MAA SARASWATI AUR KALIDAS KI STORY

बसंत पंचमी हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। बसंत पंचमी पर पढ़ें मां सरस्वती और कालीदास की प्रेरणादायक कहानी 



कालिदास जी मां सरस्वती के परम भक्त थे ।एक बार कालीदास जी को अपने ज्ञान का बहुत अहंकार हो गया उन्हें लगता था कि उन्हें शास्त्रों का पूरा ज्ञान हो गया है। उनको कोई भी नहीं हरा सकता। उन्होंने सारा ज्ञान अर्जित कर लिया है। वह सबसे बड़े विद्वान हैं। उनके इस अहंकार को दूर करने के लिए मां सरस्वती ने एक लीला रची।

 एक बार कालिदास जी शास्त्रार्थ के लिए पड़ोसी राज्य के लिए जा रहे थे। गर्मी के दिन थे रास्ते में प्यास के कारण उनका हाल बुरा हो गया था। कुछ समय के पश्चात उनको एक कुआँ दिखाई दिया जिस एक लड़की पानी भर रही थी।

 कालिदास जी ने उससे पानी मांगा। लड़की ने उनसे उनका परिचय पूछा।कालिदास जी ने इसे अपना अपमान समझा कि मैं इतना प्रसिद्ध हूं मुझे कौन नहीं जानता? वह कहने लगे कि,"  तुम अभी बहुत छोटी हो घर में किसी बड़े को भेजो वह मुझे जरूर जानते होंगे।

लेकिन लड़की हट करके उनका नाम पूछती रही। 

कालिदास जी कहने लगे कि,"मै बहुत बड़ा विद्वान हूं। मेरी प्रसिद्धि दूर दूर तक है।

 लड़की पर कालिदास जी की अहंकार भरी बातों का कोई प्रभाव ना हुआ और वह कहने लगी कि," आप बताओ कि सबसे बलवान कौन है ? कालिदास ने जवाब देने में असमर्थता जताई।

 लड़की कहने लगी कि," सबसे बलवान तो धरती पर भूख और प्यास है। भूख- प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े बड़े बलवानों को झुकाने दे। आप प्यास से तड़प रहे हैं।"

 छोटी सी लड़की के दिए गए तर्क का कालीदास जी के पास कोई उत्तर नहीं था। कालीदास जी ने पुनः उससे पानी मांगा तो लड़की कहने लगी कि," आपको पहले अपना परिचय तो देना ही पड़ेगा।"

इस बार कालीदास जी कहने लगे कि, मैं पथिक हूँ।" 

लड़की ने उत्तर दिया कि," संसार में दो ही पथिक है आप उनके नाम बताएं ।

कालिदास ने असमर्थता जताई ।

लड़की बोली कि," पथिक वो होता है जो बिना रूके, बिना थके अपनी मंजिल तक पहुँचता है । ऐसे पथिक संसार में केवल दो ही है एक सूर्य और दूसरे चंद्रमा जो बिना थके चलते रहते हैं, लेकिन आप तो अभी से थक गए हैं।"

इतना कह कर लड़की घर के अंदर चली गई और एक वृद्ध महिला घर से बाहर आई और वह कुएँ पर गई।

 कालिदास जी ने उससे पानी मांगा तो उन्होंने भी कालिदास जी से उनका परिचय पूछा। 

कालिदास जी ने कहा कि," मैं मेहमान हूँ। "

वृद्ध महिला कहने लगी कि," मेहमान तो संसार में दो ही है। एक धन और दूसरा यौवन। वह कब चले जाए पता नहीं चलता।‌‌ सच- सच बताओ कि तुम कौन हो ?"

कालिदास जी की झुझलाहट अब बढ़ने लगी थी। उनकी सहनशीलता समाप्त हो रही थी लेकिन उन्होंने वृद्ध महिला से कहा कि मैं सहनशील हूं । 

वृद्ध महिला कहने लगी कि,"सहनशील तो संसार में दो ही है, एक पृथ्वी और दूसरे वृक्ष। पृथ्वी पापी और पुण्यात्मा दोनों का भार सहन करती है। पृथ्वी का सीना चीर कर उसमें बीज बोया जाता है लेकिन वह अन्न के भंडार भर देती है और वृक्ष, उनको पत्थर मारो तो वह मीठे फल देते हैं।" तुम अपना परिचय गलत दे रहे हो, सत्य बताओ तुम कौन हो? 

कालिदास जी का प्यास के मारे बुरा हाल था। वह जी कहने लगे कि," मैं हठी हूँ।"

महिला ने उत्तर दिया कि,"हठी तो संसार में दो ही है, एक नख और दूसरे केश इनको जितना भी काटों फिर बढ़ जाते हैं।" अपना सही परिचय दो फिर पानी पिलाऊंगी।

इस बार कालिदास जी कहने लगे कि," मैं मूर्ख हूँ।"

महिला ने कहा कि,"मूर्ख तो संसार में दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, दूसरे दरबारी जो राजा की दया दृष्टि पाने के लिए उसकी गलत बात की भी सराहना करते हैं।" कालिदास जी के लिए सभी उत्तर अकाट्य थे।  

कालिदास जी अब कुछ बोलने की हालत में नहीं थे। वह वृद्ध महिला के चरणों में गिड़गिड़ाने लगे और उनसे पानी मांगा तो वृद्ध महिला कहने लगी कि, पुत्र उठो। 

जब कालीदास जी ने उठकर ऊपर देखा तो वहां मां सरस्वती खड़ी थी। मां सरस्वती कहने लगी कि, पुत्र तुम को अपने ज्ञान और मान प्रतिष्ठा पर बहुत घमंड हो गया था। शिक्षा से ज्ञान प्राप्त होता है ना कि अहंकार। तुम्हारे ज्ञान चक्षु खोलने के लिए मुझे यह लीला रचनी पड़ी।" अब कालिदास जी को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था उन्होंने मां सरस्वती से क्षमा मांगी। मां सरस्वती ने उन्हें पानी पिलाया और आशीर्वाद दिया।

शिक्षा - अपने ज्ञान या फिर किसी उपलब्धी पर अहंकार नहीं करना चाहिए। 

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