MAN CHANGA TO KATHOTI MEIN GANGA KAHANI
"मन चंगा तो कठौती में गंगा" रविदास जी के जीवन से जुड़ी कहानी
संत रविदास जी अपने कर्म को ही पूजा मानते थे। वह अपनी जीविका चलाने के लिए जुते बनाने का काम करते थे। एक बार रविदास जी जूते बनाने में तल्लीन थे, तभी उनके पास एक पंडित जी जूता ठीक करवाने के लिए आएं। रविदास जी ने पूछा कि,"आप कहां जा रहे हैं?"
पंडित जी कहने लगे कि," मैं गंगा स्नान के लिए जा रहा हूंँ।" रविदास जी ने यह सुनकर उनको को एक कौड़ी दी और कहा कि मेरी ओर से मां गंगा को अर्पण कर देना।
पंडित जी को गंगा स्नान के पश्चात रविदास जी द्वारा दी गई कौड़ी का स्मरण हो आया। पंडित जी कहने लगा," हे! मां गंगा रविदास जी द्वारा दी हुई इस मुद्रा को स्वीकार करो। उसी समय गंगा जी से एक हाथ बाहर निकाल कर आया और आवाज़ आई कि मेरे भक्त रविदास को मेरी ओर से यह कंगन भेंट कर देना। पंडित जी इस यह सब देखकर बहुत चकित थे क्योंकि उन्होंने ऐसा नज़रा ना कभी देखा और ना कभी सुना था।
पंडित जी जब गंगा स्नान के पश्चात लौट रहा थे तो उसके मन में विचार आया। वह सोचने लगे कि," रविदास जी को कैसे पता चलेगा कि गंगा जी ने उनके लिए कंगन भेजा है। इसलिए मैं यह कंगन राजा को भेंट कर देता हूं। उसके बदले में राजा से मुझे बहुमुल्य उपहार प्राप्त हो जाएंगे।ऐसा विचार कर उन्होंने कंगन राजा को भेंट कर दिया ।
राजा ने वह कंगन अपनी रानी को दे दिया। रानी को वह कंगन बहुत पसंद आया और रानी उसके जैसा दूसरा कंगन लेने का हठ करने लगी। राजा ने अपने राज्य के सुनार को बुलाकर वैसा ही कंगन बनाने के लिए कहा। सुनार कहने लगा कि,"महाराज इस कंगन में जो बहुमूल्य रत्न जड़ित है वैसे रत्न हमारे राज कोष में नहीं है। इसलिए हमारे लिए इसके जैसा दूसरा कंगन बनाना संभव नहीं है।
यह सुनकर राजा ने पंडित को बुलाकर आदेश दिया कि उसके जैसा दूसरा कंगन ले कर आओ अन्यथा उसे दंड का पात्र दंड बनना पड़ेगा। पंडित जी अब दुविधा में फंस गए कि अब दूसरा कंगन कहाँ से लाऊं। पंडित जी ने राजा को सारी बात बता दी कि कैसे रविदास जी की थी हुई मुद्रा मां गंगा को अर्पण करने पर उन्होंने रविदास जी को देने के लिए यह कंगन दिया था। मैंने वही कंगन आप को भेंट कर दिया।
पंडित जी, राजा के साथ रविदास जी के पास गया। उन्हें सारी व्यथा सुना। रविदास जी कहने लगे कि," आप परेशान ना हो मैं तुम्हारे रक्षा के लिए मां गंगा से दूसरा कंगन भेंट करने की विनती करूंगा।" इतना कहते ही रविदास जी ने वह कटौती उठाई जिसमें वह चमड़ा गलाने के लिए पानी भरते थे ।रविदास जी ने मां गंगा का आह्वाहन किया और एक हाथ प्रकट हुआ और उन्हें एक कंगन प्राप्त हुआ। रविदास जी ने कंगन ब्राह्मण को दे दिया ब्राह्मण खुशी-खुशी राजा को भेंट करने दिया। तभी से यह कहावत प्रसिद्ध है मन चंगा तो कठौती में गंगा।
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