SHRI KRISHNA KE BHAKT SURDAS KI STORY IN HINDI

श्री कृष्ण के भक्त सूरदास की कथा 

सूरदास जी ने श्रीकृष्ण(Lord Krishna) के दर्शन कर मांगा था पुनः अंधे होने का वरदान

सूरदास जी सगुण भक्ति धारा के कवि (devotional poet) थे। जी श्री कृष्ण(lord Krishna) के परम भक्त थे। सूरदास जी भगवद भगवद् भक्ति में लीन रहकर श्री कृष्ण को समर्पित भक्ति पद लिखते थे। सूरदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने दिये थे उनको दर्शन। 

 एक बार सूरदास जी भजन कीर्तन करने के पश्चात अपनी कुटिया की ओर जा रहे थे। सूरदास जी अंधे होने के कारण अंदाजे से लाठी के सहारे अपने गंतव्य स्थान की ओर जा रहे थे तो उनको ठोकर लगी और वह कुएं में गिर गए। 

सूरदास जी ने वहां भी श्री कृष्ण के नाम का भजन कीर्तन करना जारी रखा। श्री कृष्ण उनकी भजन से रीझकर बालक का रूप धारण कर सूरदास जी के समीप आए और कहने लगे कि," बाबा आप मेरा हाथ पकड़ कर बाहर आ जाओ।"

सूरदास जी समझ गए कि इस सुनसान मार्ग में मेरे कन्हैया के सिवाय और कोई हो सकता है। मुझे इस कुएं से बाहर निकालने मेरे कृष्ण आ गए हैं। सूरदास जी बोले कि," मैं तो अंधा हूं मुझे आपका हाथ नहीं दिखेगा। आप ही मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकाल दो।" श्री कृष्ण ने सूरदास जी का हाथ पकड़ लिया और सूरदास जी बाहर आ गए। 

बाहर आते ही सूरदास जी ने श्री कृष्ण का हाथ पकड़ लिया। श्री कृष्ण कहने लगे कि बाबा मेरा हाथ छोड़ दो। सूरदास जी कहने लगे कि प्रभु आप मुझे बहुत मुश्किल से मिले हैं इसलिए मैं इतनी जल्दी आपका हाथ नहीं छोडूंगा। सूरदास जी कहने लगे कि 

हाथ छुड़ाये जात हो, निर्बल जानि के मोय।

हृदय से जब जाओ, तो सबल जानूँगा तोय।।

हाथ छुड़ाये जात हो, निर्बल जानि के मोय।

हृदय से जब जाओ, तो सबल जानूँगा तोय।।

सूरदास जी ने श्री कृष्ण का हाथ नहीं छोड़ा। तभी वहां राधा रानी प्रकट हुई। उनकी पायल की आवाज सुनकर सूरदास जी ने उनके चरण कमल पकड़ लिए। तभी उनकी पायल सूरदास जी के हाथों में आ गई। श्री राधाकृष्ण ने सूरदास जी की भक्ति से खुश होकर उनके नैत्रों की रोशनी प्रदान की। सूरदास जी ने अपने आराध्य श्री कृष्ण और राधा रानी के दर्शन निहाल हो गए। सूरदास जी दोनों के दर्शन कर भगवान से कहने लगे कि, प्रभु मेरी एक विनती है कि मुझे पुनः अंधा बना दो। 

मैंने अपने नैत्रों से आपके दर्शन कर लिए हैं इसलिए मैं अब इन आंखों से और किसी को नहीं देखता चाहता। श्री राधा कृष्ण ने उनकी विनती स्वीकार कर ली।

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