KABIR JI KE BEST DOHE IN HINDI
कबीर जी के 21 सर्वश्रेष्ठ दोहे
कबीर दास जयंती: संत कबीर दास जी का जन्म ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। संत कबीर एक रहस्यवादी कवि, समाज सुधारक थे। संत कबीर जी के दोहे वर्तमान समय में भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
Kabir Das ji ke Dohe in hindi/Kabir das ji Anmol Vachan/ Kabir das ji Suvichar in hindi/ कबीर दास जी के सुविचार/ कबीर दास जी के दोहे हिंदी में/ संत कबीर के अनमोल वचन
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
Teachers day quotes in Sanskrit
2.ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होए।
3.निंदक नियेरे राखिये, आंँगन कुटी छवायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।
4.बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
5. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।
6. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पर में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।
7. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाही,
सब अंँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।
8. पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होए।
9.साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाए।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए।
10. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।
पढ़ें संत कबीर की एक प्रेरणादायक कथा
11. माया मरी न मन मरा, मर-मर गया शरीर।
आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।
12. रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अनमोल है कोड़ी बदले जाय।
13. दुःख में सुमिरन सब करे,सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।
14. बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
15. तिनका कबहुँ ना निन्दिय, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आंँखिन पड़े, तो फिर घनेरी होय।
16. तूँ तूँ करता तूँ भया, मुझ मैं रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखों तित तूंँ।।
17. लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहि जब छूट।
18. मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीति।
कहै कबीरा हरि पाइए, मन ही की परतीति।।
19. यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान।
शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
20. तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार।
सतगुरू मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।
21. तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोये।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
क्रोध अग्नि घर घर बढ़ी, जलै सकल संसार।
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार।
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