रख लूंगा। गुरु जी ने उसे भी वापस भेज दिया और कहने लगे कि," यह व्यक्ति धूर्त है।"
शिष्य हैरान थे कि गुरु जी को वह व्यक्ति मूर्ख लगा जिसने कहा कि मैं सिक्के राजकोष में जमा करवा दूंगा और दूसरा व्यक्ति धूर्त लगा जिसने कहा था कि मैं सिक्के स्वयं रख लूंगा और इस प्रश्न का क्या सही उत्तर हो सकता हैं?
कुछ समय बाद तीसरा राहगीर वहां से गुजरा तो गुरु जी उसे फिर से वही सवाल किया। वह व्यक्ति विनम्रता से बोला कि गुरू जी इस प्रश्न का उत्तर मैं अभी कैसे दे सकता हूं । क्योंकि इस पापी मन का क्या भरोसा उस समय ,उस समय परिस्थिति के हिसाब से क्या निर्णय ले ले। अगर ईश्वर ने मेरी सद्बुद्धि बनाई रखी तो वापस कर दूंगा।
गुरु जी अपने शिष्यों से कहने लगे कि यह व्यक्ति सच्चा है क्योंकि इस ने अपनी डोरी ईश्वर को सौंप दी है। इसलिए अपने जीवन की डोर ईश्वर को सौंप दें और जो भी कर्म करें ऐसे करें कि ईश्वर आपको देख रहा है।
जिंदगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के,
महलों मे राखे चाहे झोपड़ी में वास दे।
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