NARAD JI KI KATHA

नारद जयंती पर पढ़ें भगवान विष्णु के परम भक्त नारद जी की कथा 

भगवान विष्णु के परम भक्त माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नारद जी का अवतरण ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। इस दिन को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। 2024 में नारद जयंती शुक्रवार , 24 मई को मनाई जाएगी। 

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नारद जी के पूर्व जन्म की कथा 

नारद जी पूर्व जन्म में उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। एक बार गंधर्व और अप्सराएं नृत्य गीत से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। तभी नारद जी वहां आ गए और ब्रह्मा जी के सामने अशिष्ट आचरण करने लगे। उनके इस आचरण से कुपित होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें शुद्र योनि में पैदा होने का श्राप दिया। 

श्राप के परिणाम स्वरूप अगले जन्म में वह शुद्र दासी पुत्र के रूप में पैदा हुए। वह दोनों मां पुत्र साधु संतों की सेवा करते थे।

नारद जी मुनियों द्वारा बचे हुए भोजन से अपना पेट भरते। मुनियों की सेवा और आज्ञा पालन से उनका चित्त शुद्ध हो गया जिससे उनका मन भगवद् भजन में रमने लगा। ऋषिगण भगवान विष्णु की भक्ति का गान करते जिस कारण नारद जी को विष्णु भक्ति से उन्हें प्रेम हो गया। बुद्धि भगवान विष्णु की भक्ति में ऐसी लगी की स्थूल शरीर को भूलकर दिन-रत

 उसी में मस्त मगन रहने लगे। उनकी विष्णु भगवान के प्रति भक्ति को देखकर मुनियों ने उन्हें ज्ञान दिया।

नारद जी जब 5 वर्ष के थे तो उनकी मां दूध दूहने के निमित्त घर से निकली तो सर्प ने उन्हें काट लिया। जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

माता की मृत्यु के पश्चात नारद जी चिंता रहित होकर वन की ओर चले गए। एक दिन जब नारद जी ध्यान में बैठे थे तो उनके चित्त में भगवान विष्णु का प्रकाश हुआ। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। शरीर रोमांचित हो गया। मानो परमानंद सुख प्राप्त हो रहा हो। नारद जी अपनी सुध बुध खो बैठे। उसी समय प्रकाश लुप्त हो गया। जिस कारण नारद व्याकुल हो गए।

उसी समय का आकाशवाणी हुई थी नारद तुम मुझे अभी नहीं देख सकते ।क्योंकि अभी तुम्हारे कामादिक मल नष्ट नहीं हुए। लेकिन तुम्हें अगले जन्म में भी यह वृत्तांत याद रहेगा। तुम अभी साधु संतों की सेवा करते हुए मेरी दृढ़ भक्ति प्राप्त करो। भगवान विष्णु की वाणी के अनुसार नारद जी भगवान विष्णु की उपासना करते हुए पृथ्वी पर विचरण करने लगे। समय आने पर नारद जी का पंच भौतिक शरीर छूट गया।

भगवान विष्णु की कृपा से अगले जन्म में उनका ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतरण हुआ। नारद जी इस जन्म में भी भगवान विष्णु के परम भक्त बने और सृष्टि के कल्याण हेतु कार्य किए। 

नारद जी ने क्यों दिया भगवान विष्णु को शाप

एक बार नारदजी हिमालय पर्वत पर बहुत कठोर तपस्या कर रहे थे। इन्द्र देव को लगा कि कहीं वो तपस्या कर के स्वर्ग लोक तो नहीं पाना चाहते। इसलिए उन्होंने कामदेव को नारद जी की तपस्या भंग करने भेज दिया। लेकिन कामदेव उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाए और नारद जी के चरणों में गिर कर माफी मांगने लगे।

कामदेव को हराने के कारण नारद जी के मन में अहंकार आ गया। नारद जी विष्णु लोक पहुंचे और श्री हरि को यह बात बताई। भगवान सोचते हैं कि देव ऋषि के लिए अंहकार अच्छी बात नहीं है। नारद जी जब विष्णु लोक से वापिस जा रहे थे तो देखते हैं कि एक अति सुंदर कन्या के स्वयंवर का आयोजन हो रहा है।

उस कन्या पर नारद जी मोहित हो जाते हैं और वापिस विष्णु लोक आ जाते हैं और विष्णु जी को कहते हैं कि " प्रभु मुझे अपना रुप दे दीजिए। मैं उस कन्या से शादी करना चाहता हूँ। नारद जी साथ में कहते हैं कि "मुझे वो रुप देना जिस में मेरा हित हो."

 भगवान विष्णु कहते  है,"तथास्तु" 

उसके पश्चात नारद जी वहाँ पहुँच गए यहाँ स्वयंवर हो रहा था। नारद जी ने सोचा श्री हरि ने मुझे सुंदर रूप दिया है इसलिए राजकुमारी सीधे आ के मेरे गले में वरमाला डालेगी। लेकिन राजकुमारी आई और सीधी आगे चली गई श्री हरि विष्णु जी वहां आए हुए थे। राजकुमारी ने वरमाला विष्णु जी के गले में डाल दी। नारद जी ने राजकुमारी से पूछा की उसने उनको क्यों नहीं चुना,तो राजकुमारी ने कहा, "अपना मुख देखा है आईने में।"

नारद जी ने जब अपना चेहरा तालाब में देखा तो आश्चर्य चकित रह गए। क्योंकि श्री विष्णु ने उन्हें वानर का रूप दिया था जिस कारण नारद जी क्रोधित हो गए और विष्णु जी के पास पहुंचे। 

नारद जी ने कहने लगे कि ,"मैंने कहा था कि मैं उस राजकुमारी से शादी करना चाहता हूं। मुझे अपना रूप दे दो।आपने तो स्वयं ही उससे शादी कर ली और मुझे रूप दिया भी तो वानर का"

नारद जी ने क्रोध में श्री हरि को श्राप दे दिया की जिस तरह मुझे राजकुमारी नहीं मिली। आप भी जब अगले जन्म में मनुष्य रुप लेंगे तो आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा ,और आपको उससे मिलने के लिए वानरों की ही सहायता लेनी पड़ेगी।

नारद जी के इतना कहते ही श्री हरि अपनी माया खींच ली। तब नारद जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। लेकिन तब तक वह श्राप दे चुके थे। श्री हरि ने कहने लगे कि," नारद जी आप तो देव ऋषि है आपने स्वयं ही तो बोला था प्रभु मुझे वह रूप देना जिससे मेरा भला हो। इसलिए मैं नहीं चाहता था कि आप हरि भक्ति से विमुख हो।

नारद जी के इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु ने जब श्री राम के रूप में अवतार लिया तो राम जी और सीता मां का वनवास के दौरान वियोग हुआ।  रावण मां सीता का अपहरण करके ले गया और हनुमान जी जो वानर रुप थे समुंदर पार करके सीता माता का पता लगाया। राम जी ने सुग्री़व की सेना की सहायता से लंका पर विजय प्राप्त की  थी।

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