MATA CHINTPURNI MANDIR HIMACHAL PRADESH

 चिंतपूर्णी माता मंदिर हिमाचल प्रदेश 

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है क्योंकि जहां पर देवी देवताओं का वास है। चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना की तहसील अम्ब में स्थित है। माता चिंतपूर्णी धाम में भक्तों को आलौकिक आंनद की अनुभूति होती है। दूर दूर से मां के भक्त मां के दर्शनों के लिए मां के दरबार में पहुंच कर नतमस्तक होते हैं। माता के बहुत से भक्त हर अष्टमी को मां के दर्शनों के लिए आते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रों और सावन नवरात्रि में चिंतपूर्णी धाम में मेले का आयोजन किया जाता है।


माता को चिंतपूर्णी क्यों कहा जाता है 

चिंतपूर्णी धाम 51 शक्ति पीठों में से एक है। माता चिंतपूर्णी धाम के बारे में यह मान्यता है की किसी भक्त की जो चिंता होती है वह माता के दरबार आने पर दूर हो जाती है। इसलिए ही इस को चिंतपूर्णी धाम कहा जाता है। 

चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है

मां  चिंतपूर्णी धाम को छिन्नमस्तिका कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है बिना सिर वाली देवी। स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार असुरो को युद्ध मे हराने के पश्चात भी माता की दो योगनियो जया और विजया की रक्त की पिपासा ना शांत हुई तो माता ने अपना सिर काट कर उन योगनियों जया और विजया की रक्त की प्यास बुझाई।

भगत माई दास को दिए थे मां चिंतपूर्णी ने दर्शन 

माई दास नाम का माता का भगत दिन-रात उनकी भक्ति में लीन रहता। काम धंधा में उसका मन नहीं लगता था ।इस लिए उसके भाईयों ने उसको घर से निकाल दिया। एक दिन जब वह‌ जंगल के रास्ते ससुराल जा रहा था एक वट के पेड़ के नीचे विश्राम करने रुका। माता ने उसे स्वपन में यहां रह कर भक्ति करने का आदेश दिया। उसी समय उसकी नींद खुल गई। 

जब वह ससुराल से वापिस आया तो उसी पेड़ के नीचे माता का स्मरण कर के कहा अगर आप चाहती है की मैं यहां रहकर भक्ति करु तो मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दे। माता ने उसे प्रत्यक्ष दर्शन दे दिए, और कहा कि मैं चिरकाल से इस पेड़ के नीचे में पिंडी रुप में विराजमान हूं। यवनों के आक्रमणों के कारण लोगों ने मुझे भुला दिया है। तुम जहां रह कर मेरी सेवा करो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी।

माई दास कहने लगा कि मां इस घने जंगल में ना तो पीने के लिए जल है और न ही रहने के लिए सुरक्षित स्थान है। मां कहने लगी कि ,"तुम किसी भी स्थान पर शिला उखाड़ोगे तो तुम को वहां पर जल मिल जाएगा। उसी जल से मेरी पूजा करना।" जिस स्थान पर जल प्राप्त हुआ था वर्तमान में वहां तालाब है। 

आज भी उसी वट के वृक्ष के नीचे माता पिंडी रुप में विराजमान है। भक्त माई दास ने जहां से शिला हटा कर पानी निकाला था। वहां एक तालाब बना है। मंदिर में प्रवेश करते ही दाई ओर शिला दिखाई देती है यह वही शिला है। 

MATA CHINTPURNI HISTORY IN HINDI(चिंतपूर्णी मंदिर का इतिहास)

 चिंतपूर्णी धाम का संबंध माँ सती और भगवान शिव से है।   पौराणिक  कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया परंतु उसमे भगवान शिव और माता सती को नहीं बुलाया गया। माता सती बिना बुला  यज्ञ में चली गया गई। उसके सामने भगवान शिव का अपमान किया गया, जिसे वह सहन ना कर पाई और यज्ञ की अग्नि में कूद गई। भगवान शिव को यह बात पता चली तो वह सहन ना कर पाए।


माता सती के शरीर को यज्ञ कुंड से निकाल कर तांडव कर ने लगे। उस से सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गई। ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्कर से 51 भाग में बांट दिया। यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वहां वहां शक्ति पीठ बन गई। यहां पर माता सती के चरण गिरे थे।

ऐसा माना जाता है कि चिंतपूर्णी धाम की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते है। पूर्व मे महाकलेक्ष्वर धाम ,पश्चिम में नारायण महादेव ,उत्तर में  मुचकुंद महादेव , दक्षिण में शिव बाड़ी है।

भगवान शिव और मां पार्वती विवाह कथा

FACTS ABOUT CHINTPURNI MANDIR

चिंतपूर्णी मंदिर बरगद‌ के पेड़ के नीचे स्थित है। मंदिर के चारों ओर सोने का आवरण चढ़ा हुआ है। 

माता जहां पिण्डी रूप में विराजमान हैं। भक्त माता को सूजी के हलवा, बर्फ़ी, नारियल का भोग लगाते हैं और माता को सुहाग का सामान और चुनरी चढ़ाई जाती है। 

ऐसी मान्यता है कि मां चिंतपूर्णी का प्रसाद अन्य देवियों के मंदिर में नहीं लेकर जाया जाता। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 

चिंतपूर्णी मंदिर में स्थित बरगद के वृक्ष पर भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए मौली बांधते हैं। 

मंदिर के पश्चिम में बड़‌ के पेड़ के नीचे गणेश जी और भौरों जी के दर्शन होते हैं। 

मौसम साफ होने पर वहां धौलाधार पर्वत श्रेणी दिखाई देती है। 

चिंतपूर्णी मंदिर की सीढ़ियों से उतरते समय उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंडित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है।

FESTIVAL CELEBRATED IN CHINTPURNI MANDIR (चिंतपूर्णी धाम के मुख्य पर्व)


वैसे तो भक्त पूरा वर्ष मां चिंतपूर्णी के दर्शन के लिए आते हैं लेकिन नवरात्रि में यहां विशेष मेले का आयोजन किया जाता है जिससे माता का मेला भी कहा जाता है। इस मेले में भक्त दूर दूर से माता के दर्शन करने आते हैं और श्रद्धा से मां के आगे नतमस्तक होते हैं। चिंतपूर्णी धाम में तीन बार मेला आयोजित किया जाता है।

चैत्र नवरात्रि मेला- चैत्र मास की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक चैत्र नवरात्रि मेला लगता है।

सावन‌ नवरात्रि मेला-  सावन मास में सावन मेला आयोजित किया जाता है।

शारदीय नवरात्रि मेला- अश्विनी मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से मेला आयोजित किया जाता है।

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