DHYANU BHAGAT KI KATHA
ध्यानु भक्त मां ज्वाला और अकबर की कथा (pauranik katha)
ध्यानु भक्त नादौन गांव में रहते थे। अकबर बादशाह के शासन काल के दौरान एक बार वह एक हज़ार के लगभग यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहे थे।
इतने ज्यादा यात्रियों को एक साथ जाते हुए देखकर मुगल सैनिकों ने उन्हें रोक लिया और और उनसे पूछा कि तुम इतने ज्यादा लोगों के साथ कहां जा रहे थे?
ध्यानु भक्त कहने लगा कि," मैं और यह सभी श्रद्धालु ज्वाला माता के दर्शन करने जा रहे थे।"
सैनिकों ने पूछा कि," ज्वाला माता कौन है और उनके दर्शन करने का क्या फल है?" ध्यानु भक्त कहने लगा कि," ज्वाला माता इस सृष्टि की पालन हार है और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। हम सभी उनके दर्शन के लिए जा रहे हैं। उनकी बहुत महिमा है। उनके दरबार में बिना तेल और बाती के जोत जलती रहती है।
ध्यानु भक्त की बातें सुनकर सैनिकों ने उनको बादशाह अकबर के सामने पेश किया। अकबर ने भी ध्यानु भक्त से देवी के बारे में पूछा तो ध्यानु भक्त ने मां ज्वाला देवी की सारी महिमा उनको बता दी।
अकबर बादशाह कहने लगा कि,"तुम्हारी माता सब की मनोकामनाएं पूर्ण करती है और शक्तिशाली है उसका विश्वास मैं कैसे करूं? ऐसा करो तुम कोई चमत्कार करके दिखाओ?
ध्यानु भक्त कहने लगे कि," मैं तो माता का एक तुच्छ भक्त हूं मैं चमत्कार नहीं कर सकता।"
बादशाह अकबर कहने लगा कि,"प्रमाण तो तुम को देना पड़ेगा। अकबर ने उसके घोड़े की गर्दन काट दी और कहा कि अपनी माता से कहना कि उसे पुनः जिंदा कर दे।"
ध्यानु भक्त कहने लगे कि, "आप ऐसा करें कि मेरे घोड़े का घड़ और उसका सिर दोनों सुरक्षित रख दें । मैं माता के दरबार पहुंच कर उनसे अपने घोड़े को पुनः जीवित करने की विनती करूंगा।" अकबर ने ध्यानु भक्त की बात मान ली।
ध्यानु भक्त अन्य श्रद्धालुओं के साथ माता के दरबार में पहुंचे और वहां पर मां की पूजा की और रात्रि में जागरण किया। प्रातः आरती के पश्चात ध्यानु भक्त माता से प्रार्थना करने लगे कि," माता अकबर बादशाह मेरी आपके प्रति भक्ति की परीक्षा ले रहा है। मां मेरे घोड़े को पुनः जीवित कर दो। मां अगर आपने मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं की तो मैं अपना शिश काटकर आपके चरणों में भेंट कर दूंगा।"
ध्यानु भक्त को माता से कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने तलवार से अपना शिश काटकर माता को भेंट कर दिया। उसी क्षण साक्षात ज्वाला माता प्रकट हुई और ध्यानु भक्त का सिर घड़ से जुड़ गया और वह पुनः जीवित हो उठे।
ज्वाला माता कहने लगी कि," जा जाकर देख ले तेरे घोड़े का सिर पुनः धड़ से जुड़ गया है और तुम मुझ से जो चाहे वरदान मांग सकते हो।"
ध्यानु भक्त कहने लगे कि," मां आप अपने भक्तों की इतनी कठिन परीक्षा ना लेना। मां कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे भक्त भेंट चढ़ा कर मनोकामना पूर्ति कर सके क्योंकि संसारिक मनुष्य शीश काटकर भेंट नहीं चढ़ा सकते।"
माता कहने लगी कि," मैं शुद्ध हृदय से की गई प्रार्थना और नारियल की भेंट से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करूंगी।"
ध्यानु भक्त के घोड़े के पुनः जीवित होने की बात जब अकबर को सेवकों ने उसे बताई तो यह सुनना उसे अविश्वसनीय लग रहा था।
अकबर बादशाह ने सैनिकों को आदेश दिया कि ,"ज्वाला देवी से जो लौ निकल रही है उस पर तवे रख दो। सैनिकों ने वैसा ही किया लेकिन जोत तवे फाड़कर भी जलती रही।" उसके पश्चात अकबर बादशाह के आदेश पर पहाड़ों से निकल रहे झरने के पानी को नहर बनवा कर मंदिर में डाला गया लेकिन माता की ज्योति जलती रही।
अब अकबर बादशाह ने माता के मन्दिर स्वयं जाने का निश्चय किया और एक सोने का छत्र बनवाया। वह अभिमान वश देवी को सोने का छत्र भेंट करना चाहता था लेकिन वह सोने का छत्र अकबर के हाथों से छूट गया।
वह छत्र सोने का नहीं रहा अपितु किसी अन्य धातु का ही बन गया जो कि ना पीतल,ना सोना, ना चांदी , ना तांबा और ना ही लोहा है। अकबर जान गया कि माता ने उसकी भेंट स्वीकार नहीं की और वह वापस लौट गया। वह छत्र अभी भी माता ज्वाला देवी के दरबार में पड़ा हुआ।
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