APARA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

अपरा एकादशी व्रत कथा और महत्व

 एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा की जाती है।‌‌ ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी या अचला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। 

 SIGNIFICANCE OF APARA EKADASHI अपरा एकादशी महत्व

अपरा एकादशी इस व्रत के करने से कीर्ति, पुण्य और धन में वृद्धि होती हैं। प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. इस व्रत के प्रभाव से ब्रहम हत्या, भूत योनि और परनिंदा के पाप भी समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत पाप रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान है। इस दिन किए गए दान पुण्य का विशेष फल प्राप्त होता है।

APARA EKADASHI VRAT KATHA (अपरा एकादशी कथा)

प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था उसके छोटे भाई ने जो कि उससे शत्रुता रखता था उसने महीध्वज की हत्या कर जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे उसका शव दबा दिया।

अकाल मृत्यु के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर जंगल से गुजरने वाले लोगों को परेशान करती थी। संयोग वश एक ऋषि उस पेड़ के नीचे से गुजरे तो उन्होंने उस पीपल के पेड़ से राजा की प्रेत आत्मा को उतारा और प्रेत बनने का कारण जाना। राजा की आत्मा ने अपनी कहानी ऋषि को बताई।

राजा की प्रेत योनी से मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत का पूर्ण होने पर उसका पुण्य राजा को दे दिया व्रत के प्रभाव राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हुई और राजा स्वर्ग लोक चले गए।

व्रत विधि


एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए।

भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है।

 इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।

भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करना चाहिए।

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए।

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है।

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।

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