NARSI KA BHAT SHRI KRISHNA KE BHAKT KI KATHA

 NANI BAI KA MAYARA(नानी बाई का मायरा) श्री कृष्ण के भक्त की कहानी 

Devotional story of shri krishna: नरसी मेहता जी भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। उनका जन्म जूनागढ़ गुजरात में हुआ था। उनके जीवन की एक प्रसिद्ध कथा है जब श्री कृष्ण स्वयं उनकी पुत्री नानी बाई की पुत्री सुलोचना के विवाह का भात भरने गए थे। मायरा या भात किसी लड़की के विवाह पर उनके नाना या फिर मामा द्वारा दिया जाता है।

नानी बाई नरसी जी की पुत्री थी। जब उनकी पुत्री सुलोचना का विवाह तय हुआ तो नानी बाई के ससुराल वालों के मन में शंका थी कि इसके पिता गरीब है इसलिए वह शादी का भात नहीं कहां भर पाएंगे?

उन्हें भय था कि नरसी जी साधुओं संतों के संग विवाह में आ जाएंगे जिससे उनकी बदनामी होगी। ससुराल वालों ने नरसी जी को विवाह में आने से रोकने के लिए भात के सामान की एक लंबी सूची बना कर भेज दी। उन्हें लगा कि इस सूची को देखकर नरसी जी स्वयं ही शादी में नहीं आएंगे।

नरसी जी को शादी के निमंत्रण के साथ भात भरने की सूची भी भेज दी। नरसी जी श्री कृष्ण पर विश्वास रखकर संतों संग नानी बाई की पुत्री को आशीर्वाद देने पहुंच गए।

नानी बाई के ससुराल वाले उनका अपमान करने लगे। नरसी जी व्यथित होकर श्री कृष्ण को याद करने लगे। 

नरसी जी की पुत्री नानी बाई पिता की इस व्यथा को देखकर व्यथित हुई और आत्महत्या करने के लिए दौड़ी। श्री कृष्ण ने उन्हें रोका और कहा कि कल मैं आपके पिता के साथ स्वयं भात भरने आऊंगा।

अगले दिन नरसी जी एक संतों की टोली और एक सेठ के साथ वहां पहुंचे। उनके साथ ऊंट और घोड़ों की लंबी कतार थी जिस पर बेहिसाब सामान लदा हुआ था। ऐसा मायरा इससे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था और ना सुना था। कहते हैं कि नानी बाई के ससुराल वालों के सामने 12 घंटे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा होती रही। 

नानी बाई के ससुराल वाले दंग थे कि यह सेठ नरसी जी की मदद क्यों कर रहा है। किसी ने सेठ जी से पूछ ही लिया कि," आप इस नरसी की सहायता क्यों कर रहे हैं?  सेठ कहने लगे कि नरसी का मुझ पर अधिकार चलता है , जब यह मुझे बुलाते हैं मैं दौड़ा चला आता हूं। इनके काम करना मेरा कर्तव्य है। सब लोग सेठ की बातों को समझ नहीं पा रहे थे कि इस गरीब नरसी का सेठ पर अधिकार कैसे चलता है।

लेकिन नानी बाई जान गई थी कि उसके पिता सच्चे कृष्ण भक्त हैं और भगवान उनकी भक्ति से बंधे हुए हैं इसलिए उनकी व्यथा दूर करने के लिए स्वयं सेठ के रूप में मायरा भरने आ गए हैं। नरसी मेहता की कथा बताती है कि अगर हम अपने इष्ट पर सम्पूर्ण भाव से समर्पण करते हैं तो उन्हें अपने भक्त के कष्टों को दूर करने स्वयं आना पड़ता है। इसलिए तो कहते हैं अपना मान करे पर जावे, भक्त का मान न टलते देखा

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