SITA NAVAMI DATE SIGNIFICANCE STORY STUTI MANTAR

जानकी नवमी 2023

SATURDAY, 29 MAY 2023



सीता नवमी या जानकी जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को सीता माता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जानकी जयंती या सीता नवमी का पर्व राम नवमी के एक मास बाद आता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती है। यह पर्व जानकी नवमी के रूप में भी प्रसिद्ध है।

 सीता माता का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। सीता जी राजा जनक की पुत्री थी और श्री राम की धर्म पत्नी थी।

जानकी नवमी कथा Janaki Navami katha 

सीता माता के पिता का नाम जनक और माता का नाम सुनयना था। एक बार राजा जनक के शासनकाल में एक बार भीष्म अकाल पड़ा राजा जनक को विद्वानों ने उपाय बताया कि अगर राजा स्वयं खेत में जाकर हाल जोते तो इस अकाल से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है।

राजा जनक ने अपने राज्य की समृद्धि के लिए स्वयं हल चलाने का निश्चय किया। जब राजा जनक हल चला रहे थे उनकी हल किसी धातु की वस्तु से टकरा गई। उस जगह धरती से एक पेटी मिली।

जिसमें से एक सुंदर कन्या मिली। हल की सीत से टकराने के कारण वह पेटी मिली थी। इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया। राजा जनक और रानी सुनयना ने उस कन्या को अपना लिया। राजा जनक ने अपनी पुत्री की तरह उनका पालन पोषण किया और उन्हें हर तरह की स्वतंत्रता और शिक्षा दी।

जनक जी के पास भगवान शिव का पिनाक धनुष था। जिसे कोई उठ नहीं पाता था. लेकिन एक दिन सीता माता जी ने भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था। उस दिन राजा जनक ने निश्चय किया कि जो भी भगवान शिव के धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएंगा उनकी पुत्री उसका वरण करेंगी।

श्री राम ने भगवान शिव के धनुष को उठाकर कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उसे खींच दिया। उसके पश्चात सीता माता का विवाह श्री राम से हो गया।

JANAKI NAVAMI SIGNIFICANCE

(जानकी नवमी का महत्व)

भगवान श्री राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और सीता माता मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है। जानकी नवमी के दिन मां सीता का प्राकट्य हुआ था। इस लिए इस दिन का बहुत महत्व है।

सीता माता पवित्रता, धैर्य और समर्पण और पतिव्रत धर्म की प्रतीक है। इस सुहागिन स्त्रियां व्रत रखती है। इस दिन श्री राम और माता सीता की एक साथ पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख शांति आती है। सीता नवमी के दिन को अबुझ मुहुर्त होता है। इस दिन सीता माता जी के साथ श्री राम का पूजन किया जाता है। 

महिलाएं इस दिन सीता माता को को सुहाग का सामना अर्पित करती है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन साथी पर आने वाले संकट का निवारण होता है।  

जानकी नवमी पर मां सीता की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए करें यह शुभ कार्य 

 श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं और सीता माता को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इसलिए लिए इस दिन श्री राम और सीता माता की स्तुति करनी चाहिए जिससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।

JANAKI STUTI ।।जानकी स्तुति।।

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ।

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ।। 


दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।। 


भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।

पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।


पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।


आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।

प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।


नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।


पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम् ।

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।


आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम् , 

नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।

सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।

     ।। राम स्तुति।।RAM STUTI

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भावभय दारुणं ।नवकंज -लोचन, कंजमुख, कर-कंज, पद कंजारुणं ॥१॥


कंदर्प अगणित अमित छबि , नवनील- नीरज-सुंदरं ।

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं॥२॥


भजु दीनबंधु दिनेश दानव- दैत्य- वंश- निकंदनं ।

रघुनंद आनँदकंद कौशलचंद दशरथ- नंदनं ॥३॥


सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं ।

आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित- खरदूषणं ॥४॥


इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-रंजनं ।

मम हृदय कंज-निवास कुरु,कामादी खल-दल-गंजनं॥५॥


मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो ।

करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥


एही भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियं हरषी अली ।

तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥७॥


          ।। सोरठा ।। 

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥

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