PARMESHTHI DARJI KI KATHA
जगन्नाथ जी के भक्त परमेष्ठी दर्जी की कथा
Jagannath ji ke bhakt parmeshthi darji ki kahani: दिल्ली में लगभग चार सौ साल पहले काले रंग का परमेष्ठी नाम का कुबड़ा दर्जी रहता था। इसकी पत्नी का नाम विमला था। वह भी संस्कारी और ईश्वर को मानने वाली थी। परमेष्ठी की वासुदेव भगवान में अपार आस्था थी। वह सोते जागते भगवद् नाम स्मरण करता रहता।
परमेष्ठी अपने काम में बहुत निपुण था। वह अपना काम बहुत सफाई से करता था। इसलिए नवाब और बड़े-बड़े अमीर राजघरानें उससे कपड़े सिलवाते थे। जहां तक कि दिल्ली के बादशाह को भी उसके सिले कपड़े बहुत पसंद आते थे ।
एक बार बादशाह ने सिंहासन के नीचे पैर रखने के लिए दो बढ़िया गलीचे बिछाये। लेकिन बादशाह के मन को वें गलीचे नहीं जंचे। इसलिए उस ने दो तकिये बनवाने का निश्चय किया। बादशाह ने क़ीमती मखमल के कपड़े पर हीरे, मोती सोने की तारों से जड़वाये। बादशाह चाहता था कि इस बहुमूल्य कपड़े से सुंदर तकिये बने। इसलिए उसने परमेष्ठी को बुला कर कहा कि यह बहुत कीमती कपड़ा है। इससे तुम बड़े ध्यान से मेरे लिए दो बढ़िया तकिये बना कर दो।
परमेष्ठी कपड़ा लेकर घर आ गया और कपड़े से तकिये के लिए दो खोल तैयार किए। परमेष्ठी ने उसके अंदर सुगंधित रूई भरी। तकियो को देखकर परमेष्ठी के मन में यह भाव जाग गए कि इतनी सुंदर तकिये का अधिकारी नहीं बल्कि इस के अधिकारी तो भगवान जगन्नाथ होने चाहिए।
धीरे-धीरे उसके दिमाग में यह विचार दृढ़ होने लगा कि इतनी सुंदर कारीगरी किस काम की अगर वह भगवान की सेवा में ना लगे। लेकिन यह तकिये तो बादशाह के हैं ।
उसके मन के असमंजस ने ऐसा रूप लिया कि परमेष्ठी को ध्यान ही नहीं रहा कि वह कहां है और क्या कर रहा है ? उस जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव शुरू हो रही था। परमेष्ठी एक बार जगन्नाथ जी की रथयात्रा का महोत्सव देखा था। परमेष्ठी आज भी भावावेश में जैसे रथयात्रा महोत्सव का प्रत्यक्ष दर्शन करने लगा। परमेष्ठी देख रहे हैं कि जगन्नाथ जी रथ पर विराजमान हो रहे हैं और हजारों की संख्या उनके भक्त रथ की रस्सी को पकड़कर खड़े हैं। चारों और जगन्नाथ जी के जयकारे गूंज रहे हैं। जगन्नाथ जी के भक्त कीर्तन कर रहे हैं और भावावेश में नृत्य कर रहे हैं। जगन्नाथ जी के सेवक जगन्नाथ जी को एक वस्त्र से दूसरे वस्त्र पर पधरा रहे हैं।
परमेष्ठी भावावेश में देखता है कि जगन्नाथ जी के नीचे बिछाया गया वस्त्र फट गया है। उसी समय एक पूजारी दूसरा वस्त्र लेने मंदिर की ओर दौड़े। लेकिन परमेष्ठी ने शीघ्रता से दो तकियों में से एक तकिया जगन्नाथ जी को अर्पण कर दिया। जगन्नाथ जी ने परमेष्ठी का तकिया स्वीकार कर लिया। दर्जी भाव विभोर होकर नाचने लगा। परमेष्ठी स्वप्न नहीं देख रहे थे बल्कि सचमुच पूजारी ने देखा कि जगन्नाथ जी के नीचे का वस्त्र फट गया था और किसी भक्त ने जगन्नाथ जी को रतन जड़ित तकिया भेंट कर दिया।
