ADHIK MASS PADMINI EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE
अधिक मास पद्मिनी एकादशी व्रत 2023
Saturday,29 July 2023
इस तरह एक वर्ष में 24 एकादशियां आती है। लेकिन 2023 में अधिक मास होने के कारण इस बार 26 एकादशी आएगी। अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी और कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी कहा जाता है।
Significance of Padmini Ekadashi पद्मिनी एकादशी का महत्व
धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से अधिक मास की एकादशी का महत्व पूछा था। श्री कृष्ण कहने लगे कि," पुरूषोत्तम मास, मलमास में आने वाली पद्मिनी एकादशी अनेक पुण्यों को प्रदान करने वाली है। एकादशी व्रत करने वाले यशस्वी होते हैं।"
पद्मिनी एकादशी में श्री राधा कृष्ण और मां पार्वती और भगवान शिव का पूजन विशेष फलदाई माना जाता है। गुरु की निंदा नहीं करनी चाहिए। धर्मशास्त्रों की कथा सुननी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जिसने अधिक मास की इस एकादशी का व्रत कर लिया मानो उसने धरती के समस्त तीर्थों के दर्शन और स्नान कर लिया।
Adhik Mass Padmini Ekadashi vrat katha पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
एक बार की बात है कि रावण को कार्तवीर्य ने अपने कारागार में बंद कर दिया। तब कार्तिवीर्य से पुलस्त्य जी ने विनती कर रावण को मुक्त करवाया। जब नारद जी ने ऋषि पुलस्त्य जी से पूछा- जिस रावण ने इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया उस रावण पर कार्तिवीर्य ने कैसे विजय प्राप्त की। नारद जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पुलस्त्य ऋषि बोले कि मैं तुम को कार्तिवीर्य के जन्म से पहले की कथा सुनाता हूं।
पुलस्त्य जी कहने लगे कि," त्रेता युग मे महिष्मति पूरी में हैहय वंशी कृत वीर्य नाम का एक राजा था। उस राजा की एक हजार से अधिक रानियां थीं परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था। इस बात से राजा बहुत चिंतित रहता था क्योंकि उसने पुत्र प्राप्ति के अनेकों प्रयास किए थे लेकिन सभी निष्फल रहे।
फिर एक दिन राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए वन में जाकर घोर तपस्या करने का निश्चय किया। राजा के तपस्या जाने की बात सुनकर उसकी पद्मिनी नाम की रानी जो कि इच्छाकु वंश के राजा हरिश्यचन्द्र की पुत्री थी, उनके साथ वन जाने के लिए तैयार हो गई। दोनों पति-पत्नी वस्त्र आभूषण त्याग कर गंधमादन पर्वत पर तप करने चले गए।
उन दोनों ने दस हज़ार वर्षों तक घोर तपस्या की परन्तु फिर भी उन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। उस समय रानी पद्मिनी ने महासाध्वी अनुसुइया जी से पूछा- मेरे पति की दस हज़ार वर्षों की तपस्या के पश्चात भी भगवान प्रसन्न क्यों नहीं हुएं? आप कृपया मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके करने से ईश्वर हम पर प्रसन्न हो और हमें संतान की प्राप्ति हो।
रानी पद्मिनी की बात सुनकर अनुसुइया जी ने कहा- बत्तीस मास के पश्चात एक अधिक मास आता है। इस अधिक मास में पद्मिनी और परमा नाम की दो एकादशी आती है। तुम शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी का व्रत जागरण सहित करो। इस व्रत के प्रभाव से ईश्वर तुम को प्रसन्न होकर पुत्र जरूर देंगे। देवी अनुसुइया से व्रत की विधि पूछकर रानी पद्मिनी ने अधिक मास की एकादशी का व्रत किया। एकादशी के दिन वह निराहार रही और रात्रि जागरण किया।
एकादशी व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु गरूड़ पर आरूढ़ होकर प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। रानी पद्मिनी ने भगवान विष्णु की स्तुति कर कहा कि हे प्रभु! आप मेरे पति को वरदान दे। भगवान विष्णु ने राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। भगवान विष्णु कहने लगे कि हे देवी! मुझे मलमास के समान कोई मास अधिक प्रिय नहीं है। तुम ने जो मलमास में जागरण सहित एकादशी व्रत किया है उससे मैं अति प्रसन्न हूं।
भगवान विष्णु ने फिर रानी पद्मिनी के पति को दर्शन देकर कहा कि राजन्! जिससे आपका मनोरथ पूर्ण हो वैसा वर मांगो।
भगवान विष्णु के वचन सुनकर राजा ने भगवान से सर्वश्रेष्ठ और यशस्वी पुत्र मांगा और कहा कि एक जगदीश्वर मुझे वरदान दे कि मेरा पुत्र आपके सिवाय किसी देवता, मनुष्य, दैत्य ,नाग आदि किसी से भी न मर सके। भगवान विष्णु राजा को वरदान देखकर अंतर्ध्यान हो गए।
पद्मिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा और रानी को यशस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसको श्री हरि के अतिरिक्त कोई और पराजित नहीं कर सकता था। पुलस्त्य मुनि नारद जी से कहने लगे कि," भगवान विष्णु के वरदान से उत्पन्न कीर्तवीर्य से रावण का पराजित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।"
अधिक मास में पड़ने वाली पद्मिनी एकादशी कथा का जो कोई श्रवण करता है यह पढ़ता है उन्हें इस संसार में यश की प्राप्ति होती है और अनन्त में विष्णु धाम में निवास करते हैं।
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