JAGANNATH JI BIMAR KYU HOTE HAI SNANA YATRA
जगन्नाथ जी बिमार क्यों होते हैं
Story of lord Jagannath: प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को जगन्नाथ जी को 108 घड़ों से स्नान करवाया जाता है। माना जाता है कि पूर्णिमा स्नान के पश्चात जगन्नाथ जी बिमार हो जाते हैं। इसे स्नान यात्रा भी कहा जाता है।
15 दिनों के लिए मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए बंद कर दिये जाते हैं और भगवान एकांतवास में चले जाते हैं। इसे अनवसर काल भी कहा जाता है। जगन्नाथ जी को जड़ी बूटी से बना काढ़ा, फलों का रस, खिचड़ी दलिया का भोग लगाया जाता है।
जगन्नाथ जी हर साल बिमार क्यों होते हैं?
Reason behind why lord Jagannath sick every year for fifteen days : जगन्नाथ पुरी में जगन्नाथ जी के भक्त माधव दास जी रहते थे। वह दिन रात जगन्नाथ जी का भजन करते थे। उन्हें सांसारिक मोह माया से कोई लगाव नहीं था। वह तो बस अपने इष्ट की भक्ति में लीन रहते।
एक बार माधव दास जी का स्वस्थ बिगड़ गया और उन्हें उल्टी-दस्त का रोग हो गया। जिसकारण उनका शरीर बहुत कमज़ोर हो गया। जहां तक की उनको चलना फिरना भी मुश्किल हो गया। माधव दास जी अपने कार्य में किसी की भी मदद नहीं लेना चाहते थे। अगर कोई मदद के लिए कहता तो वह यही कहते कि मेरे जगन्नाथ मेरी रक्षा करेंगे।
लेकिन माधव दास जी की तबीयत में कोई सुधार नहीं आया और देखते ही देखते कुछ ही समय में उनकी तबीयत और बिगड़ गई। उनका शरीर इतना कमज़ोर हो गया है कि वह मल मूत्र भी वस्त्रों में त्याग देते।
एक लड़का माधव दास जी की सेवा करता और उनके गंदे वस्त्रों को साफ करता और उनके शरीर को अच्छे से स्वच्छ करता। माधव दास जी उनके स्पर्श से जान गए कि स्वयं जगन्नाथ जी उनकी सेवा कर रहे हैं।
वह जगन्नाथ जी से प्रार्थना करने लगे कि,"प्रभु आप मेरी इतनी सेवा कर रहे हैं उससे तो अच्छा है कि आप मेरा कष्ट दूर कर दे। प्रभु फिर आपको मेरी सेवा नहीं करनी पड़ेगी।"
जगन्नाथ जी कहने लगे कि तुम मेरे भक्त हो और मुझ से अपने भक्तों का कष्ट देखा नहीं जाता। इसलिए मैं तुम्हारी सेवा करने आ गया। लेकिन माधव हर व्यक्ति का जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर तुम इस जन्म में नहीं काटोगे तो तुम को अगले जन्म लेना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि तुम को अपने प्रारब्ध की वजह से एक ओर जन्म लेना पड़े। मैं इसलिए ही स्वयं तुम्हारी सेवा कर रहा हूं। लेकिन मैं अपने भक्तों की बात नहीं टाल सकता।
तुम्हारे प्रारब्ध का 15 दिनों का रोग अभी शेष है। तुम्हारा 15 दिनों का रोग मैं स्वयं ले लेता हूं। इस तरह जगन्नाथ जी ने अपने भक्त का 15 दिनों का रोग स्वयं ले लिया। तब से भगवान जगन्नाथ 15 दिन तक बीमार रहते हैं।
यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है। जगन्नाथ जी को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान करवाया जाता है। जिसे स्नान यात्रा कहा जाता है।
स्नान के पश्चात जगन्नाथ जी बीमार पड़ते हैं। 15 दिनों के लिए जगन्नाथ जी के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। इन दिनों जगन्नाथ जी अपने भक्तों को दर्शन नहीं देते। केवल मंदिर के पुजारी और वैद्य ही जगन्नाथ जी के सम्मुख जाते हैं।
इन दिनों जगन्नाथ जी को दवाई के रूप में काढ़ा दिया जाता है। जगन्नाथ जी को फलों का रस , औषधि और दलिया भोग लगाया जाता है।
जगन्नाथ जी स्वस्थ होने के पश्चात रथ पर सवार होकर नगर के भ्रमण पर निकल पड़ते हैं। जिसे रथयात्रा कहा जाता है। रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।
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