PARSHURAM AUR KARAN KI KATHA

MAHABHARATA STORY: परशुराम और कर्ण की कथा 

महाभारत की कहानियां हमें जीवन में प्रेरणा देती है। महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा है जब परशुराम जी ने कर्ण को असत्य बोलने के लिए श्राप दिया था।

कर्ण धनुर्विद्या प्राप्त करना चाहते थे। गुरु द्रोण ने उसे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वह केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा देते थे और कर्ण सूत पुत्र था।

कर्ण शिक्षा ग्रहण करने परशुराम जी के पास चले गए क्योंकि वह केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे। इसलिए कर्ण ब्राह्मण का रूप धारण कर परशुराम के पास थे और धनुर्विद्या प्राप्त करने लगे। 

 कर्ण ने निष्ठा से धनुर्विद्या परशुराम जी से सीखी और कुछ ही समय में इस विद्या में पारंगत हो गए। एक दिन परशुराम जी और कर्ण वन में धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थे। अभ्यास के दौरान जब परशुराम जी थक गए तो कर्ण की गोद में सिर रखकर सो गए।

 तभी एक बिच्छू ने कर्ण को काटना शुरू कर दिया। गुरु की निद्रा में कोई विध्न ना हो इसलिए कर्ण उस दर्द को सहता रहा। अपने शरीर के किसी भी हिस्से को हिलाया नहीं।

 उस समय के पश्चात जब महर्षि परशुराम की नींद खुली तो कर्ण के शरीर से खून की धारा बह रही थी। उन्होंने कर्ण से जब पूरा प्रसंग जाना और पूछा कि तुमने इस कीड़े को हटाया क्यों नहीं। कर्ण कहने लगा कि, मैं गुरु की सेवा में किसी तरह का व्यवधान नहीं डालना चाहता था।"

  यह सुनते ही परशुराम जी क्रोधित गए और कहने लगे कि तुमने मुझसे बोलकर शस्त्र विद्या ली है क्योंकि इतनी सहनशक्ति किसी ब्राह्मण में नहीं अपितु क्षत्रिय में ही हो सकती।

उन्होंने कर्ण को अपनी असली पहचान बताने के लिए कहा। करण कहने लगे कि गुरुवर मैं क्षत्रिय नहीं अपितु सुत पुत्र हूं। परशुराम कहने लगे कि," तुमने झूठ बोलकर शिक्षा प्राप्त की है इसलिए मैं तुम को श्राप देता हूं कि इस जिस समय तुम्हें सबसे ज्यादा जरूरत हो तुम तुम मेरे द्वारा सिखाई की शिक्षा भूल जाओगे और वही तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा।

 कर्ण ने गुरु के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी और कहने लगे कि गुरुदेव मैं तो बस धनुर्विद्या सीखना चाहता था। आप केवल ब्राह्मणों को शिक्षा देते थे इसलिए मैंने आपसे झूठ बोला था।

 परशुराम जी कहने लगे कि," मैं अपना शाप को वापस तो नहीं ले सकता लेकिन मेरा आशीर्वाद है कि जब भी महान योद्धाओं की बात की जाएगी तो तुम्हारा नाम जरूर आएगा।"

इसी शाप के परिणामस्वरूप जब महाभारत युद्ध के सत्तारवें दिन कर्ण का पहिया जमीन में धस गया था तभी अर्जुन ने दिव्यास्त्र से कर्ण को मार दिया। कर्ण उसका तोड़ तो जानता था लेकिन श्राप के कारण वह अनुसंधान करना भूल गया। इस तरह कर्ण को अपने गुरु के साथ बोले गए झूठ का परिणाम भुगतना पड़ा।

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