DEVOTIONAL STORIES OF SHRI KRISHNA
श्री कृष्ण की भक्ति कथाएं
एक बार एक व्यापारी सोने और हीरे के आभूषणों का व्यापार करते था। धनवान होने के बावजूद भी वह बहुत ही सरल हृदय के व्यक्ति थे। हर समय मन हरि भक्ति में रमा रहता। धन वैभव का तनिक भी अहंकार नहीं था।
एक दिन उनकी दुकान पर उनका एक पुराना मित्र अपनी पत्नी के संग आया। वह दोनों वृन्दावन से दर्शन करके आये थे और उनके लिए वहां का भोग प्रसाद लेकर आए थे। उनके साथ लड्डू गोपाल जी का सुंदर विग्रह था। लड्डू गोपाल की मोहक छवि उस व्यापारी का मन मोह रही थी। उसी समय व्यापारी का कारीगर एक सुन्दर सोने का हार लेकर वहां पहुंचा। उन्होंने वह हार लड्डू गोपाल जी के गले में धारण करवा दिया और कहने लगे कि," लड्डू गोपाल जी के विग्रह पर इस हार की शोभा देखो कैसे बढ़ गई है।"
दोनों दम्पत्ति उनको वृन्दावन धाम की बातें बताने लगे और बातों बातों में वह अपनी टैक्सी में बैठ कर वहां से चले गए और लड्डू गोपाल के गले का हार उनके साथ ही चला गया।
जब वह दोनों दम्पत्ति गलती से लड्डू गोपाल को टैक्सी में ही भूल गए। टैक्सी वाले ने जब लड्डू गोपाल को टैक्सी में देखा तब तक वह अपने शहर पहुंच चुका था। लड्डू गोपाल की मोहक रूप उसे अपनी ओर आकर्षित करने लगा। वह टैक्सी वाला सोचने लगा कि यह लड्डू गोपाल किसके हैं? मैं तो उस सवारी का पता भी नहीं जानता जो आखिरी बार मेरी टैक्सी में बैठे थे।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस लड्डू गोपाल का क्या करें? उसने बड़ी श्रद्धा से लड्डू गोपाल को गोद में उठाया और घर के अंदर पहुंच कर अपनी पत्नी को सौंप दिया। लड्डू गोपाल को पकड़ते ही मानो उसकी पत्नी के मातृत्व के भाव जागृत हो गए और उसकी आंखों से श्रद्धा से आंसू बहने लगे। वह अपने पति से कहने लगी कि," मैं बहुत खुश हूं कि तुम मेरे लिए लड्डू गोपाल का यह सुंदर विग्रह लेकर आए हो। इसे गोद में लेते ही मानो मेरे ममतामई भाव जाग गए हैं।"
उसका पति विचार करने लगा कि अचानक इसको क्या हो गया है? वह जल्दी से लड्डू गोपाल का विग्रह को अन्दर ले गई और जल्दी जल्दी भोग तैयार करने लगी। बड़े श्रद्धा भाव से उनको भोग लगाया।
उधर सोने के व्यापारी को अपने हार की याद आ गई कि वह हार तो उसके मित्र के लड्डू गोपाल विग्रह के साथ ही चला गया। उसने अपने मित्र को जब इस विषय में पूछा तो उन्होंने लड्डू गोपाल जी के चोरी होने की बात बता दी। वह कहने लगे कि अपने लड्डू गोपाल जी के चोरी होने के कारण हम दोनों स्वयं बहुत परेशान हैं।
अब वह व्यापारी तो सरल स्वभाव था इसलिए हार ना मिलने का दुःख तो हुआ लेकिन संतोष कर लिया कि वह हार लड्डू गोपाल जी ने ही पहना है और अगर मेरा हृदय सच्चा है तो वह हार ठाकुर जी के गले में ही धारण रहें।
उधर टैक्सी ड्राइवर की पत्नी पुत्र की भांति लड्डू गोपाल के विग्रह की पूजा करती और उनके घर पर एक सुंदर बेटी ने जन्म लिया। दोनों का यही मानना था कि लड्डू गोपाल के कारण ही हमें संतान प्राप्त हुई है। इसलिए टैक्सी ड्राइवर की पत्नी का स्नेह लड्डू गोपाल जी के प्रति ओर भी गहरा हो गया।
एक दिन गहनों के व्यापारी को अपने काम के सिलसिले में दूसरे शहर जाना पड़ा और इतनी तेज बारिश होने लगी कि उन्हें जहां जाना था वहां पहुंच ही नहीं पाएं। जिस टैक्सी ड्राइवर की टैक्सी में वह बैठे थे वह कहने लगा कि जब तक बारिश कम नहीं हो जाती आप मेरे घर पर रूक जाएं। एक अनजान शहर में किसी पर विश्वास करना मुश्किल था लेकिन ना जाने क्यों उन्होंने हामी भर दी।
