BHAGAVAD GITA QUOTES IN SANSKRIT WITH MEANING
भगवद् गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिन्दी अर्थ सहित
श्रीमदभागवद् गीता का उपदेश महाभारत युद्ध से पहले श्री कृष्ण ने आज से 5000 साल पहले अर्जुन को दिया था। श्री कृष्ण महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बने थे। युद्ध भूमि में का मन भ्रमित हो जाता है ।अर्जुन कहते हैं," प्रभु मैं आपकी शरण में आया हूं मेरी शंका का निवारण करे।" श्री कृष्ण भगवद् गीता का उपदेश देकर अर्जुन का मार्ग दर्शन करते हैं। अर्जुन के मन में जितने भी शंका होती हैं उसे दूर करते हैं।
श्रीमद्भगवद् गीता में 700 श्लोक और 18 अध्याय है। श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान वर्तमान समय में भी सार्थक है। बहुत से महापुरुषों ने भगवद् गीता को पढ़ा और जीवन की ऊंचाईयों को प्राप्त किया। भगवद् गीता के श्लोक पढ़कर एक नई सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है।
Bhagavad Geeta quotes in Sanskrit and Hindi
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
भावार्थ- हे भारतवंशी! जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अवतार लेता हूं। 4 - 7 श्लोक
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भावार्थ - सज्जनों का उद्धार करने और दुष्टों का संहार करने तथा धर्म की पुनः स्थापना करने हेतु मैं हर युग में प्रकट होता हूं । 4- 8 श्लोक
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।
हे अर्जुन! जो पुरुष सुख और दुःख में विचलित नहीं होते और इन दोनों परिस्थितियों में हम भाव रहते हैं। वह धीर पुरुष निश्चित रूप से मुक्ति के अधिकारी हैं।2-15 श्लोक
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।
भावार्थ- जिस तरह मनुष्य अपने जीर्ण वस्त्रों को त्याग कर नवीन वस्त्र धारण करता है,उसी तरह आत्मा पुराने तथा जीर्ण देह त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है। 2 - 22 श्लोक
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:।
भावार्थ -आत्मा को न तो किसी शस्त्र द्वारा काटा जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न ही जल द्वारा भिगोया जा सकता है, न ही वायु द्वारा सुखाया जा सकता है अर्थात आत्मा अजर-अमर और शाश्वत है। 2- 23 श्लोक
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
भावार्थ - जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और उसकी मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी होगा। इसलिए इस अपरिहार्य घटना पर शोक नहीं करना चाहिए। 2- 27 श्लोक
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
भावार्थ- श्री कृष्ण ने कहा- हे अर्जुन! क्रोध करने से मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है। जब स्मरण शक्ति भ्रमित होती है तो मनुष्य की बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश होने से उस मनुष्य का भी पतन हो जाता है। 2- 63 श्लोक
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्ति मान्य: स मे प्रियः।।
शुभाशुभपरित्यागी भक्ति मान्य: स मे प्रियः।।
श्री कृष्ण ने कहा - जो ना हर्षित होता है, न शोक व्यक्त करता है, न पछतावा करता है, न कोई इच्छा करता है और जो शुभ तथा अशुभ दोनों प्रकार की चीजों का परित्याग करता है, ऐसा भक्त मुझे अति प्रिय है। 12- 16 श्लोक
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
भावार्थ - श्री कृष्ण ने कहा- हे अर्जुन! श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह अपने कार्य से जैसे आदर्श प्रस्तुत करता है, सभी लोग भी उसे प्रमाण मानकर उसका अनुसरण करते हैं।3- 21 श्लोक
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।
जिस व्यक्ति ने मन पर विजय पा ली, उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र समान है लेकिन जो मन को वश में नहीं कर सका उसके लिए मन सबसे शत्रु के समान है।6- 6 श्लोक
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