VAT SAVITRI VRAT KATHA SIGNIFICANCE N HINDI

वट सावित्री व्रत कथा और महत्व 

वट सवित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। सुहागिन स्त्रियाँ इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति पर आने वाले संकट टल‌ जाते हैं जहां तक की अकाल मृत्यु भी टल जाता है। 2023 में वट सावित्री व्रत 19 मई को मनाया जाएगा।

VAT SVITRI VRAT KATHA 

 पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश में राजा अश्वपति एक धर्मात्मा राजा थे उनकी सावित्री नाम की पुत्री थी।

 वह विवाह के योग्य हई तो उसने साल्व देश से निष्कासित राजा  द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को चुना । रूक्मि नामक सामंत ने उनका राजपाट छीन लिया था और राजा द्युमत्सेन नैत्रहीन चुके थे वह अपनी पत्नी और पुत्र के साथ वन में रहते थे।

जब नारद जी को यह बात पता चली तो वह महाराज अश्वपति से कहने लगे कि इस विवाह को रोक ले क्योंकि सत्यवान तो अल्पायु है। लेकिन सावित्री कहने लगी कि सनातनी स्त्री एक बार ही अपना वर चुनती है इसलिए सावित्री अपने निर्णय पर दृढ़ रही।

राजा ने सवित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया और सवित्री सत्यवान की पत्नी बन कर वन में आ गई । समय व्यतीत होता गया और वह दिन आ गया जो नारद जी के सवित्री को सत्यवान की मृत्यु के लिए बताया था। 

सावित्री जब सत्यवान के साथ वन में लकडियाँ काटने गई तो उसको पीड़ा होने लगी तो सवित्री वट के पेड़ के नीचे सत्यवान का सिर अपनी गोद में लेकर बैठ गई । इतने में यमराज सत्यवान की आत्मा को पाश से खींचने कर दक्षिण दिशा में लेकर चल पड़े ।

सवित्री भी अपने तपोबल से यमराज के पीछे पीछे चल पड़ी। तो यमराज ने उसे उनके पीछे आने से रोका। वह कहने लगी की जहाँ मेरे पति रहेगे  वही मैं रहूँगी‌ । मुझे भी अपने संग ले चले आप मेरे भी प्राण ले ले।

यमराज उसे समझाने लगे कि यह नियम के विरुद्ध है। मै ऐसा कुछ नहीं कर सकता। तुम ऐसा करो कि मुझ से कोई वर मांग लो। सवित्री ने अपने ससुर द्युमत्सेन की आंखों की रोशनी मांग ली।

यमराज ने कहा तथास्तु।

लेकिन सवित्री वर पाने के बाद भी यमराज के पीछे - पीछे चलने लगी तो यमराज ने सवित्री को पुनः समझाया कि तुम जो मांग रही वह नियम के विरुद्ध है। तुम एक और वरदान मांग लो। सवित्री ने इस बार अपने ससुर का राज्य वापस मांग लिया। उसके पश्चात भी वो जब यमराज के पीछे- पीछे गई तो उन्होंने उसे फिर से वर मांगने को कहा तो उसने अपने पिता जिनका कोई पुत्र नहीं था उनके लिए सौ पुत्र मांग लिये।

सवित्री उसके पश्चात भी यमराज के पीछे जाने लगी तो यमराज ने कहा कि तुम मेरे पीछे मत आओ चाहे तो एक वर और मांग लो। सवित्री ने यमराज से मांगा कि मुझे सत्यवान से सौ पुत्र हो। यमराज ने कहा तथास्तु।

यमराज जब सत्यवान के प्राणों को लेकर जाने लगे तो सवित्री फिर उनके पीछे आ रही थी तो यमराज ने उसे लौट जाने को कहा।  सवित्री ने उन्हें याद दिलाया कि आप ने अभी मुझे सत्यवान के सौ पुत्रों की माँ होने का आशीर्वाद दिया है और क्या आपका वर झूठ था? सवित्री का सच्चा पतिव्रत धर्म देखकर  यमराज ने सत्यवान को पुनः जीवित कर दिया। 

वट सावित्री व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए यह व्रत करती है।

SIGNIFICANCE OF VAT SAVITRI VRAT (वट सावित्री व्रत का महत्व)

वट सावित्री व्रत पर बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति पर आने वाले संकट टल‌ जाते हैं जहां तक की अकाल मृत्यु भी टल जाती है और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए महिलाएं पति की दीर्घायु और संतान प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत को करती है। इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत के समान माना जाता है।

इसलिए इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों तरफ कलावा बांधती है और फल फूल और सिंदूर अर्पित करती है। बरगद के पेड़ की परिक्रमा करती है।

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