घर पहुंचते ही टैक्सी ड्राइवर ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई कि देखो घर पर मेहमान आएं है। उसके घर पर पहुंच कर उनको एक अलग सा खिंचाव महसूस हो रहा था उनका ध्यान घर के उस कोने की ओर जा रहा था जहां पर लड्डू गोपाल जी विराजमान थे। उनके घर का भोजन करने पर भी उन्हें ऐसी अनुभूति हुई कि मानो ईश्वर का भोग प्रसाद हो। भोजन करने के पश्चात भी उनका मन उसी ओर आकर्षित हो रहा था तो उन्होंने टैक्सी ड्राइवर से पूछ ही लिया कि उस ओर क्या है जो मेरा मन बार बार उस ओर जा रहा है।
दोनों पति पत्नी मुस्कुराते हुए बोले कि वहां तो हमारे प्राणों से प्यारे लड्डू गोपाल जी विराजमान हैं। व्यापारी ने कहा कि," क्या मैं उनके दर्शन कर सकता हूं?" लड्डू गोपाल के दर्शन करते ही वह आश्चर्य चकित रह गए क्योंकि यह तो वही लड्डू गोपाल थे जिनके गले में उसने सोने का हार डाला था। लड्डू गोपाल जी ने अभी भी उस हार को गले में धारण किया हुआ था।
उन्होंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि," यह लड्डू गोपाल तुम कहां से लाएं हो?" उसने बिना किसी छल कपट के पूरी बात बता दी। दोनों कहने लगे कि इनके आते ही हमारा अच्छा समय शुरू हो गया और हमें संतान प्राप्त हुई।
व्यापारी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि," क्या तुमे पता है कि इनके गले में जो हार है उसकी कीमत क्या है?" वह बहुत सरल भाव से बोला कि जो चीज़ हमारे ठाकुर जी के अंग लग गई वह तो हमारे लिए बहुमूल्य है। उसका उत्तर सुनकर व्यापारी चुप हो गया और इस बात से संतुष्ट हो गया कि ठाकुर जी ने इसे अंग लगाया है।
बारिश बंद होने के पश्चात टैक्सी ड्राइवर उनके गंतव्य स्थान पर छोड़ने गया और जब वह उतरने लगे तो टैक्सी ड्राइवर ने उनको आवाज लगाई कि आपका बैग टैक्सी में ही रह गया है। इसे भी लेते जाएं।
वह कहने लगे कि मैंने तो टैक्सी में कोई बैग नहीं रखा। टैक्सी ड्राइवर कहने लगा कि नहीं यह बैग आपका ही हैं। जब उन्होंने बैग खोलकर देखा तो उसमें उतने ही रूपये थे जितना उस हार का मुल्य था। यह देखकर उनकी आंखों से आंसू आ गए कि जब तक मैंने हार का मुल्य नहीं पूछा था और निश्छल भाव से ठाकुर जी को धारण करवाया था तब तक ठाकुर जी इस हार को पहने रहे । जैसे ही मैंने इसका मुल्य पूछा उन्होंने मेरा अहंकार दूर करने के लिए मुझे इसका मुल्य चुका दिया। वह मन ही मन ठाकुर जी से क्षमा मांगने लगे और टैक्सी ड्राइवर की आस्था बनी रहे इसलिए चुपचाप वहां से बिना कुछ बताए चले गए।
भगवान तो भाव के भूखे हैं वह तो सच्ची भक्ति पर रीझ जाते हैं। दूसरे वह क्या खेल खेलता है और उसे किस की सेवा लेनी है वह भी वही जानता है। वृन्दावन से ठाकुर जी को कौन लाया और ठाकुर जी कैसे अपने आप उस टैक्सी ड्राइवर के घर पहुंच गए यह सब उसकी लीला है। इसलिए ईश्वर की भक्ति शुद्ध हृदय से करें।
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चोर को हुए श्री कृष्ण के दर्शन कर
एक बार एक बहुत प्रसिद्ध चोर किसी के बंगले पर चोरी करने गया. उस दिन वहाँ पर एक संत भागवत् कथा कर रहे थे। जब चोर वहाँ पहुँचा तो प्रसंग चल रहा था कि माँ यशोदा श्री कृष्ण और बलराम को हर रोज़ गहने पहनाती और वह दोनों भोजन करने के बाद गाय चराने जाते।
संत भाव विभोर होकर श्री कृष्ण की मणि और गहनों का वर्णन कर रहे थे कि वह बहुमुल्य है, अनमोल है। चोर का ध्यान चोरी से हट गया और वह सोचने लगा कि इस संत से उन दिनों भाईयों का पता पूछ लेता हूं कि दोनों भाई कौन से स्थान पर गाय चराने जाते हैं ? मैं उनके गहने छीन लूंगा और मालामाल हो जाऊँगा।
श्री कृष्ण की लीला देखिये उस चोर ने पहले कभी भी भक्ति भाव के प्रसंग सुने ही नहीं थे क्योंकि उसकी संगति ही चोर उचक्को की थी। वह तो बस चोरी - छीना झपटी, और मार काट ही जानता था।