जैसे ही परमेष्ठी दर्जी को चेतना आई। उन्हें दिव्य अनुभूति हो रही थी कि जगन्नाथ जी ने उसका तकिया स्वीकार कर लिया। लेकिन उसी क्षण ध्यान आया कि यक तकियें तो बादशाह के थे।।लेकिन जगन्नाथ जी को अर्पण किए तकिए कि उसे इतनी खुशी थी कि मृत्यु का भय भी उसे अब नहीं सता रहा था।
उसी समय बादशाह के सैनिकों ने उसे दोनों तकियें लेकर आने को बोला। परमेष्ठी एक ही तकिया लेकर बादशाह के पास पहुंच गए। उसके सिले हुए तकिए को देखकर बादशाह बहुत खुश हुआ और उसने दूसरे तकिए के बारे में पूछा कि दूसरा तकिया कहां है? परमेष्ठी ने बिना किसी भय के बोल दिया कि वह जगन्नाथ जी ने स्वीकार लिया।
बादशाह को पहले लगा कि प्रमेष्ठी परिहास कर रहा है क्योंकि जगन्नाथ तो जहां से बहुत दूर है। इतनी जल्दी यह तकिया वहां कैसे स्वीकार हो सकता है । परन्तु जब उसने बार-बार एक ही जवाब दिया तो बादशाह ने क्रोधित होकर उसे जेल में डाल दिया।
जेल में भी वह जगन्नाथ जी का ही स्मरण कर रहा था। रात्रि को जगन्नाथ जी ने उसे दर्शन दिए और उसकी हथकड़ी टूट गई। कारागार की कोठरी का द्वार खुल गया। परमेष्ठी को शंख, चक्र, गदाधारी भगवान ने दर्शन दिए। भगवान के दर्शन कर वह उनके चरणों में पड़ गया।
भगवान परमेष्ठी से कहने लगे कि इस संसार में कोई भी इतना बलवान नहीं है कि कोई मेरे भक्तों को कष्ट दे सके। भगवान उसे बंधन मुक्त करके अंतर्ध्यान हो गए ।
उधर बादशाह के स्वपन में एक बड़ा भयंकर पुरुष आया। मानो साक्षात्कार महाकाल अपना दंड उठाए इसे पीट रहे हैं। वह कहने लगा कि तुम ने परमेष्ठी को क्यों किया कैद किया? बादशाह डर के मारे पसीने से तरबतर हो कर उठ गया और उसका पूरा शरीर कांप रहा था और उनका बदन दर्द कर रहा था। शरीर पर चोट के निशान नजर आ रहे थे। सवेरा होते ही उसने मंत्रियों को अपने स्वप्न सुनाया और तुरंत ही परमेष्ठी को मिलने कैदखाने में पहुंच गया।
परमेष्ठी ध्यान मग्न बैठा था और उसकी हथकड़ी टूटी हुई है। उसके शरीर से अलौकिक प्रकाश निकल रहा है और ध्यान टूटने पर वह व्याकुल होकर रोने लगा।
बादशाह ने परमेष्ठी दर्जी से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और उसे सुसज्जित हाथी पर बिठाकर गाजे-बाजे के साथ शहर में ले आया। चारों ओर दर्जी का जय जयकार होने लगा। परमेष्ठी को यह प्रसिद्धी बिल्कुल नहीं भा रही थी। वह दिल्ली छोड़कर कहीं दूर चले गए और पूरा जीवन भगवान के पूजन में व्यतीत कर दिया।
जगन्नाथ रथयात्रा हेरा पंचमी 24 जून 2023
ALSO READ
जगन्नाथ जी गजानन वेश धारण क्यों धारण करते हैं
जगन्नाथ जी बिमार क्यों होते हैं
जगन्नाथ जी की भक्त कर्माबाई की कथा
जगन्नाथ जी की आरती जगन्नाथ श्री मंगल कारी
Comments
Post a Comment