MOHINI EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE VIDHI

मोहिनी एकादशी व्रत कथा 



वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत को बांटने के लिए मोहिनी अवतार लिया था और असुरों को मोह के जाल में फंसा कर देवताओं को अमृत पिलाया था। इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहते हैं।

समुद्र मंथन कथा

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख समृद्धि की वृद्धि होती है। इस व्रत को करने से निंदित कर्मों से छुटकारा मिलता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व SIGNIFICANCE OF MOHAN EKADASHI 

मोहिनी एकादशी के व्रत का महत्व महर्षि विशिष्ठ ने श्री राम को और श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था।

इस एकादशी को मोहिनी एकादशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके व्रत के करने से मनुष्य के पाप और दुःख दूर होते हैं और मोह जाल से मुक्ति मिलती है। इसलिए जिसके जीवन में कोई भी दुख हो उसे यह व्रत अवश्य करना चाहिए।

भगवान विष्णु मोहिनी अवतार कथा

मोहिनी एकादशी व्रत कथा (MOHINI EKADASHI VRAT KATHA) 

पौराणिक कथा के अनुसार जब सीता जी के वनवास के बाद भगवान राम ने व्यथित होकर गुरु वशिष्ठ से पूछा कि गुरुदेव समस्त पाप और दु:खों के नाश करने वाला उपाय बताएं। जिससे मेरे हृदय को शांति प्राप्त हो गुरु वशिष्ठ कहने लगे कि राम आपका तो नाम मात्र लेने से मनुष्य के रोग, शोक समाप्त हो जाते हैं । आपने कोई पाप नहीं किया आप मोहिनी एकादशी का व्रत करें उससे आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी यह व्रत पाप मिटाने के लिए श्रेष्ठ है। गुरु विशिष्ट ने श्री राम को मोहिनी एकादशी व्रत की कथा सुनाई।

 द्युतिमान नामक राजा सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नगरी में राज्य करता था।  उसी राज्य में धनपान नाम का वैश्य रहता था जो कि बहुत ही धर्मात्मा और विष्णु भक्त था। उसने नगर में बहुत से धर्मशाला, तालाब ,भोजनालय बनवाएं और अनेक पेड़ लगवाए।

उस वैश्य के 5 पुत्र थे। उसके चार पुत्र तो धर्मात्मा थे परंतु उसका सबसे छोटा बेटा धृष्टबुद्धि महा पापी था . वह दुराचारी वेश्या गमन, जुआ खेल कर, मद्यपान कर पिता के धन को नष्ट करता था। इसलिए पिता और उसके भाइयों ने उसे घर से निकाल दिया।

घर से निकल निकाल दिए जाने के कारण उसके साथियों और वेश्या ने भी उसे छोड़ दिया। अब वह भूख - प्यास से दुखी रहने लगा उसने चोरी करना शुरू किया। एक दिन वह पकड़ा गया तो उसे वैश्य का पुत्र जानकर छोड़ दिया गया। लेकिन जब वह पकड़ा दोबारा पकड़ा गया तो उसे कारागार में बहुत यातनाएं जात दी गई और नगर से निकाल दिया गया।

इसलिए अब वह जंगल में जाकर जानवरों का शिकार कर अपना जीवन व्यतीत करता था। एक दिन शिकार का पीछा करते-करते वह कौंडिल्य ऋषि के आश्रम में पहुंचा। उस समय ऋषि गंगा स्नान करके आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उसके के कपड़ों पर पड़ने से उसे सदबुद्धि प्राप्त हुई है और वह हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि मैंने बहुत से पाप किए हैं।आप मुझे पापों से मुक्ति दिलाने का कोई समाधान बताएं।

 ऋषि कहने लगे कि," तुम वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी उसका व्रत करो जिससे तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे।" उसने ऋषि द्वारा बताई  विधि से एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप नष्ट हो गए अंत में वह गरूड़ पर चढ़कर विष्णु लोक गया। इस व्रत से मोह, आदि सब नष्ट हो जाते हैं। इसके महात्म्य को पढ़ने सुनने से हजार गोदान का फल प्राप्त होता है।

व्रत विधि VRAT VIDHI 

एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. 

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए. 

भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.

 इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.

भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करना चाहिए. 

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.

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