अब वह संत की प्रतीक्षा करने लगा कि कब वह इस सुनसान रास्ते से गुजरे और मैं दोनों बच्चों का पता पूछ सकू। संत को आते देख चोर ने उन्हें चाकू दिखाया और कहने लगा कि उन दोनों बच्चों का पता बता जिन के बारे में तुम बंगले में बता रहे थे कि उनके गहनों का मुल्य तो अनमोल है।
संत ने समझाना चाहा कि भाई मैं तो भागवत् कथा का प्रसंग सुना रहा था. लेकिन संत को लगा कि यह ज्ञान की बातें इस मूढ को समझ नहीं आएगी क्यों कि उसके दिमाग में गहनों का ही ख्याल घूम रहा था। ऊपर से संत को चाकू का भी डर सता रहा था।
संत ने जान बचाने के लिए कहा कि वृंदावन चले जाओ वहाँ दोनों भाई सुबह गाय चराने आते हैं ।वहां तुम उनसे मिल लेना. चोर जाते - जाते संत से कह गया कि मैं गहनों में से आपको आपका हिस्सा दे दूंगा।
अब जैसे - तैसे वृन्दावन पहुँचा. उस समय शाम होने वाली थी. उसने लोगों से पूछा कृष्ण बलराम गाय कहाँ चराते है। लोगों ने भी सरल भाव से वह स्थान बता दिया।
श्री कृष्ण की माया देखिये पूरी रात उसे नींद नहीं आई. रात भर भूख प्यास की कोई सुध नहीं. मन में एक ही उत्सुकता की दोनों के अनमोल गहने लेने है । पूरी रात कभी पेड़ पर चढ़े कभी उतरे, कभी रास्ता देखे कि दोनों भाई कब आएगे. अनजाने में ही सही मन में कृष्ण कृष्ण की धुन चल रही है कब आओगे कब आओगे।
सुबह हुई तो उत्सुकता ओर बढ़ गई। फिर उसे एक आलोकिक प्रकाश दिखाई दिया और दो बालक दिखाई दिए। वह एक टक दोनों को निहारने लगा। सोचने लगा कि ऐसा मनमोहक रुप आज से पहले कभी नहीं देखा।
तभी उसे स्मरण आया कि मुझे तो इनके गहने लेने है और उसमें से संत जी को भी हिस्सा देना है। वह जैसे ही श्री कृष्ण और बलराम को धमाका कर गहने छीनने लगा। प्रभु का वह स्पर्श उसे बहुत ही आलोकिक लगा। प्रभु ने अपनी इच्छा से उसे गहने ले जाने दिये।
फिर से वह उन संत जी की प्रतीक्षा करने लगा। संत जी के आते ही कहने लगा कि अपना हिस्सा ले ले। मैं दोनों बालकों के गहने ले आया हूँ. संत जी हैरान परेशान अरे !भाई तू किन बालकों के आभूषण ले आया है ? भूल गए क्या? कृष्ण और बलराम का पता आप ने ही तो बताया था. मैंने बालकों से उनका नाम पूछा था। उन्होंने ने अपना नाम कृष्ण और बलराम ही बताया था
संत जी कहने लगे कि मुझे भी उन बालकों से मिलना है। मुझे भी ले चलो। दोनों उस स्थान पर पहुँचे ।चोर को दोनों दिखे संत जी को नहीं दिखे. चोर ने श्री कृष्ण और बलराम से कहा कि आप संत जी को क्यों नही दिख रहे? आप को उन्हें भी दिखना पड़ेगा नहीं तो वो मुझे झूठा कहेंगे। भक्त की जिद्द के कारण प्रभु ने संत जी को भी दर्शन दिए।
संत जी कहने लगे कि प्रभु मैं तो कई सालों से भागवत् कथा कर रहा हूँ. लेकिन आप ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। जबकि चोर तो आपके नाम की महिमा और रूप के बारे में कुछ जानता भी नहीं था. फिर उसे दर्शन क्यों दिए? प्रभु ने कहा क्यों कि तुम ने मुझे कभी उस भाव से पुकारा ही नहीं।
प्रभु कहने लगे कि अनजाने में ही सही उसे संत के कहे हुए वचनों पर दृढ विश्वास था। चाहे वो मेरे बारे में कुछ नहीं जानता था लेकिन ईश्वर को पाने के लिए जो व्याकुलता होनी चाहिए। उस समय उस में वही थी. कभी पेड़ पर चढ़ता कभी उतरता और उसके मन में मेरे नाम की ही धुन चल रही थी. इस लिए मैं उस पर रीझ गया और उसके समीप आ गया. संत की संगति का यही तो परिणाम होता है।
अब चोर भी संत की संगति में श्री कृष्ण का परम भक्त बन गया क्योंकि अब वह श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त कर चुका था।
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